इतिहास में वीरों की भूमि चित्तौड़गढ़ का अपना विशेष महत्त्व है। उदयपुर से 112 किलोमीटर दूर चित्तौड़गढ़ एक ऐतिहासिक दर्शनीय स्थान है।देश-विदेश में अपनी अलग पहचान बनाने वाला चित्तौड़गढ़ दुर्ग राजस्थान भ्रमण पर आए पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। बेड़च और गंभीरी नदियों के संगम के पास लगभग 500 फुट ऊंचे एक भीमकाय पहाड़ पर निर्मित यह दुर्ग 5 किलोमीटर लम्बा व एक किलोमीटर चौड़ा है। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह देश का सबसे बड़ा दुर्ग माना जाता है। समुद्रतल से इसकी ऊंचाई लगभग 18500 फुट है। इस दुर्ग में भामाशाह जैसे देशभक्त और कर्णावती जैसी बहनों की गौरव गाथायें आज भी गूंजती हैं। इस गढ़ में अनेक प्राकृतिक झीलें, झरने, कुंड आदि देखने योग्य है।
चित्तौड़गढ़ में घूमने की जगह - Tourist places in Chittorgarh in hindi
तुलजा भवानी का मंदिर, नौलखा भंडार, शृंगार चंवरी, महाराणा कुंभा का महल, फतह प्रकाश महल, जैन मंदिर, विजय स्तंभ, समिद्वेश्वर महादेव का मंदिर, गोमुख कुंड, पद्मिनी महल, कीर्ति स्तंभ, चलफिर शाह की दरगाह
तुलजा भवानी का मंदिर - Tulja Bhavani Mandir Tourist place
दुर्ग पर पहुंचने पर 'राम पोल' के भीतर से एक सड़क मार्ग दक्षिण दिशा की और जाता है। तुलज भवानी का मंदिर इसी मार्ग पर स्थित है। इस भव्य मंदिर का निर्माण दासी पुत्र बनवीर ने करवाया था। बनवीर मां भवानी का उपासक था। उसने इस मंदिर का निर्माण अपने वजन के बराबर (तुला दान) करवाया था। इसी कारण इसे तुलजा भवानी का मंदिर कहते हैं।
नौलखा भंडार - Naulakha Tourist place
यहां से कुछ आगे एक गढ़नुमा इमारत नौलखा भंडार के नाम से जानी जाती है। इससे महराबी छत वाले कमरे है। कहा जाता है कि इसे राणा बनवीर ने भीतरी किला बनाने के विचार से एक विशाल बुर्ज सहित बनवाया था। इसी के निकट तोपखाना है, जहां कई तरह की छोटी-बड़ी तोपों का संग्रह है।
श्रृंगार चंवरी - Shringar Chanvri Tourist place
यह मंदिर नौलखा भंडार के पास ही है। राजपूत एवं जैन स्थापत्य कला के इस मंदिर के मध्य में एक छोटी वेदी पर चार खंभों वाली छतरी बनी हुई है। ऐसा माना जाता है, कि यह महाराणा कुम्भा की राजकुमारी के विवाह की चंवरी है, अर्थात पाणिग्रहण संस्कार स्थल, इसलिए यह शृंगार चंवरी के नाम से जाना जाता है।
महाराणा कुंभा का महल - Kumbha of Mewar Tourist place
नौलखा भंडार के पास स्थित 13वीं शताब्दी में बना यह प्राचीन महल वर्तमान में भग्नावस्था में है। यह महल भारतीय स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है। महाराणा कुंभा द्वारा इस महल का जीर्णोद्धार करवाने एवं नए भवनों का निर्माण करवाने की वजह से इसे कुंभा महल कहा जाता है। इस महल के अहाते में बने जनाना महल, दीवान-ए-आम, सूरज गोखड़ा, मीराबाई महल, शिव मंदिर आदि विशेष रूप से दर्शनीय हैं। कहा जाता है कि रानी पद्मिनी का जौहर इसी स्थान पर हुआ था।
फतह प्रकाश महल - Fateh Prakash Palace Tourist place
कुभा महल के प्रमुख द्वार बड़ी पोल से बाहर निकलते ही यह महल स्थित है। इस महल का निर्माण उदयपुर के महाराणा फतह सिंह ने करवाया था, जहां वर्तमान में एक संग्रहालय है। इस महल में पुरातन समय की कुछ चीजें मौजूद हैं, लेकिन अधिकांश वस्तुएं अन्य संग्रहालय में भिजवा देने की वजह से इस शहर को भीतर के बजाय बाहर से देखन ही ठीक रहता है।
जैन मंदिर - Jain Mandir Tourist place
11वी शताब्दी में निर्मित यह मंदिर फतह प्रकाश महल के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है।इस मंदिर में 27 देवरियां हैं, जिसकी वजह से इसे 'सतबीस देवरी' के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर के अंदर की गुम्बदनुमा छत व खंभों 'पर की गई खुदाई 'दिलवाड़ा जैन मंदिर' (माउंट आबू) से मेल खाती है।
विजय स्तंभ - Vijay Stambha Tourist place
इस भव्य स्तंभ का निर्माण महाराणा कुंभा ने मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी व गुजरात के सुल्तान कुतुबुद्दीन की संयुक्त सेना पर विजय प्राप्त करने की स्मृति में करवाया था। नौ मंजिला यह इमारत भारतीय स्थापत्य कला की बारीक एवं सुंदर कारीगरी का नायाब नमूना है। इसमें ऊपर तक जाने के लिए 57 सीढ़ियां हैं। इस स्तंभ के
आंतरिक व बाह्य भागों पर भारतीय देवी-देवताओं, महाभारत एवं रामायण के पात्रों की सैकड़ों मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। इसके साथ ही जनजीवन से संबंधित झांकियों का भी सुंदर अंकन किया गया है।
समिद्धेश्वर महादेव का मंदिर - Sardeshawar Mahadev Mandir Tourist place
यह मंदिर विजय स्तंभ के पास ही स्थित है। इसके भीतरी तथा बाहरी भाग में खुदाई का कार्य बड़ा ही सुंदर व काबिले-तारीफ है। इसका निर्माण मालवा के सुप्रसिद्ध विद्यानुरागी परमार राजा भोज ने करवाया था। इस मंदिर के गर्भ-गृह के नीचे के भाग में शिवलिंग और पीछे की दीवार में भगवान शिव की विशाल त्रिमूर्ति बनी हुई है। इस मंदिर को 'त्रिभुवन नारायण' और 'भाज जगता के नामों से भी जाना जाता है।
गोमुख कुंड - Gaumukh Kund Tourist place
यह एक पवित्र तीर्थ-स्थल है। यहां दो दालानों में तीन जगह गोमुखौ से शिवलिंग पर जल गिरता है। यहाँ से एक सुरंग कुंभा महल को जाती है, लेकिन पर्यटकों के लिए यह सुरंग बंद है ।
पद्मिनी महल - Padmini Palace Tourist place
रावल रतन सिंह की रानी पद्मिनी का महल दुर्ग के दक्षिण की तरफ़ आगे बढ़ने पर एक जलाशय के किनारे स्थित है। इसी महल के पास एक अन्य महल पानी के भीतर बना हुआ है, जो जनाना महल कहलाता है। कहते हैं कि इसी महल में अलाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मिनी का विशाल प्रतिबिम्ब दर्पण के माध्यम से देखा था। इस महल में लगे कुछ विशेष किस्म के गुलाब विशेष रूप से आकर्षित करते हैं।
कीर्ति स्तंभ - Kirti Stambha Tourist place
लगभग 75 फुट ऊंची और सात मंजिला इस इमारत का निर्माण 12वीं शताब्दी में दिगम्बर जैन संप्रदाय के बघेरवाल महाजन सानाम के पुत्र जीजा ने करवाया था। इस स्तंभ के ऊपर जाने के लिए कुल 54 सीढ़ियां हैं, लेकिन वर्तमान में पर्यटक इसे केवल बाहर से देख सकते हैं।
चलफिर शाह की दरगाह - Chal Fir Shah Dargah Tourist place
शहर के मध्य गोल प्याऊ चौराहे के निकट बनी यह दरगाह लगभग 70 साल पुरानी है। इस दरगाह का बुलंद प्रवेश द्वार संगमरमर द्वारा निर्मित है। यहां हर साल हजरत चलफिर शाह बाबा का उर्स मनाया जाता है।
समीपवर्ती दर्शनीय स्थल - Tourist place
इसके अलावा चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित मेनाल, निबांहेड़ा का राधाकृष्ण मंदिर, सांवलियाजी, नीलिम महादेव, बड़ौली, मेवाड़ के हरिद्वार के रूप में माने जाने वाले 'मातृकुंडिया' भंवरमाता आदि स्थल भी पर्यटन की दृष्टि से देखने योग्य हैं।
चित्तौड़गढ़ कैसे जाएं?
रेल मार्ग : चित्तौड़गढ़ छोटी एवं बड़ी लाइन से देश के प्रमुख नगरों से सीधा जुड़ा हुआ है। दिल्ला, इंदौर, उदयपुर व अहमदाबाद शहरों से यहां के लिए सीधी रेल सेवाएं उपलब्ध हैं।
सड़क मार्ग : चित्तौड़गढ़ दिल्ली, जयपुर, कोटा, इंदौर और अहमदाबाद जैसे कई शहर मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। इन शहरों से चित्तौड़गढ़ के लिए सीधी बस सेवाएँ उपलब्ध है।
चित्तौड़गढ़ कब जाएं?
चित्तौड़गढ़ में यूं तो साल-भर सैलानियों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन सितम्बर से फरवरी का मौसम यहां भ्रमण करने के उपयुक्त माना जाता है।