शत्रु को योजना से मारो-पंचतंत्र की कहानियां

Apr 03,2021 06:51 AM posted by Admin

एक स्थान पर एक बहुत बड़ा बरगद का पेड़ था। उस पर एक कौवा और कौवी रहते थे। पति-पलि दोनों में बड़ा प्रेम था। इस प्रकार ही उनका जीवन व्यतीत हो रहा था । परन्तु जब भी वे अण्डे देते थे तो एक काला सांप वक्ष की जड़ में से निकल कर उनके अण्डों को खा जाता था।

इस तरह पति-पत्नी सांप के हाथों बहुत ही दु:खी हो गये थे। दोनों का मनबहत उदास रहता था। आखिर सन्तान का दुःख किसे नहीं होता ! कौवे का एक मित्र गीदड़ पास वाले वन में रहता था। उसने अपने इस गीदड़ मित्र के पास जाकर अपना सारा दुःख सुनाया।

गीदड ने बड़े धैर्य से अपने मित्र की दु:खभरी कहानी सुनी। उसे पता था कि जिसका खेत नदी के किनारे हो, जिस गांव के किनारे सांप रहता हो, उसके निवासियों को हर समय डर ही रहता है। फिर भी तुम मेरे मित्र हो। मैं तम्हें निराश और उदास नहीं होने दूंगा। मैं गीदड़ हूं, मेरा दिमाग शैतान के दिमाग से कम नहीं। देखना मैं उसे बिना किसी उपाय के ही मार डालूंगा।

कहा गया है कि शत्रु जिस प्रकार तीव्र बुद्धि से मारा जा सकता है, वैसे शस्त्रों से नहीं। छोटे शरीर वाला यदि कोई दांव-पेच जानता है तो वह बड़े शरीर वाले शक्तिशाली को भी हरा सकता है। जैसे छोटी-बड़ी मछलियों को खाने वाला बगुला अत्यन्त लालच के कारण एक छोटे केकड़े की पकड़ से मारा गया।
“वह कैसे...?" कौवा-कौवी दोनों एक साथ बोल पड़े थे। गीदड़ बोला—सुनो, वह कहानी-