वैदिक युग से ही इस राज्य का गौरवमयी अतीत रहा है। महाभारत काल में कौरव-पांडवों के बीच महासंग्राम यहीं लड़ा गया। सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में हरियाणा के रणबांकुरों ने अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया। सन् 1966 में यह राज्य पंजाब से पृथक होकर भिन्न राज्य बना।
हरियाणा के पर्यटन स्थल - Tourist Places in Haryana in Hindi
कुरुक्षेत्र : स्नेहत (सन्निहित), ब्रह्म सरोवर, थानेश्वर महादेव मंदिर, नरकातारी भीष्म कुड (बाण गंगा), ज्योतिसर, फल्ग कलर शेखचिल्ली का मकबरा, कुरुक्षेत्र का गुरुद्वारा, पेहवा।
लाडवा : बाला सूदरी का मंदिर, सोहन तालाब, एकादश रुद्र ती रामकुंडी तथा आर्य समाज मदिर, अठवाड़िया मंदिर. चरणदासियों का मंदिर, रामेश्वर तीथे और हनुमान मंदिर
पिंजौर : यादविंदा उद्यान और फ्लाइंग क्लब।
कुरुक्षेत्र - Kurukshetra Tourist Place
कुरुक्षेत्र राजधानी दिल्ली से लगभग 170 किलोमीटर दूर है। यह सरस्वती नदी के किनारे पर स्थित है। आर्य संस्कृति की उत्पत्ति और विकास इसी स्थान पर हुआ था। यहीं पर इंद्र, अग्नि, ब्रह्मा, दधीचि, अरुंधति तथा मार्कण्डेय आदि ऋषियों ने तप किया था। महर्षि मनु ने मनुस्मृति की रचना इसी स्थल पर की थी। कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत का युद्ध इसी जगह पर हुआ था। कहा जाता है कौरवों और पांडवों के पूर्वज राजा कुरु ने अपने हाथों से यहां हल चलाया था, इसलिए इसे कुरुक्षेत्र के नाम से जाना जाता है।
सन्निहित सरोवर - Sannihit Sarovar Tourist Place
यह तीर्थ स्थान कुरुक्षेत्र रेलवे स्टेशन से ढाई किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके चारों ओर अनेक प्राचीन मंदिर बने हुए हैं। महाभारत युद्ध के दौरान कौरव-पांडव सध्या समय युद्ध बंद करके इसी तीर्थ स्थान में स्नान किया करते थे और फिर आपस म इकठे बैठकर प्रेमपूर्वक बातें किया करते थे। उनकी इस स्थान पर स्नेहयुक्त बात हान के कारण इस स्थान का नाम स्नेहत (सन्निहित) पड़ा था। इससे पहले इस तीर्थ को पंचक तीर्थ कहा जाता था।
ब्रह्म सरोवर - Brahma Sarovar Tourist Place
स्नेहत के बाद कुरुक्षेत्र का दूसरा पवित्र तीर्थ स्थान ब्रह्म सरोवर माना जाता है। यह विशाल सरोवर एशिया का सबसे बड़ा सरोवर माना जाता है। इसकी लंबाई चार हजार फट और चौड़ाई दो हजार फुट है। इस तीर्थ स्थान को सभ्यता का गढ़ माना जाता है। कहा जाता है कि ब्रह्मा ने ब्रह्म सरोवर के किनारे बैठकर पूजा की थी और शिवलिंग की स्थापनाकी थी।
यह शिवलिंग आज भी सरोवर के मध्य में सरवेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित है। यह मंदिर एक छोटी-सी पुलिया द्वारा घाट से जुड़ा हुआ है। यह मंदिर अपनी अनुपम छटा से पर्यटकों को मुग्ध करता है। इस मंदिर में शिव-पार्वती और गणेशजी की भी मूर्तियां स्थापित हैं। एक कक्ष में गरुड़ नारायणजी की संगमरमर की मूर्ति है तथा अन्य कक्षों में हनुमानजी, भगवान श्रीकृष्ण व बलरामजी की मूर्तियां हैं।
ब्रह्म सरोवर के मध्य में ही चंद्रकूप है। यह एक प्राचीन स्थान माना जाता है। ब्रह्म सरोवर के दर्शन करने आए श्रद्धालु ब्रह्म सरोवर में स्नान करके इस कूप के दर्शन अवश्य करते हैं। यहां पर चंद्र ग्रहण, सोमवती अमावस्या, बावन द्वादशी, फलगू तथा वैशाखी पर लाखों श्रद्धालु स्नान करने आते हैं। कहा जाता है कि ब्रह्म ससेवर में केवल एक डुबकी लगाना अश्वमेध यज्ञ आयोजित करने के समान है।
ब्रह्म सरोवर के समीप ही गीता भवन, पांडवों का मंदिर (बाबा श्रवण नाथ की हवेली) है। इस भवन का निर्माण सन् 1921-22 में किया गया था। यहां एक पुस्तकालय है, जिसमें धार्मिक पुस्तकों के अतिरिक्त देश की हर भाषा में गीता उपलब्ध है। पांडवों के मंदिर या बाबा श्रवण नाथ की हवेली में पांच पांडवों, कौरवों, भगवान श्रीकृष्ण और हनुमानजी की मूर्तियां हैं। पास में भीष्म पितामहजी की बाण-शैया पर लेटे हुए मूर्ति है। इसके अलावा भगवान लक्ष्मी नारायण, भगवती दुर्गा एवं बाबा श्रवण नाथजी की मूर्तियां है।हैं, जिनके विषय में कहा जाता है कि 17वीं शताब्दी के अंत में ये बडे पर हुए थे, इस हवेली का निर्माण उन्होंने ही करवाया था। यहां पर जन्माला का आयोजन किया जाता है। बाबा श्रवण की हवेली के समीप ही बिड़ला मंदिर है। इस मंदिर संगमरमर का एक बेहद सुंदर रथ बना हुआ है, जिसमें भगवान श्री कृष्ण उपदेश दे रहे हैं। यहां एक धर्मशाला भी है, जहां यात्रियों के ठहरने की अच्छी सुविधा है।
स्थानेश्वर महादेव मंदिर - Shri Sthaneshwar Mahadev Temple Tourist Place
यह अद्भुत मंदिर थानेश्वर में स्थित है। कहते हैं, महाभारत युद्ध में विजय पान करने के लिए पांडवों ने भगवान शिव से यहीं आशीर्वाद प्राप्त किया था। यह मंदिर भगवान शिव का निवास स्थल भी माना जाता है। यहां एक आकर्षक सरोवर है, जिसके बारे में कहा जाता है कि राजा ताण को इस सरोवर के जल की कुछ ही बूंदों से कुष्ठ रोग से मुक्ति मिल गई थी। थानेश्वर कस्बे के निकट ही कमल नाभी मंदिर है, जिसमें भगवान विष्णु एवं ब्रह्मा की मूर्तियां स्थापित हैं।
नरकातारी भीष्म कुंड (बाण गंगा) - Bheeshma Kund Tourist Place
कुरुक्षेत्र से 6 किलोमीटर की दूरी पर पेहवा रोड पर स्थित 'नरकातारी' गांव के समीप नरकातारी भीष्म कुंड' है। इसे 'बाण गंगा' के नाम से भी जाना जाता है। इसी स्थान पर भीष्म पितामह अर्जुन के तीरों से घायल होकर बाण-शैया पर लेटे थे। उन्होंने अर्जुन से पीने के लिए जल मागा था। तब अर्जुन ने पृथ्वी में बाण मारकर जल की उत्पत्ति की थी, जिसे पीकर पितामह तृप्त हुए थे। एक किंवदंती के अनुसार इस बाण गंगा में करने से कोई भी व्यक्ति, जिसने पाप का अन्न खाया हो, पापमुक्त हो जाता है। पर भीष्म पितामह, तारकेश्वर महादेव, पंचमुखी हनुमान, श्री गंगाजी तथा श्री सीता-राम की प्राचीन मूर्तियां भी हैं। इसी बाण गंगा के तट पर 26 फुट ऊंची हनुमानजी की विशाल मूर्ति है, जो दर्शकों को आकर्षित करती है। कुरुक्षेत्र में तीन बाण-गंगा हैं। दूसरी जाण-गंगा' ब्रह्म सरोवर से दक्षिण की और साढ़े 6 किलोमीटर की दूरी पर है।
यहां जयद्रथ वध के दौरान अर्जुन ने अपने घोड़ों को प्यासा देखकर पृथ्वी में बाण चलाकर बाण-गंगा की उत्पत्ति की थी और अपने प्यासे घोड़ों को पानी पिलाया था। यह बाण-गंगा दयालपुर गांव के समीप है। तीसरी ‘बाण-गंगा' कुरुक्षेत्र रेलवे स्टेशन से 9 किलोमीटर की दूरी पर 'जमीन' गांव के समीप है। यहां पर एक बहुत बड़ी खाई है, जिसमें कर्ण के रथ का पहिया फंस गया था। उस समय यहीं पर अर्जुन ने अपने बाणों से कर्ण को घायल किया था। कर्ण के मरने से पहले भगवान कृष्ण और अर्जुन ब्राह्मण का वेश धारण करके कर्ण की दानवीरता की परीक्षा लेने उसके पास आए थे और उससे उसका सोने का दांत दान में मांगा था। कर्ण ने अपना सोने का दांत उखाड़कर उसे धोने के लिए जमीन पर बाण चलाकर जल की धारा उत्पन्न की थी और फिर उस दिव्य जल से दांत धोकर दान किया था। जमीन गांव से लगभग आधा मील दूर जयधर नामक गांव है। इस स्थान पर अर्जुन ने जयद्रथ को मारकर अपने पुत्र अभिमन्यु के वध का बदला लिया था। इस स्थान का नाम जयद्रथ का अपभ्रंश होकर जयधर हो गया है।
ज्योतिसर - Jyotisar Tourist Place
यह स्थान कुरुक्षेत्र रेलवे स्टेशन से 8 किलोमीटर की दूरी पर पेहवा रोड पर सरस्वती नदी के तट पर स्थित है। इस स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। यहां पर प्रत्येक वर्ष शीत ऋतु में शुक्ल पक्ष की एकादशी को मार्गशीर्ष के महीने में 18 दिन तक गीता जयंती मनाई जाती है।
फल्गू - Falgu River Tourist Place
यह स्थान कुरुक्षेत्र से 53 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस स्थान पर भगवान ब्रह्मा की प्रार्थना पर भगवान विष्णु स्वयं प्रकट हुए थे। यहां एक पवित्र कंड है जिसके घाटों को लाल पत्थरों से सजाया गया ऐसा माना जाता है कि इस कुंड में डुबकी लगाने से धन एवं समृद्धि प्राप्त होती है। स्थानीय बोली में इस स्थान को 'फुर्ल' कहा जाता है।
कलकत - Kalkat Tourist Place
यह पवित्र स्थल कुरुक्षेत्र से लगभग 70 किलोमीटर दूर कैथल-निखाना मार्ग पर स्थित है। इस कस्बे का नाम प्रभु कदम ऋषि (ब्रह्म के पुत्र) के दसवें पुत्र मुनि के नाम से है। यहां के कुंड में कार्तिक पूर्णिमा को असंख्य श्रद्धालु स्नान करते हैं। कहा जाता है कि इस कुंड के जल में सभी प्रकार की बीमारियों को ठीक करने की शक्ति है। कुंड के पास ही कात्यायनी देवी का मंदिर है, जो दर्शनीय है।
शेखचिल्ली का मकबरा - Sheikh Chilli's Tomb Tourist Place
यह मकबरा कुरुक्षेत्र से ढाई किलोमीटर की दूरी पर थानेश्वर के निकट है। तजकारते औलिया के अनुसार हजरत शेखचिल्ली जो कि सूफी सम्प्रदाय के ईरानी साधू थे, शाहजहां के शासनकाल में हजरत कुतुब जलालुद्दीन से मिलने के लिए यहां आए थे। कहा जाता है कि जब शाहजहां लाहौर से दिल्ली आ रहे थे, तब वह अपनी सेना सहित कुरुक्षेत्र में ठहरे थे। कुतुब जलालुद्दीन ने एक प्याला जल और आधी रोटी से मुगल सेना को तृप्त किया था। तब शाहजहां ने कुतुब जलालुद्दीन से प्रसन्न होकर यह मकबरा बनवाया था। तत्पश्चात जब शेखचिल्ली कुतुब जलालुद्दीन से मिलने यहां आए थे, तब उन्होंने इसी स्थान पर प्राणायाम द्वारा अपने प्राण त्याग दिए थे। तब से यह मकबरा 'शेखचिल्ली' के मकबरे के नाम से प्रसिद्ध है।
कुरुक्षेत्र का गुरुद्वारा - Kurukshetra Gurdwara Tourist Place
अपनी कुरुक्षेत्र यात्रा के दौरान गुरु नानक देवजी ने इसी स्थान पर विश्राम किया था। यह गुरुद्वारा सिद्धवती के नाम से मशहर है। स्नेहत (सन्निहित) ताल के समीप यह गुरुद्वारा गुरु हरगोविंद जी को समर्पित है।
पेहवा - Pehowa Tourist Place
यह स्थान कुरुक्षेत्र से पश्चिम दिशा में लगभग 25 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यह एक पितृ-तीर्थ है। यहां पिण्डदान का महत्त्व हरिद्वार, काशी तथा गया शहरों जैसा है। यहां बहुत से प्राचीन मंदिर हैं, जिनमें से अधिकांश का निर्माण राजा भोजदेव ने सन 1882 ई. के आस-पास करवाया था।
कुरुक्षेत्र कैसे जाएं?
वायु मार्ग : समीपी हवाई अड्डा चंडीगढ़ है। यहां से आप बस व टैक्सी द्वारा कुरुक्षेत्र जा सकते है।
रेल मार्ग : कुरुक्षेत्र रेलवे जंक्शन होने के कारण प्रमुख शहरों से रेल मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। देश के कई प्रमुख शहरों से यहां के लिए सीधी रेल सेवाएं उपलब्ध हैं।
सड़क मार्ग : कुरुक्षेत्र, राष्ट्रीय राजमार्ग से जुड़ा हुआ है, इसलिए देश के प्रमुख नगरों से यहां के लिए सीधी बस सेवाएं उपलब्ध हैं।
लाडवा - Ladwa Tourist Place
उत्सवों तथा मेलों का नगर लाडवा कुरुक्षेत्र से 18 किलोमीटर पूर्व में पीपली-यमुना नगर रोड पर स्थित है। यह एक प्राचीन नगर है। यहां लाडली वाला सुंदरी देवी का लगभग 500 साल पुराना प्राचीन मंदिर है। संभवतः लाडली देवी के नाम से ही इस नगर का नाम लाडवा पडा।
बाला सुंदरी का मंदिर - Bala Sundari Temple Tourist Place
यह प्राचीन मंदिर लाडवा नगर के पूर्व की ओर राठौर-यमुना नगर मार्ग पर स्थित है। यहां हर साल उतरते चैत की चौदस को बहुत बड़ा मेला लगता है, जो एक सप्ताह तक चलता है। इस मेले में लाडवा नगर तथा आस-पास के गांवों के लोग लाखों की संख्या में देवी को चढ़ावा चढ़ाने आते हैं।
सोहन तालाब/एकादश रुद्र तीर्थ - Ekadash Rudra Tourist Place
यह तीर्थ सोहन तालाब के नाम से प्रसिद्ध है। यह लगभग 500 साल पुराना तीर्थ है। तथा लाडवा के पश्चिम में पीपली-कुरुक्षेत्र रोड पर स्थित है। इस पवित्र तीर्थ के निर्माण में लाडवा के प्रसिद्ध तावा खानदान की सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। प्रतिदिन इस तीर्थ में हजारों लोग आते हैं और स्नान करते हैं।
सोहन तालाब के दक्षिणी किनारे पर एक बहुत विशाल तथा प्राचीन मंदिर है, जो कि एकादश रुद्र के नाम से जाना जाता है। इस विशाल व भव्य मंदिर का निर्माण लाला मंगलसेन ने करवाया था। इस मंदिर में शिवलिंग तथा अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। यह तीर्थ एक रमणीय स्थान है, जो दर्शकों का मन मोह लेता है।
एकादश रुद्र तीर्थ में शिवरात्रि के पर्व पर 3 दिन तक मेला लगता है। इस मेले में भगवान शिवशंकरजी के कीर्तन-भजन और प्रवचन होते हैं। इस मेले की सबसे दिलचस्प बात यह है कि फूलों की किश्तियां बनाकर तथा उनमें दीपक जलाकर रात के समय सोहने तालाब में प्रवाहित की जाती हैं, जो कि बहुत ही सुंदर दृश्य प्रस्तुत करती हैं। इस सुदर दृश्य का अवलोकन करने के लिए बहुत दूर-दूर से लोग यहां पर आते हैं।
रामकुंडी तथा आर्य समाज मंदिर - Arya Samaj Mandir Tourist Place
एकादश रुद्र तीर्थ तथा बाला संदरी देवी मंदिर के बीच में रामकंडी नाम का ताथ ) जो कि 500 साल पुराना, पक्की सीढ़ियों वाला बहुत बड़ा तालाब है। तालाब के पार किनारे पर बहुत प्राचीन शिव मंदिर है। यहां प्रत्येक वर्ष कई धार्मिक मेलों का आयात किया जाता है।
अठवाड़िया मंदिर - Athwadiya Temple Tourist Place
यह भगवान राधा-कृष्ण का प्रसिद्ध मंदिर है। इसका निर्माण अठवाड़िया खानदान ने करवाया था, इसलिए इसे अठवाड़िया मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर में भगवान शिव की बेहद प्राचीन मूर्ति है तथा हाल ही में हनुमानजी की एक विशाल मूर्ति स्थापित की गई
चरणदासियों का मंदिर - Charandasian Temple Tourist Place
यह मंदिर अठवाड़िया मंदिर से थोड़ी ही दूर है। यह भी बहुत पुराना मंदिर है तथा इसमें राधा-कृष्ण की मूर्तियां स्थापित हैं।
रामेश्वर तीर्थ तथा हनुमान मंदिर - Ramanathaswamy Temple Tourist Place
यह तीर्थ लाडवा नगर के पूर्वी-दक्षिणी कोने में स्थित है। यहां 500 साल पुराना एक सरोवर है, जिसका पानी अब सूख चुका है। यहां हनुमानजी का एक भव्य मंदिर है, जहां हर साल फाल्गुन मास की अमावस के बाद जो पहला मंगलवार आता है, उस मंगलवार से शुक्रवार तक चार दिन का मेला लगता है। । इस मेले में हनुमानजी की भव्य झांकियां निकाली जाती हैं और मंदिर में 24 घंटे हनुमान चालीसा का पाठ होता है।
लाडवा कैसे जाएं?
वायु मार्ग : निकटतम हवाई अड्डा चंडीगढ़ व दिल्ली में है। यहां से हरियाणा रोडवेज की बस द्वारा बड़ी आसानी से लाडवा पहुंचा जा सकता है।
रेल मार्ग : निकटतम रेलवे स्टेशन करनाल है, यहां से देश के प्रमुख शहरों के लिए सीधी रेल सेवाएं उपलब्ध हैं।
सड़क मार्ग : लाडवा के लिए देश के प्रमुख नगरों से सीधी बस सेवाएं उपलब्ध हैं।
पिंजौर - Pinjore Tourist Place
पिंजौर एक प्राचीन शहर है। यह चंडीगढ़ से मात्र 22 किलोमीटर की दूरी पर चंडीगढ़-शिमला राजमार्ग पर स्थित है। इस शहर से कई किंवदंतियां जुड़ी हुई हैं। कहा जाता है कि पांडव अपने वनवास के दौरान कुछ समय यहां रहे थे, इसलिए इसे 'पंचपूरा' के नाम से भी जाना जाता है। वैसे पिंजौर का निर्माण 17वीं शताब्दी में पंजाब के तत्कालीन गवर्नर फिदाई खान ने करवाया था। इस नगर में प्राचीन मुगल साम्राज्य सहित पटियाला शाही खानदान की कई यादें बिखरी हुई हैं।वर्तमान समय में पिंजौर एक आकर्षक पर्यटन स्थल का दर्जा हासिल कर चुका है, इसलिए साल-भर यहां पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है।
यादविंदा उद्यान - Yadavindra Gardens Tourist Place
इस उद्यान को 'पिंजौर गार्डन' के नाम से भी जाना जाता है। इस उद्यान का निर्माण औरंगजेब ने करवाया था। कहा जाता है कि औरंगजेब के मातहत फिदाई खान को यहां की खूबसूरती इस कदर भा गई थी कि उसने यहां रहने की ठान ली थी और इसका निर्माण कार्य पूरा होते ही वह अपनी बेगम के साथ यहां रहने आ गया था।
इस गार्डन को कभी मुगल गार्डन भी कहा जाता था। वास्तव में यह गार्डन मुगल वास्तशिल्प का अद्भुत नमूना है। यहां की मखमली घास और रंग-बिरंगे फूल पर्यटकों को बरबस ही आकर्षित करते हैं। बाग के मध्य में स्थित झरने भी बेहद खूबसूरत हैं। यहां बने शीश महल, रंग महल और जल महल यहां के प्रमुख आकर्षण हैं। शीश महल को जहां फिदाई खान का दरबार कहा जाता है, वहां उसके सामने बने रंग महल को उसकी बेगमों के मनोरंजन स्थल के रूप में जाना जाता है और बेगमों के स्नानागार को जल महल के नाम से जाना जाता है। यहां आने वाले पर्यटक इन महलों की सुंदरता निहारते रह जाते हैं।
फ्लाइंग क्लब - Flying Club Tourist Place
पिंजौर का फ्लाइंग क्लब पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। इस क्लब में ग्लाइडर उड़ान का प्रशिक्षण दिया जाता है। देश-विदेश से आए पर्यटक यहां ग्लाइडर उड़ान का प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं।
पिंजौर कैसे जाएं?
यहां आने के लिए चंडीगढ़ व कालका से यातायात की उत्तम पर चंडीगढ़-शिमला राजमार्ग पर बसे इस शहर तक बसों और टैक्सियों से पहुंचा जा और टैक्सियों से पहुंचा जा सकता