ये कैसा शोर है-पंचतंत्र की कहानियां

Apr 03,2021 09:55 AM posted by Admin

एक तालाब में कछुआ रहता था। वहीं पर उसके दो मित्र बगले पर थे। वे बगुले रोज़ाना ही उसके पास आकर उसे देवी-देवताओं की कथा सुनाते और शाम को उड़कर अपने घोंसलें में चले जाते।
एक समय जब वर्षा न हुई तो वह तालाब सूख गया। तब बगले ने कहा "मित्र, अब तो इस तालाब में पानी नाममात्र ही रह गया है, अब तुम्हारा क्या होगा?" कछुआ बेचारा चिन्ता के सागर में डूब गया। बगुले की ओर निराशा से देखता हुआ बोला, “भाइयो, आप ही मेरे बारे में सोचो, तुम्हारे सिवा हमारा कोई भी तो मित्र नहीं । वैसे तो कहा गया है कि

संकट काल में धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए। जैसे सागर में नाव डूबने पर भी नावक पार होने की आशा रखता है और मनु ने भी कहा है कि बुद्धिमान पुरुष मुसीबत आने पर मित्र और बन्ध से सदा सहायता की आशा करते हैं । इसलिए आप मुझे यहां से निकाल कर किसी ऐसे तालाब तक ले चलो जिसमें बहुत-सा पानी हो।” “लेकिन तुम जाओगे कैसे ?" बगुले ने पूछा।
“तुम लोग एक छोटी-सी लकड़ी ले आओ। उस लकड़ी को तुम दोनों पकड़े रखना और उड़ते रहना। मैं उसे पकड़ कर लटक जाऊंगा, हा ध्यान रखना कि तुम दोनों मुंह न खोलना ।” कछुए ने सुझाव दिया।

बगुले कछुए की बात मानकर एक लकड़ी ढूंढ लाए । उस लकड़ी को बगुले उड़ने लगे। उन्होंने अपनी दोनों चोचों में दबा लिया। बीच में कछुआ लटक गया और बगुले उड़ने लगे |
उड़ते-उड़ते रास्ते में कछुए ने एक नगर देखा, यहां के वासी उन्हें देखकर कहने लगे "देखो ! देखो, कोई गोल चीज़ बगले उठाए लिए जा रहे हैं।" उनका शोर सुनते ही कछुआ झट बोल उठा, “अरे यह कैसा शोर है ?"
बस कछुआ अभी अपनी चोंच आधी ही खोल सका था कि लकड़ी से उसका मुंह हटा तो वह धड़ाम से नीचे धरती पर गिरा और वहीं पर मर गया। इसलिए तो कहा गया है भविष्य को सोचकर काम करने वाला और समय के अनुसार तत्काल निर्णय करने वाला, दोनों मज़े में रहते हैं, भाग्य के सहारे जीने वाले कभी सुख नहीं पाते। । “यह कैसे ?" टिट्टिभ झट से पूछा। “वह ऐसे सुनो"