लद्दाख समुद्र-तल से लगभग 3500 मीटर की ऊंचाई पर बसा लद्दाख इतिहास के पन्नो में शुरू से ही रहस्यों से परिपूर्ण भूमि के रूप में जाना जाता रहा है। इसे पृथ्वी की छत कहना अनुचित नहीं है। लद्दाख का अर्थ ही पर्वतों का देश है। अनेक जातियों, संस्कृतियों एवं भाषाओं का संगम लद्दाख अपनी विशिष्टताओं को कारण देशी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। यहां के पर्वत पर्वतारोहण करने वालों के मध्य काफी लोकप्रिय हैं।
यहां की बौद्ध गुफाएं अपनी सुंदरता तथा कारीगरी से दर्शकों को आश्चर्य में डाल देते हैं। हमेशा से ही देशी और विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा है सन् 1979 में लद्दाख को 2 जिलों (लेह और कारगिल) में बांट दिया गया था। लेह बौद्ध बहुल क्षेत्र है, जबकि कारगिल मुस्लिम बहुल। समुद्र-तल से 3521 मीटर की ऊंचाई पर स्थित लेह, लद्दाख का प्रमुख शहर और व्यापारिक केंद्र है। यह शहर अपनी अनूठी संस्कृति, कला, शिल्प और रीति-रिवाजों के लिए प्रसिद्ध है।
लद्दाख के पर्यटन स्थल - Tourist places in Ladakh in hindi
लेह महल, लेह मस्जिद, गोस्पा तेस्मो, स्टॉक पैलेस म्यजित शे बौध मठ, शंकर गोपा, हेमिस गोंपा, ठिकसे मठ काली मंदिर, लद्दाख शांति स्तूप, गुरुद्वारा पत्थर साहब
कारगिल।
लेह महल - Leh Palace Tourist place
शहर के मध्य में स्थित इस महल का निर्माण 16वीं शताब्दी में सिंगे नामग्याल ने करवाया था। इस महल में भगवान बुद्ध के जीवन को दर्शाते चित्र देखने लायक है ।
लेह मस्जिद - Leh Masjid Tourist place
इस मस्जिद का निर्माण 17वीं शताब्दी में देलदन नामग्याल ने अपनी मुस्लिम मां की याद में करवाया था। यह मस्जिद तुर्क व ईरानी कलाकृति का बेजोड़ नमूना है।
गोस्पा तेस्मो - Gospa Texmo Tourist place
लेह महल के पास ही बना यह मठ एक शाही मठ है। महात्मा बुद्ध की प्रतिमाओं से सुसज्जित यह मठ पर्यटकों को दूर से ही आकर्षित करता है ।
स्टॉक पैलेस म्यूजियम - Stok Museum Tourist place
यह म्यूजियम (संग्रहालय) लेह से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्टॉक में स्थित है। इस संग्रहालय में थंका (लद्दाखी चित्र), पुराने सिक्के, शाही मुकुट, शाही परिधान व अन्य शाही वस्तुएं संग्रहीत हैं।
शे बौद्ध मठ - Buddha Matha Tourist place
यह मठ लेह से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मठ में महात्मा बुद्ध की पीतल की प्रतिमा के साथ शाक्य की मूर्ति देखने लायक है।
शंकर गोंपा - Shankar Monastery Tourist place
यह मठ (गोंपा) लेह से 2 किलोमीटर दूर है। यहां ग्यालवा, चोंकापा, महात्मा बद्ध व चंडाजिक की मूर्तियां हैं, जिनकी सुंदरता व शिल्प दर्शनीय है।
हेमिस गोंपा - Hemis Monastery Tourist place
यह मठ लेह से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां प्रतिवर्ष पद्मसंभव की वर्षगांठ पर लेह निवासियों द्वारा मुखौटा नृत्य किया जाता है। यहां लद्दाख का सबसे बड़ा लद्दाखी चित्र संग्रहालय भी है, जो कई सालों में एक बार दर्शकों के लिए खोला जाता है।
थिकसे मठ - Thiksay Monastry Tourist place
यह मठ लेह से 25 किलोमीटर दूर है। इसकी गणना लेह के खूबसूरत मठों में की जाती है। यहां महात्मा बुद्ध की एक विशाल प्रतिमा है, जिसे देखकर दर्शक मंत्रमुग्ध रह जाते हैं।
काली मंदिर - Kali Mandir Tourist place
यह मंदिर लेह से लगभग 7 किलोमीटर दूर हवाई अड्डे के पास है। यह मंदिर 'स्पीतूक मठ' के नाम से भी जाना जाता है। यहां मां काली के साथ देवता 'जिगजित' की मूर्ति स्थापित है, जो दर्शनीय है।
लद्दाख शांति स्तूप - Shanti Stupa Tourist place
यह लेह से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। समुद्र-तल से इसकी ऊंचाई लगभग 14,000 फुट है। यहां महात्मा बुद्ध की अनुपम प्रतिमा स्थापित है। इसका निर्माण जापान के फूजी गुरुजी ने करवाया था। यहां से समूचे लेह शहर का नजारा किया जा सकता है।
गुरुद्वारा पत्थर साहिब - Gurudwara Pathar Sahib Tourist place
यह स्थल लेह-श्रीनगर मार्ग पर लेह से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां एक शिला पर मानव आकृति उभरी हुई है। कहा जाता है कि यह आकृति सिखों के प्रथम गुरु नानकदेवजी की है।
कारगिल - Kargil Tourist place
यह लद्दाख का सबसे बड़ा और दूसरा कस्बा है। यह लेह-श्रीनगर मार्ग पर स्थित है। यहां द्रास, सुरू-घाटी, रंगदुम, मुलबेक, करशा, बुरदान, फुगताल, जंस्कार, जोंगखुल आदि स्थान देखने योग्य हैं। मई, 1999 में हुए भारत-पाक युद्ध में इसकी विश्व में पहचान बनी है। यहां आने वाले पर्यटक यहां की ऊंची-ऊंची पहाड़ियों, जहां भारतीय जवानों ने दुश्मनों से सिर पर कफन बांधकर टक्कर ली थी, को देखकर हैरान रह जाते हैं। यहां ठहरने के लिए होटल और खानपान की उत्तम व्यवस्था है।
प्रमुख उत्सव
लद्दाख उत्सव ( Ladakh Festival ): यह उत्सव प्रतिवर्ष 1 से 15 सितंबर तक मनाया जाता है। इस उत्सव में लद्दाख के विभिन्न गांवों से आए नर्तक अपने मनमोहक नृत्यों द्वारा पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। इस उत्सव के द्वारा दर्शक लद्दाख की संस्कृति से परिचित होते हैं। यह उत्सव पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए राज्य पर्यटन विभाग द्वारा संपन्न किया जाता है।
लोसर उत्सव ( Losar Festival ) : यह उत्सव बौद्ध लोगों द्वारा नववर्ष को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन घर-घर में छांग (दसी शराब) का सेवन किया जाता है तथा लोग एक-दूसरे को नए साल की मुबारकबाद 'लोसर ला टाशिश दिलेक' (नया साल मुबारक हो) कहकर देते हैं।
लद्दाख कैसे जाएं?
वायु मार्ग : लद्दाख पहुंचने के लिए दिल्ली, चंडीगढ़, जम्मू व श्रीनगर से लेह के लिए इंडियन एयरलाइंस की सीधी उड़ानें हैं। लेह का हवाई अड्डा शहर से 7 किलोमीटर दूर है। लेह शहर जाने के लिए यहां टैक्सी, जीप व टाटा सूमो की सेवाएं उपलब्ध हैं।
रेल मार्ग : निकटतम रेलवे स्टेशन जम्मू है, जो देश के प्रत्येक भाग से रेल मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। जम्मू शहर की लेह शहर से दूरी लगभग 690 किलोमीटर है।
सड़क मार्ग : लेह शहर तक पहुंचने के लिए श्रीनगर से बस सेवाएं उपलब्ध हैं। दोनों शहरों के बीच की दूरी 438 किलोमीटर है। यह यात्रा 2 दिनों में पूरी होती है। यदि आप श्रीनगर से बस द्वारा लेह जाना चाहते हैं, तो आपको अपनी यात्रा बस से सुबह शुरू करनी पड़ेगी। रात को आपको कारगिल में ठहरना पड़ेगा। अगले दिन शाम को आप लेह में होंगे। वैसे लेह शहर के लिए दिल्ली से भी मनाली होते हुए बस सेवा है। मनाली से लेह 467 किलोमीटर है। श्रीनगर की अपेक्षा यह रास्ता काफी चहल-पहल वाला है। यह मार्ग संसार का सबसे ऊंचा मार्ग है। इस रास्ते से यात्रा करते हुए आप लाहौल घाटी का अभूतपूर्व नजारा भी देख सकते हैं।
कब जाएं?
हमेशा बर्फ से ढके रहने वाले लद्दाख के अधिकतर भाग कई-कई महीनों तक समस्त विश्व से कटे रहते हैं, लेकिन फिर भी यहां मई से लेकर नवंबर तक जाया जा सकता है। इन्हीं दिनों में लद्दाख उत्सव भी संपन्न होता है।