न राजा बिना सेवक न सेवक बिना राजा-पंचतंत्र की कहानियां

Apr 03,2021 07:44 AM posted by Admin

किसी नगर में एक व्यापारी का नया मकान बन रहा था। उस मकान में लकड़ी का काम करने वाले कारीगरों ने ऐसे दो बड़े-बड़े तख्ते बनाए थे जिन्हे बीच में लकड़ी को पकड़ कर काटा जाता था। संयोग से वहां से बंदरों का एक काफला गुजरता हुआ रुका। एक बन्दर जो बहुत शरारती था, उन दो तख्तों के बीच में खड़ा होकर मज़े से झूलने लगा। उसे झूलने में बड़ा आनन्द आने लगा। उसने पूरे ज़ोर से छलांग लगाई |

तभी दोनों लकड़ी के तख्ने पूरे ज़ोर से उठे और उन्होंने उस बन्दर को कस कर जकड़ दिया। उसके साथियों ने उसकी ज़ोर से अंतिम चीख ही सुनी । वह बन्दर अपनी ही मूर्खता से मर गया था। इस प्रकार जो दूसरों के काम में व्यर्थ अपनी टांग अड़ाता है, उसका यही हाल होता है। इसलिए तुम भी इस शेर को भूल जाओ और अपनी चिंता करो। हमें इस झंझट में नहीं फंसना चाहिए। दमनक उसकी बात से चिढ़ गया अत: कहने लगा।

"तो क्या आप भोजन खाने वाले ही हैं, यह ठीक नहीं, मित्रों का भला और शत्रुओं को हानि करने के लिए ही बुद्धिमान जन राजा का सहारा लेते हैं। पेट कौन नहीं भर लेता ! जिनके जीते रहने से अन्य बहुत से लोग भी जीवित रह सकें, उसी को जिंदा रहना कहते हैं वरना क्या पक्षी भी चोंच से अपना पेट नहीं भर लेता ? अत: जो प्राणी अपने पर, पराए पर, बंधुवर्ग पर, दुःखी पर दया नहीं करता है, उसका इस दुनिया में जीना व्यर्थ है। | माता की जवानी हरण करने वाले उस पुत्र के उत्पन्न होने का क्या लाभ जो सदैव चोटी पर लहराने वाले झंडे के समान वंश में अग्रणी नहीं होता। तट पर उपजे उस घास झुंड का भी जन्म निरार्थक है, जिसको पकड़कर डूबता प्राणी किनारे नहीं आ लगता है, नीचे-ऊपर संचरण करते हुए मनुष्य के संताप को दूर करने वाले व्यक्तियों में कुछ ही भले पुरुष होते हैं।

मनुष्य भले कितना ही बलवान हो, पर यदि उसकी शक्ति प्रकट नहीं है तो लोग उसका अपमान करते हैं, जैसे लकड़ी के अन्दर व्याप्त आग को सब जाने की हिम्मत कोई नहीं करता।" . लोग लांघ जाते हैं, पर जब यह आग बाहर निकली हुई होती है तो उसके पास जाने की हिम्मत कोई नहीं करता |

करटक ने दमनक की बातों को बड़े धैर्य से सुना और फिर बोला, “यह सब तो ठीक है, किन्तु हम लोग सिंह की नगरी में अप्रधान गौण हैं फिर हमें इस बात से क्या प्रयोजन ? कहा भी गया है कि राजा के सामने जो अप्रधान बिगड़े दिमाग वाला बिना पूछे बोलता है, उसकी न केवल अवहेलना होती है, साथ ही वह अपमानित भी होता है, इसलिए अपनी बात वहां कहनी चाहिए जहां कुछ फल हो क्योंकि ऐसी जगह बात कहने का ऐसा प्रभाव होता है जैसे सफेद कपड़े पर रंग का होता है। 

तब दमनक ने करटक की बात सुनते कहा, “नहीं भाई, ऐसा न कहो क्योंकि अप्रधान भी यदि राजा की सेवा करे तो प्रधान बन जाता है। जो प्रधान राजा की सेवा न करे वह अप्रधान बन जाता है । इस प्रकार कोई व्यक्ति चाहे अनपढ़ ही क्यों न हो यदि वह राजा के निकट है तो उसी को राजा मानता है, जो नौकर राजा के क्रोध को सहन कर लेते हैं, वे नाराज़ राजा को भी खुश करने में सफल हो जाते हैं। विद्वानों, बुद्धिजीवियों, बहादुरों का सम्मान राजा के सिवा और कोई नहीं कर सकता। जो मनुष्य अपनी उच्च जाति आदि के अभिमान में 'डबा रह कर राजाओं के पास नहीं जाते, वे असफलता और निराशा के सिवा कुछ भी नहीं पाते। राजा का सहारा लेकर ही बुद्धिमान लोग उचित स्थान पाते हैं, तब बुद्धिमान लोगों के लिए राजा को वश में करना कौन-सा कठिन है |

तब करटक ने पूछा-“भाई दमनक, आखिर तुम कहना क्या चाहते हो?" “मैं तुमसे केवल यह कहना चाहता हूं कि आज हमारा स्वामी और उसका परिवार डरा हआ है। उसके पास जाकर भय का कारण जानना चाहिए, फिर संधि, विरोध, लड़ाई, हमला करना या चुप रहकर मौके की तलाश करनी चाहिए। किसी ताकतवर का सहारा लेना, राजनीति के ये दांव-पेंच हैं मेरे भाई, इनमें से कोई भी दाव लगाया जा सकता है। “परन्तु भाई, तुमने यह कैसे जाना कि हमारा स्वामी डरा हुआ है ?" करटक ने जानना चाहा।

"मेरे भाई, कही हुई बात को तो पशु भी भांप लेते हैं, परन्तु जो बुद्धिमान हैं वे बिना कही बात को भी चेहरे से जान जाते हैं जैसा कि मनु जी ने कहा है-आकार, मुख की बनावट, इशारा, चाल-ढाल, बोलचाल, आंख द्वारा मन के अन्दर की बातें जानी जा सकती हैं। इसलिए मैंने यह सब जान लिया है। मैं निडर होकर सिंह के पास जाऊंगा और उसकी पूरी-पूरी सहायता करूंगा।" “मगर भाई, आपको तो अभी राज-दरबार में जाना ही नहीं आता तो आप सेवा कैसे करेंगे?" करटक ने कहा।

दमनक ने हंसकर उत्तर दिया, “वाह ! मैं क्या राजा की सेवा करना नहीं जानता, पिता जी की गोद में खेलते हुए मैंने घर में आने वाले साधु, सन्यासियों और विद्वानों से जो ज्ञान की बातें सुनी थीं वे सब-की-सब मैंने अपने दिल में बैठा ली थीं उनका सार इस प्रकार है इस सुन्दर पृथ्वी को, 'शूर', 'विद्वान' और जो 'सेवा' धर्म जानते हैं, यह तीन प्रकार के मनुष्य ही ढूंढा करते हैं । सेवा वही है जो स्वामी का हित करने वाली हो, इस प्रकार की सेवा केवल समझ ही ली जाती है । इसलिए विद्वानों को चाहिए कि वे सेवा द्वारा ही राजा को खुश रखकर उसका सहारा लें, किसी दूसरे तरीके से नहीं।

पंडित को चाहिए कि अपने गुणों को न जानने वाले की सेवा न करे। जिस प्रकार बंजर भूमि पर हल जोतने और फसल बोने का कोई लाभ नहीं, वैसे ही मन्द बुद्धि वाले प्राणी से विद्या एवं गुण की बात करना बेकार है। "गरीब एवं छोटे वर्ग के लोग यदि गुणवान हों तो उनकी सेवा अवश्य करनी चाहिए, क्योंकि जीवन में कभी-न-कभी ऐसा समय आ ही जाता है जब ऐसे लोग काम आ जाते हैं। चाहे इंसान भूखा-प्यासा बैठा रहे लेकिन कभी भी विचारहीन धनवान राजा को त्याग दें। से सहायता न मांगे । जिसका सहारा लेकर भूखा नौकर पेट न भर सके, उस रजा को त्याग दे |

राजमाता, राजकुमार, मुख्यमंत्री और राजपाल से भी राजा के समान बर्ताव करें | अपने कर्तव्य का पालन करने वाला सेवक सदा राजा को अच्छा लगता है। अपने स्वामी द्वारा दिए गए धन से जो दास खश होता है और अपने और गुणवान गिना जाता है। स्वामी का धन्यवाद करता है, वह नौकर सदा अपने स्वामी की नज़रों में अच्छा और गुड्वान गिना जाता है |

इसी तरह जो वीर युद्ध के समय आगे-आगे, नगर में पीछे-पीछे और राजमहल के द्वार पर रहता है, वही राजा को अच्छा लगता है । जो सेवक, नआ को अपराध, शराब को जहर और पराई औरत को बेकार समझता है, वह राजा का अत्यन्त प्रिय होता है। जो प्राणी यह जानते हुए भी कि मैं राजा की नज़रों में अच्छा हूं और राजा मेरी बात मानते हैं, फिर भी वह विधान और नियमों का उल्लंघन नहीं करता वही बुद्धिमान होता है। जो पुरुष मालिक की अनुचित बात का बुरा न माने और निडर होकर युद्ध में लड़ता है, परदेस को भी अपना देश मानता है, वह राजा को सदा अच्छा लगता है।"

“वाह.... वाह.... भाई बहुत खूब, यह बातें तो सब ठीक हैं अब आप यह बताओ कि वहां जाकर पहले क्या पूछेगे ?" करटक ने हंसते हुए पूछा। । “ये सब बातें बातों से ही निकलती हैं, जैसे अच्छी वर्षा होने पर एक बीज से दूसरा बीज पैदा होता है। किसी के मन में पाप होता है उसकी जबान मीठी होती है, किसी की जबान कड़वी होती है मन मीठा और किसी की बात भी अच्छी होती है और मन भी साफ, इसलिए मैं ऐसी कोई बात नहीं करूंगा जिससे कोई बुरा प्रभाव पड़े।” 

तब करटक कुछ देर सोच में डूबा रहने के पश्चात् बोला, “भाई, राजा लोग बड़ी कठिनाई से ही काबू आते हैं, क्योंकि वे सदा चापलूसी, खुशामदी और बड़े-बड़े लोगों से घिरे रहते हैं जो उन्हें निचले लोगों से मिलने ही नहीं देते, उन तक पहुंचना भी कठिन हो जाता है।" “हां, भैया ! मैं यह बात जानता हूं और साथ में यह भी जानता हूं कि मनुष्य अपनी तीव्र बुद्धि से ही इन सबको जीत सकता है, वह अपना रास्ता स्वय बनाता है। बद्धिमान व्यक्ति जब राजा तक पहंच जाते हैं तो यह पापी. खुशामदी लोग राजा की नज़रों से गिर जाते हैं।

यह रहस्य बड़ी ही कठिनाई से प्राप्त होता है क्योंकि ज़रा-सी बुराई पर राजा के क्रोध का शिकार होकर दंड का भागी बनता है।" दमनक ने कहा कि यह ठीक है, किन्तु जिसकी जैसी करनी वैसी भरनी । बुद्धिमान पुरुष अपना स्थान स्वयं बनाते हैं, सेवक का अच्छा आचरण यही है कि वे अपने स्वामी की हर आज्ञा का पालन करे । मीठी बोली से तो पत्थर भी पिघल जाते हैं। राजा के क्रोधित होने पर प्यार से उसका मन जीते, उसकी मनपसंद वस्तुओं से प्यार करे, बिना तंत्र-मंत्र के ही बुद्धिमान लोग दूसरे का मन जीत सकते हैं

करटक ने अपनी हार मानते हुए कहा, “ठीक है, यदि तुम्हारे यही विचार हैं तो तुम अवश्य यही करो, जो तुमने सोचा है।" तब दमनक हंसा और उस शेर की ओर चल दिया। शेर ने जैसे ही दमनक को अपनी ओर आते देखा तो अपने मंत्री से कहा, "देखो, वह हमारे पुराने मंत्री का पुत्र आ रहा है, उसे आदर से हमारे पास लाओ।" जब दमनक जंगल के राजा शेर के सामने गया तो उसने उसे अपना सिर झुकाकर प्रणाम किया।

जंगल का राजा पिंगलक अपने पुरानी मंत्री के पुत्र को देखकर बहुत खुश हआ और अपने पास बैठाकर प्यार से उसकी पीठ पर हाथ फेरते हए पछने लगा "कहो मित्र कैसे हो, बहत दिनों के पश्चात मिले हो ?" दमनक बड़े प्यार से बोला, “महाराज ! भले ही आप हमें भूल गए हों किन्त हम आपको कैसे भूल सकते हैं, क्योंकि हम आपके पुराने वफादार साथी * आज जब हमने आपको दुःख में घिरे उदास देखा तो हमसे नहीं रहा गया. ऐसे कठिनाई के समय तो इंसान को अपने-पराये का पता चलता है। अपने कर्तव्य का पालन करना हमारा फर्ज है । महाराज, आप तो जानते ही हैं

यदि कोई राजा अपनें सेवकों के गुणों की कद्र नहीं करता तो सेवक साथ नहीं देते । ऐसे ही जब कोई राजा अपने बुद्धिमान सेवक को नीचे फेंकता है तो उसके मन में घृणा पैदा हो जाती है, इसमें उस सेवक का कोई नहीं होता। जैसे सोने के गहनों में जड़ा जाने वाला हीरा पीतल में जड़ दिया जाए तो वह हीरा शोभा नहीं देता है किन्तु देखने वाले ही उसे जड़ने वाले से घृणा करते हैं। अत: आपने जो मुझसे पूछा कि बहत दिनों बाद आये हो, इसका उत्तर तो यही है कि जहां पर दांयें-बांयें में कोई अन्तर न समझ पाए, वहां पर बुद्धिमान रुके भी तो कैसे ?

जिस देश में जौहरी न हों वहां पर सागर से निकले मोतियों की कीमत नहीं लग सकती। जिनकी बुद्धि कांच को मणि और मणि को कांच समझती है, उनके पास नौकर नाममात्र को भी नहीं ठहरता। जहां लाल मणि और वैद्य मणि में कोई भेद नहीं समझा जाता वहां रत्नों की दुकानदारी कैसे की जा सकती है ? जहां मालिक सब नौकरों से उनकी योग्यता और अयोग्यता आदि का विचार न करके एक-सा वर्ताव करता है, वहां पर बुद्धिमान सेवकों के दिल टूट जाते हैं।

इस प्रकार न बिना सेवकों के राजा और न राजा बिना सेवक रह सकते हैं, दोनों एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं । जो राजा प्रजा का मन न जीत सके, जनहित के काम न करे, उसे किरणों के बिना सूर्य ही कहा जा सकता है। जो राजा खुश होकर अपने वफादार बहादुर नौकरों को इनाम देता है, वही नौकर समय आने पर राजा के लिए अपनी जान तक न्यौछावर कर देते हैं । जो नौकर भूख, गर्मी, सर्दी आदि से नहीं घबराता वही वफादार हो सकता है |

दमनक की ज्ञान-भरी बातें सुनकर पिंगलक बोला "हां, तुम ठीक कहते हो ! तुम यदि कुछ करने योग्य हो तो जो कुछ भी कहना चाहते हो निडर होकर कहो।" “मैं तो केवल निवेदन ही करना चाहता हूं देव !" दमनक ने कहा। "तो फिर संकोच क्यों ? जो कहना है कहो ।” पिंगलक शेर ने हंसकर कहा। “देखो देव, राजा का जो भी काम हो उसे सबके सामने नहीं गुप्त में कहना चाहिए, क्योंकि गुप्त बात छ: कानों में जाने से किसी भी मुसीबत का कारण बन सकती है।”

पिंगलक ने दमनक की बात को बड़े ध्यान से सुना और बात उसके दिल को लगी, फिर उसने अपनी आंख के इशारे से वहां पर बैठे सब जानवरों को जाने का इशारा किया। सारे जानवर जैसे ही वहां से गए तो दमनक ने शेर की ओर देखकर कहा  “हे जंगल के राजा, अब आप बताओ कि जब तुम नदी किनारे पानी पीने गए थे तो वापस क्यों आ गए ?" शेर ने हंसकर कहा, “वैसे ही....।"

“देखिए महाराज, इस बात को छुपाओ मत, यदि यह कहने योग्य नहीं है तो रहने दो, वैसे इस विषय में कहा गया है- औरत से, मित्रों से, युवा मित्रों से गुप्त विचार कुछ न कुछ छुपा लेना चाहिए, परन्तु यह उचित है अथवा नहीं ऐसा सोचकर बुद्धिमान को चाहिए कि बड़ों के अनुरोध पर गुप्त से गुप्त बात भी समय आने पर कह डाले।" । दमनक की बात सुनकर शेर सोच में पड़ गया, क्योंकि उसकी बात में वज़न था और फिर वह सच्चा मित्र लग रहा था। मित्रों के बारे में कहा गया

सच्चे मित्र, वफादार नौकर, बुद्धिमान स्त्री, दयालु कोमल हृदय मालिक के आगे अपना रोना रोकर आदमी अपने दिल का बोझ हल्का कर लेता है, इसलिए शेर ने अपने मन की बात होंठों पर लाते हुए कहा
“भद्र, मैं इस जंगल से जाना चाहता हूं।" "परन्त क्यों, जंगल का राजा होकर आप ऐसा क्यों सोच रहे हैं ?" दमनक ने पूछा। मेरे पराने मित्र, मैं आपसे क्या छुपाऊं, वास्तव में इस जंगल में अदभत जन्त आ गया है, जिसकी गर्जना ही इतनी भयंकर है कि डर के मारे कलेजा. हिल जाता है, सोचो, उसकी शक्ति कितनी होगी ?"

नक ने हसकर शेर की ओर देखा फिर बड़े अन्दाज़ से कहने लगाराज आप उसकी गर्जना से ही डर गए, यह बात ठीक नहीं है। कहा से बांध टूट जाता है, चौकस न रहने से गप्त विचार प्रकट हो जाता है, चुगली करने से प्रेम टूट जाता है और दुःखी जन कठोर वचनों से अलग हो जाते हैं। अपने पूर्वजनी द्वारा उपार्जित इस वन को छोडना आपके लिए ठीक नहीं, यह बात याद रखने योग्य है कि अत्यन्त उग्र और भयंकर शत्रु से मुठभेड़ होने पर भी जिसका धीरज नहीं छूटता वह राजा कभी भी हार का मुंह नहीं देखता । गर्मी के दिनों में तालाब तो सूख जाते हैं किन्तु सागर कभी नहीं सूखता।

अत: जो मुसीबतों से नहीं डरता, सुख में खुश नहीं होता, युद्ध में डरता नहीं, ऐसा वीर पुत्र तो कोई-कोई मां ही पैदा कर सकती है। बल न होने से नम्र, नि:सारता होने से लघु एवं मानरहित पुरुष का जन्म लेना वैसे ही बेकार है जैसे सुन्दर होते हुए भी लाख का गहना बेकार होता है। यह सब समझ कर मालिक को धैर्य रखना चाहिए। इस प्रकार डर कर भागने से तो आपकी बदनामी होगी, पहले मैं भी समझा था कि वहां पर कोई भयंकर जानवर है, पर जब देखा तो धोखा था।