ठगों की चाल-पंचतंत्र की कहानियां

Apr 05,2021 01:59 AM posted by Admin

किसी नगर में पूजा-पाठ करने वाला एक ब्राह्मण रहता था । माघ मास में जब ठंडी हवाएं चल रही थीं, आकाश पर बादल छाए थे, हल्की-हल्की बूंदाबांदी हो रही थी, उसने एक गांव में जाकर अपने
जजमान से एक पशु मांगा, जजमान ने अपने पंडित को एक मोटा बकरा दे दिया। पंडित उस बकरे को लेकर अपने शहर की ओर आ रहा था कि रास्ते में उसे कुछ ठग मिल गए।उन ठगों ने बकरे को देखकर आपस में कहा“वाह, इस पशु के भोजन से ही आज आनन्द लें । हमें इस पंडित से यह बकरा ठगना चाहिए।"

इस तरह उन ठगों ने मिल कर एक योजना बनाई। उनमें से एक ने भेष बदलकर उस पंडित के सामने से आते हुए कहा कि ओ मूर्ख पंडित ! तुम पंडित होकर एक गंदे कुते को कंधे पर उठाए जा रहे हो । कहा भी गया है। कुत्ता, मुर्गा, ऊंट, गधा, यह सब छूने के योग्य नहीं होते। पंडित को उसकी बात पर बड़ा क्रोध आया। वह झट से बोला, “अरे पागल, तुम अंधे हो जो बकरे को कुत्ता बता रहे हो ?” "पंडित जी ! गुस्सा क्यों करते हो जाओ अपने रास्ते से जाओ।" वह पंडित उस आदमी वहीं पर छोड़कर आगे बढ़ गया।

अभी वह थोड़ी दूर ही चला होगा कि उसे दूसरा ठग सामने से आता दिखाई दिया। उसने पास आकर कहा “हे पंडित ! यह कितने दुःख की बात है कि तुम मरे हुए बछड़े को कंधे पर उठाए जा रहे हो।"पंडित क्रोध से बोला, “अरे, क्या तुम्हें यह बकरा नहीं नज़र आता जो इसे मरा हुआ बछड़ा बता रहे हो ?"

उसने कहा, “पंडित जी ! देखो गुस्से में मत आओ। मुझे इससे क्या लेना-देना है ? जाओ अपने घर जाओ।"इस प्रकार पंडित वहां से चल पड़ा तो आगे थोड़ी दूरी पर उसे भेष बदले हुए तीसरा ठग मिला और बोला “अरे भैया ! यह क्या, तुम इस गधे को कंधे पर लादे चले जा रहे हो ?"क्या यह गधा है ?" पंडित ने आश्चर्य से उस ठग की ओर देखा और फिर किसी गहरी सोच में पड़ गया।

उसकी समझ में कुछ भी तो नहीं आ रहा था। “हां महाराज ! यह गधा ही तो है, भला इसमें पूछने की क्या ज़रूरत पंडित बेचारा और भी चिंतित हो गया।

उसे इस बात का पूर्ण विश्वास हो गया था कि यह बकरा नहीं, हां यह कोई भूतप्रेत ज़रूर है जो हर मिनट के पश्चात् अपना रूप बदल रहा है। डर के मारे उसने उस बकरे को वहीं जंगल में फेंक दिया और स्वयं तेज़ी से भाग निकला। तीनों ठग अपनी जीत पर खुश थे। उन्होंने उस बकरे को खाकर खूब आनन्द लिया। इसीलिए मैं कहता हूं कि बुद्धिमान बनो । ठगों से बचो, सांप को भी छोटी-छोटी चीटियां खा जाती हैं।“वह कैसे ?" काकराज ने पूछा। लो सुनो