जैसलमेर को 'हवेलियों की नगरी' व 'स्वर्ण नगरी' के नाम से भी जाना जाता है। इस नगर को चंद्रवंशी यादव भाटी रावल जैसल ने सन् 1156 में बसाया था। इस शहर की तंग गलियों में पथरीले रास्तों के दोनों ओर पीले पत्थरों की बड़ी-बड़ी हवेलियां हैं, जिनकी वजह से इसे 'हवेलियों की नगरी' कहा जाता है। सूरज की रोशनी जब इन पीली हवेलियों पर पड़ती है, तब ये सोने की तरह चमकने लगती हैं, इसलिए इस शहर को ‘स्वर्ण नगरी' कहा जाता है। पर्यटन के लिहाज से आज यह शहर बहुत महत्त्वपूर्ण है। समुद्रतल से लगभग 224 मीटर की ऊंचाई पर थार मरुस्थल में बसे इस शहर की अपनी ही शान है।
जैसलमेर में घूमने की जगह - Tourist places in Jaisalmer in hindi
सोनार किला, गड़सीसर, सरोवर, लोक सांस्कृतिक संग्रहालय, पटुओं की हवेलियां, दीवान नथमल की हवेली, सालिम सिंह की हवेली।
समीपवर्ती स्थल जैसलमेर: अमर सागर, बड़ा बाग व छतरियां, लोद्रवा, साम के रेतीले टीले, वुड फासिल पार्क, पोखरण, रामदेवरा, सफारी, राष्ट्रीय मठ उद्यान, मरु उत्सव।
सोनार किला - Tourist place
यह किला 80 मीटर की ऊंचाई पर त्रिकूटा पहाड़ी पर बना है। इसका निर्माण रावल जैसल ने सन् 1156 में करवाया था। अखे पोल, सूरज पोल, गणेश पोल और हवा पोल नामक चार दरवाजों वाले इस किले में 99 बुर्ज हैं। किले के भीतर मोती महल, रंग महल, राज विलास आदि महल स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। यहां 12वीं से 15वीं शताब्दी के बने कुछ जैन मंदिर भी हैं, जो दर्शनीय है।
गड़सीसर सरोवर - Tourist place
यह सरोवर जैसलमेर के पूर्वी द्वार पर बना है। यह जैसलमेरवासियों का प्रमुख जलस्रोत है। यहां वर्षा का पानी इकट्ठा किया जाता है। इसका प्रवेश द्वार टीलो की पोल है। इस पोल का निर्माण 'टीलों' नाम की एक वेश्या ने सन् 1909 में करवाया था।
लोक सांस्कृतिक संग्रहालय - Tourist place
यह संग्रहालय गड़सीसर सरोवर के पास ही स्थित है। इस संग्रहालय में जैसलमेर की लोक-संस्कृति से जुड़ी वस्तुएं, वाद्य यंत्र, वस्त्राभूषण, कलात्मक चित्र जैसलमेर के इतिहास संबंधी दस्तावेज, कठपुतलियां आदि संग्रहीत हैं। इस संग्रहालय की स्थापना लेखक, कवि एवं पेशे से शिक्षक नंद किशोर शर्मा ने सन् 1984 में की थी।
पटुओं की हवेलियां - Tourist place
जैन भवन के पास बनीं ये 5 हवेलियां 5 भाइयों की धरोहर हैं। इनका निर्माण सन् 1800 से 1860 के मध्य गुमानमल बाफना के 5 पुत्रों द्वारा करवाया गया था। इन हवेलियों के जालीदार झरोखे, मेहराबदार छज्जे तथा रंगीन कांच का जड़ाऊ काम देखने लायक है।
दीवान नथमल की हवेली - Tourist place
माहेश्वरी मोहल्ले में स्थित यह विशाल हवेली दीवान नथमल द्वारा सन् 1881-85 में बनवाई गई। नथमल महारावल रणजीत सिंह व बैरीशाल सिंह के समय दीवान थे। इस हवेली के झरोखे, बारियों व तिबारियों की बनावट देखने योग्य हैं। चूंकि यह हवेली रिहायशी काम में आती है, इसलिए इसे केवल बाहर से देखा जा सकता है।
सालिम सिंह की हवेली - Tourist place
सोनार किले की पूर्वी ढलान पर स्थित यह हवेली दीवान सालिम सिंह द्वारा सन् 1825 में बनवाई गई थी। यह हवेली जैसलमेर की सुंदर व भव्य हवेलियों में एक है। इस हवेली का ऊपरी भाग, जिसे 'मोती महल' कहते हैं, बड़ा ही सुंदर बना है। यद्यपि यह हवेली रिहायशी काम में आती है, फिर भी इसे देखा जा सकता है। इसका निर्माण गोल के दूसरे छोर पर हिम्मत परत जैन मंदिर है। इस मा स्थापित है।
अमर सागर - Tourist place
यह झील जैसलमेर से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसका निर्माण महारावल अमर सिंह ने सन् 1784 में करवाया था। इस झील के दूसरे छोर पर हिम्मत रामजी बाफना द्वारा सन् 1817 में बनवाया गया एक खूबसूरत जैन मंदिर है। इस मंदिर में आदीश्वर भगवान की लगभग 1,500 साल पुरानी प्रतिमा स्थापित है। यह झील सैलानियों को दूर से ही लुभाती है।
बड़ा बाग व छतरियां - Tourist place
यह स्थल जैसलमेर से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां जैसलमेर के महारावलों के श्मशान पर स्मृतिस्वरूप बनी कलात्मक छतरियां देखने योग है।
लोद्रवा - Tourist place
यह नगर जैसलमेर से करीब 16 किलोमीटर दूर काक नदी के तट पर बसा कसा है। जैसलमेर बसने से पूर्व यह नगर भाटियों की राजधानी था। यहां स्थित जैन मंदिर दर्शनीय है। इस मंदिर में 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की आकर्षक मूर्ति स्थापित है। इसके मुख्य द्वार पर कलात्मक तोरण द्वार बना हुआ है।
यह मंदिर प्राचीन कला व संस्कृति का उत्कृष्ट उदाहरण है। वैसे तो इसका निर्माण बहुत पहले हो चुका था, किंतु सही तौर पर इसका आखिरी जीर्णोद्धार जैसलमेर निवासी शारूशाह भंसाली ने सन् 1618 में करवाया था।
साम के रेतीले टीले - Tourist place
यह स्थान जैसलमेर से लगभग 42 किलोमीटर दूर है। यहां दूर-दूर तक रेत-ही-रेत दिखाई देती है। डूबते सूरज का नजारा यहां से बड़ा ही आकर्षक दिखाई देता है। सलाना इस नजारे को अपने कैमरे में कैद करने के लिए आतुर रहते हैं। यहां ऊट का सवार का अपना ही मजा है। सही मायने में यहां एक अनोखे रोमांच की अनुभूति होती है।
वूड फासिल पार्क - Tourist place
यह पार्क जैसलमेर से 17 किलोमीटर की दूरी पर बीकानेर मार्ग पर स्थित गांव में बनाया गया है। यहां 18 करोड़ साल पुराने पेड़-पौधों, जीव-जन्तुओ के अवशेषों को, जो अब पत्थरों में तब्दील हो चुके हैं, सुरक्षित रखा गया है।
पोखरण - Tourist place
यह वही जगह है जहां भारत ने सन 1974 में प्रथम परमाणु परमाणु परीक्षण किया था। यहां 18 शताब्दी का बना लाल पत्थरों का किला खासतौर से देखने योग्य है। इस किले के संग्रहालय में पुरातन समय की पेंटिंग्स, हथियार व शाही पोशाकें सरक्षित है।
रामदेवरा - Tourist place
जैसलमेर से 123 किलोमीटर तथा पोखरण से मात्र 13 किलोमीटर की दूरी पर जोधपर मार्ग पर स्थित है। यहां मध्यकाल के संत बाबा रामदेव की समाधि देखने योग्य है।
सफारी - Tourist place
सफारी एक प्रकार की यात्रा है, जो खुली जीपों व खुले ट्रकों में जंगली जानवरों को पास से देखने के लिए जंगलों में की जाती है। जैसलमेर में बहुत-सी ट्रैवल्स एजेंसियां हैं, जो इस प्रकार की यात्राओं का आयोजन करती हैं, अतः इन एजेंसियों से संपर्क करके सफारी का लुत्फ उठाया जा सकता है।
राष्ट्रीय मठ उद्यान - Tourist place
यह उद्यान जैसलमेर से करीब 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां राजस्थान के राज्य पक्षी ‘गोडावण' को आसानी से देखा जा सकता है। इसके अलावा यहां काला हिरण, चिंकारा, रेगिस्तानी लोमड़ी, भेड़िया, तीतर एवं सोन चिड़िया भी बहुतायत रूप में पाई जाती हैं।
यह उद्यान जैसलमेर व बाड़मेर के करीब कई वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है। यहां 20 प्रतिशत भाग में रेतीले टीले हैं, जो चिंकारा के लिए अनुकूल माने जाते हैं।
मरु उत्सव - Tourist place
इस उत्सव का आयोजन पर्यटन विभाग द्वारा प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा (जनवरी-फरवरी) को होता है। तीन दिन चलने वाले इस उत्सव में विदेशी सैलानी भी बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं। इस उत्सव के दौरान जैसलमेर की रौनक देखते ही बनती है।
जैसलमेर कैसे जाएं?
रेल मार्ग : जैसलमेर रेलमार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। जोधपुर से यहां के लिए दो रेलगाड़ियां चलती हैं।
सड़क मार्ग: जैसलमेर राष्ट्रीय राजमार्ग 15 पर स्थित है। जोधपुर, बीकानेर बाटा से यहां के लिए सीधी बस सेवाएं उपलब्ध हैं।
जैसलमेर कब जाएं?
जैसलमेर में गर्मी बहुत पड़ती है, इसलिए यहां भ्रमण करने के लिए सर्दियों का मौसम ही उपयुक्त माना जाता है।