न कोई छोटा, न कोई बड़ा-पंचतंत्र की कहानियां

Apr 03,2021 06:46 AM posted by Admin

एक समय वर्धमान नगर में एक सेठ दन्तिल रहता था जो गांव का मुखिया भी था । दन्तिल समाज सेवी और अच्छे स्वभाव का व्यक्ति था। उसे दुखियों एवं गरीबों से बड़ी हमदर्दी थी। यही कारण था कि राजा और जनता दोनों की नज़रों में वह अच्छा माना जाता था।
राजा का हित करने वाला जनता में अच्छा नहीं माना जाता और जनता पक्षपात करने वाले को राजा लोग अच्छा नहीं मानते । इस प्रकार राजा और प्रजा के बीच में कोई-कोई व्यक्ति ही अपने-आपको दोनों की नज़रों मेंअच्छा सिद्ध कर पाता है।

कुछ समय बीतने पर दन्तिल का विवाह हुआ, उस खुशी के अवसर पर उसने सभी नगरवासियों और राज-कर्मचारियों को प्यार से निमन्त्रण भेजकर भोजन कराया । विवाह के पश्चात् उसने राजा को परिवार सहित घर में बुला कर उनको भोज करवाया, उस अवसर पर आए हुए राजगृह की सफाई करने वाले गोरम्भ नामक एक नौकर को उसने अनुचित स्थान पर बैठे होने के कारण उसे धक्का देकर निकाल दिया। तब से वह नौकर अपमान के कारण लम्बी-लम्बी सांसें लेता हआ रात में भी नहीं सोया था।
अत: कई रातों तक बेचारा नौकर यही सोचता रहा कि मैं अपने इस अपमान का बदला सेठ और राजा से कैसे चुकाऊं। तब उसने सोचा कि इस शरीर को सुखाने से क्या लाभ, उसे तो जितनी जल्दी हो सके उनसे बदला लेना होगा, किसी ने ठीक ही कहा है

जो किसी का कुछ बिगाड़ सकने में असमर्थ हो, वह निर्लज्ज मनुष्य क्यों क्रोध करता है ? क्या उछल-कूद करके कोई चना भाड़ को फोड़ सकता है ?"
एक रात्रि राजा पलंग पर लेटे हुए थे, तब वह गोरम्भ वहां की सफाई कर रहा था, वह अपने आप बोलने लगा
"अरे उस दन्तिल की यह मज़ाल कि वह रानी का आलिंगन करे।"
राजा जो उस समय पलंग पर लेटा हुआ था गोरम्भ के मुंह से यह शब्द सुनकर उठ कर बैठ गया और गोरम्भ से पूछने लगा-
"अरे गोरम्भ ! क्या जो कुछ तू कह रहा है, यह ठीक है ?"
“राजन ! वास्तव में यह बात है कि रात-भर मैं भजन करता रहा जिसके कारण नींद पूरी नहीं हुई, अब सफाई करते-करते मेरी आंख लग गई, मुझे नहीं पता कि.नींद में ही मैं क्या कुछ कह गया ?”
राजा ने नौकर की बात सुनी ज़रूर लेकिन उसे संदेह हआ, उसे यह पता था कि यह ही एक नौकर है जो खुलेआम मेरे महलों में आता-जाता है। इसी प्रकार दन्तिल भी आ जाता है । इसने जो रानी का आलिंगन करने की बात कही है, यह किसी हद तक ठीक हो सकती है, यह बात झूठ नहीं हो सकती।
कहा जाता है कि प्राणी दिन में जो चाहता देखता और करता है वही नींद में बुद्बदाया करता है और भी अच्छी बुरी बात जो मनुष्य के दिल में रहती है, वह नींद या नशे की हालत में अपने-आप ही बाहर आ जाती
- और रह गई स्त्रियों की बात, इनके दिल की गहराई में झांकना तो बड़ा ही कठिन है।

"लकड़ी से आग की।” “नदियों से सागर की।" “पुरुषों से स्त्रियों की।" कभी भी तृप्ति नहीं होती।
जो मूर्ख पुरुष यह समझता है कि यह मेरी स्त्री मुझसे प्रेम करती है, वह उसके फंदे में सदा पक्षी की भांति फंसा रहता है। जो औरतों के थोड़े बहुत कैसे ही वचनों या छोटे-बड़े कैसे ही कार्यों को मानता है, वह लोक में उन कार्यों द्वारा लघुता को प्राप्त होता है।
अत: औरतों की जो भी सेवा करता है और पास में रहता है, प्यार से बोलता है, उसी को वह चाहने लगती है।
पुरुषों के द्वारा न चाहे जाने पर, परिवार वालों के भय से, मर्यादा में न रहने वाली औरतें भी सदा सती धर्म में स्थिर रहती हैं।
औरतों के लिए कोई भी अगम्य नहीं, न ही इनकी आयु का विचार होता है, चाहे कोई विशेष सुन्दर हो चाहे मामूली यह तो पुरुष मात्र का भोग करती
है
औरतों का प्रेमी साड़ी के समान भोग्य प्रिय हो जाता है।
यही सब बातें सोचकर राजा शंका के सागर में डूब गया था वह उदास रहने लगा. यहां तक कि उसने राज-दरबार के कामों में भी रुचि लेना छोड दिया था।
दन्तिल ने एकदम राजा को उदास देखकर, वह सोचने लगा कि यह ठीक
ही कहा जाता है
भरपाकर कौन गर्व नहीं करता ? किस के दुःख समाप्त हए ? धरती पर औरतों द्वारा किसका दिल नहीं तोड़ा गया ? राजा का प्यारा कौन है ? क्रर काल की नज़र किस पर नहीं पड़ी (कोई नहीं।


इसी तरह कौवे में शुद्धता, जए में सत्यता. सर्प में क्षमा, औरतों में विषय शांति, नपुंसक में धीरता, शराबी में चिन्ता अथवा अच्छे विचार और राजा मित्र किसने देखा या सुना है अर्थात् किसी ने नहीं।
मैंने आज तक इस राजा या इसके सम्बन्धी का अपमान नहीं किया, फिर यह मुझसे इस प्रकार क्यों रूठा रहता है ? मेरे पास क्यों नहीं आता-जाता? मझे कभी नहीं बुलवाता ? इस प्रकार बहुत दु:खी होकर दन्तिल एक दिन राज दरबार की ओर चल पड़ा।

द्वारपाल के पास खड़े दन्तिल को देखकर गोरम्भ हंसकर द्वारपाल से कहने लगा
"द्वारपाल जी ! राजा जी के कृपापात्र दन्तिल जी आपके पास खड़े हैं, यह जिसे चाहें जेल भिजवा दें, जिसे चाहें भरी महफिल से धक्के देकर बाहर निकलवा दें, ज़रा इनसे बचकर रहना, कहीं आप भी न निकलवा दिए जाओ।"
" तब गोरम्भ के मुंह से यह शब्द सुनकर दन्तिल ने सोचा कि कहीं यह सब बदमाशी इसी गोरम्भ की ही न हो ? किसी ने ठीक ही कहा है
"चाहे कोई मुर्ख और छोटा ही क्यों न हो, वह यदि राजा की सेवा करता है तो वह छोटा होते हुए भी बड़ा माना जाएगा। चाहे कोई बुज़दिल क्यों न हो यदि वह राजा का सेवक है तो उसे किसी से भी नीचा नहीं देखना पड़ता।"
दन्तिल सब बात समझ गया था, मन-ही-मन पश्चाताप करते हुए वह घर आया फिर उसने गोरम्भ को अपने घर बुला कर उसे कुछ वस्त्र और रुपये इनाम के रूप में देकर कहा1. “हे मित्र, मैंने उस दिन तुम्हें जान-बूझकर धक्का दिया था, क्योंकि तुम ब्राह्मणों से पहले स्थान पर बैठ गए थे इसलिए मजबूर होकर मुझे ऐसा करना पड़ा, किन्तु फिर भी मैं आपसे क्षमा चाहूंगा, आज से हम दोनों मित्र हैं, हममें कोई छोटा-बड़ा नहीं है । बस तुम मेरे प्रिय मित्र राजा की सेवा करो।"
गोरम्भ इस बात से काफी खुश हुआ, क्योंकि विजय उसकी हुई थी। उसके जाने के पश्चात् दन्तिल सोचने लगा
तराज की डंडी और द की एक ही चेष्टा होती है, जो ज़रा से में ऊपर हा जाती है ज़रा से में नीचे चली जाती है।
उधर गोरम्भ दन्तिल से धन, वस्त्र और प्यार पाकर खुशी से फूला नहीं समा रहा था, अब उसने अपनी भूल पर रोना आ रहा था, उसने निर्णय कर लिया था कि वह अब इन दोनों मित्रों के बीच से घणा की दीवार गिरा देगा।

बस फिर क्या था।
अत: दूसरी सुबह जैसे ही वह राजा गोरम्भ राजा के महल में झाडू लगाने गया तो अपने-आप को कहने लगा। “वाह रे ! इस राजा की मूर्खता, जो मल त्याग करते समय ककड़ी खाता
है
राजा ने जैसे ही यह शब्द सुने तो, हैरग्नी से उठते हुए अपने नौकर की ओर देखकर बोला. “अरे ओ, तू यह क्या बक रहा है ? क्या तूने मुझे कभी भी ऐसा करते देखा है ?"
र गोरम्भ हाथ जोड़ते हुए कहा, “महाराज, मैं रात-भर भजन-कीर्तन करता रहा था, झाडू लगाते-लगाते आंख लग गयी, बस नींद में ही सब कुछ बक गया, मुझे माफ़ कर देना।"
राजा, गोरम्भ की बात सुनकर, उस दिन की भी बात सोचने लगा, क्योंकि उसे पता था कि मैंने तो आज तक कभी ककड़ी खाई ही नहीं, तो फिर इसने कैसे यह बात कह दी। इसी प्रकार इसने नींद में वही रानी वाली झूठी बात कही होगी।
अत: राजा सारी बात समझ गया, वह अपनी भूल पर पश्चाताप करने लगा, उसके सारे वहम दूर हो गए थे। उसने दूसरे ही दिन दन्तिल को अपने पास बुलाकर उसे प्यार से अपने गले से लगा लिया। इस प्रकार दोनों मित्र फिर से मिल गए थे।
तब दमनक की बात सुनकर बैल बोला, “ठीक है मित्र, जैसा तम कहोगे मैं वैसा ही करूंगा।"
उसकी बात सुनते ही दमनक उसे लेकर शेर के पास आ गया।
"देखो महाराज ! यह संजीवक है। मैं इसे आपके पास ले आया हं. इससे अधिक मेरी वफादारी का सबूत और क्या हो सकता है।"

सजीवक (बैल) बड़े आदर से शेर को प्रणाम करके उसके निकट जाकर बैठ गया।
 
अब पिंगलक ने भी उसे प्यार से उत्तर दिया और फिर पछा, “अरे भाई !
बैल बेचारा सीधा-सादा था, उसने आरम्भ से लेकर अब तक की सारी कहानी शेर को सुना दी कि उसके मालिक ने उसे किस प्रकार धक्का देकर इस जंगल में छोड़ दिया था।
संजीवक की सारी कहानी सुनकर शेर को उसके साथ बड़ी हमदर्दी हो गई, उसने कहा

"देखो मित्र, तुम आज से मेरे साथी ही नहीं अपितु भाई हो, आज से तुम अकेले नहीं बल्कि मेरे साथ ही रहोगे, क्योंकि यह जंगल मांसखोर जानवरों के लिए भी सुरक्षित नहीं, तुम तो फिर भी घास खाने वाले हो ।”
बैल शेर की बात सुनकर बहुत खुश हो गया था उसे पहली बार सच्चा मित्र मिला था। खुशी के मारे उसकी आंखों से आंसू निकल आए थे, इस समय उसे अपना स्वार्थी मालिक भी याद आ रहा था जो उसका पांव तोड़कर जंगल में फैंक गया था। कितने लम्बे समय तक वह अकेले जंगल में घूमता रहा था। अकेले समय काटना बड़ा कठिन है, जिसका कोई मित्र न हो वह बेचारा क्या करे ? । अब बैल अपने नये मित्रों को पाकर अत्यन्त खुश हआ। सबसे अधिक खुशा की बात तो यह थी कि जंगल के राजा शेर के साथ उसकी दोस्ती हो गया था, अब तो वह चिन्ता-मक्त इस जंगल में रहने लगा था। उसे सबसे साधक प्यार करटक और दमनक से थे, क्योंकि इन दोनों के कारण तो वह
तक पहुच पाया था। यही कारण था कि इन तीनों की मित्रता दिन-प्रति-दिन
ता चली जा रही थी और जानवरों से दर रहकर यह तीनों मित्र घंटों तक आपस में बातें करते रहते।
सरा और जंगल का राजा शेर था। उसने भी धीरे-धीरे बैल से इतना पढ़ा लिया था कि उसे एक मिनट के लिए उस संजीवक से दूर रहमा

कठिन होने लगा, किन्तु शेर और बैल की मित्रता करटक और दमनक के लिए भारी पड़ने लगी थी। वे दोनों नहीं चाहते थे कि उनका मित्र बैल हर समय शेर के साथ घूमता रहे, आखिर सबसे पहले तो वह उनका ही मित्र था और फिर वे दोनों राजा के बिना भी तो जंगल में शिकार को नहीं जा सकते थे। कहा गया है कि .....
यदि अच्छा और प्रभावशाली राजा भी फलहीन हो तो लोग उसे छोड़कर उसी प्रकार दूसरी जगह चले जाते हैं जिस प्रकार सूखे वृक्ष में पंछी उसे छोड़कर चले जाते हैं।
इसी प्रकार वेतन न मिलने पर बड़े-बड़े वफादार नौकर भी उस राजा को छोड़कर चले जाते हैं जो उनसे हार्दिक प्यार करता हो । परन्तु जो राजा ठीक समय पर अपने नौकरों को वेतन देता हो, उसकी घृणा, डांट-डपट को भी नौकर भूल जाते हैं।
इस प्रकार से न केवल नौकर और मालिक बल्कि सारा संसार ही एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है, इस श्रृंखला में साम, दाम दंड पर माला बनी हुई
कहा गया है कि देश पर राजा, बीमार पर डाक्टर, ग्राहक पर दुकानदार, मों पर पण्डित, आलसी जनों पर चोर, कामियों पर वेश्याएं और सब लोगों पर कारीगर सामादि से सज्जित पाशों से दिन-रात दृष्टि जमाए रखते हैं । जिस प्रकार पानी से पैदा होने वाले पदार्थ बादलों की प्रतीक्षा करते रहते हैं। वे सब एक-दूसरे की शक्ति से जीते हैं अथवा ठीक ही कहा जाता है कि सी दष्टों और दसरों का धन हरण करने वालों के अभिप्राय सिद्ध नहीं होते. इसीलिए यह जगत वर्तमान है, अन्यथा कभी का नष्ट हो गया होता।
साधारण आदमी की तो बात ही क्या कहें, भगवान शंकर के घर में ही रही का सेवक भूखा सर्प, उनके पुत्र गणेश के वाहन को ही खाना चाहता है. मोर को भी पार्वती जी का वाहन शेर खाना चाहता है । जब भगवान शंकर के
यदी यह हाल है कि वे एक-दूसरे को खा जाना चाहते हैं तो फिर संसार के बाकी स्थानों पर ऐसा क्यों नहीं होगा !

अतः मालिक की दया से वंचित, भूख और प्यास से व्याकुल वे दोनों एक और दमनक, आपस में बैठकर सलाह करने लगे।
दमनक ने अपने मित्र से कहा, "भाई, अब यह शेर बैल की दोस्ती में सब कल भल गया है, धीरे-धीरे इसके सभी साथी इसे छोड़कर चले गए हैं, आखिर कब तक कोई भूखा मरेगा ? जब राजा को प्रजा का ख्याल न हो तो प्रजा भी कहां तक साथ देगी, अब तो हमें भी सोचना पड़ेगा कि हम क्या करें ?" । “भाई, यदि हमारा मालिक हमारा कहना नहीं मानता तो हमें उससे कहना ही चाहिए ताकि लोग हमें दोषी न कहें, इसके लिए ही कहा जाता है
कि राजा चाहे न सुनता हो तो भी मंत्रियों द्वारा उसे समझाना चाहिए, जैसे कि अपने दोष से बचने के लिए विदुर ने अम्बिका पुत्र धृतराष्ट्र को समझाया था और गदोन्मत्त राजा और हाथी कुमार्ग में जाने पर उनके समीपस्थ महामन्त्री और महावत ही निन्दित होते हैं।
घासाहारी बैल को जो तुम मालिक के पास ले गए हो तो तुमने अपने हाथों में अंगार खींच लिया है।" । “भाई, मैं यह मानता हैं कि यह सारा दोष मेरा ही है। इसमें मालिक का कोई दोष नहीं है ।" दमनक ने कहा।
“लेकिन सोचने की बात तो यह है कि इस स्थिति में हम दोनों को क्या करना चाहिए।"
“करटक भाई, तुम चिन्ता मत करो, ऐसे अवसर पर भी मेरी बुद्धि काम करेगी, इसी बुद्धि ने बैल को शेर तक पहुंचाया था, अब यही शेर से बैल को अलग कर देगी। लोग कहते हैं कि धनुष से निकला तीर एक ही व्यक्ति को भारता है दसरे को नहीं भी मारता लेकिन बद्धिमान की बद्धि राजा सहित सारे राज्य को नष्ट कर देती है, सो मैं अपनी नई चाल से इन दोनों को एक-दूसरे से
अलग कर दूंगा।"
भाई  दमनक । एक बात याद रखना, यदि तम्हारी इस चाल का शेर बैल दोनों में से किसी को पता चल गया  तो समझ लो हमारी जान की खैर नहीं |
 

ऐसी बात मत कहो मित्र ! मुसीबत के समय तो बड़े-बड़े लोगों की बुद्धि काम करने लगती है, अब तो हम दोनों ही अकेले पड़ गए हैं. यदि हमने हिम्मत से काम न लिया तो वैसे भी हमारा क्या जीना है !
याद रखो-उद्योगी को ही सदा लक्ष्मी मिलती है, भाग्य का सहारा तो केवल बुज़दिल लोग लेते हैं । यत्न करने पर भी यदि कार्य सिद्ध न हो तो कोई बात नहीं। कहा गया है
जो काम तरीके से हो सकता है, वह शक्ति से नहीं, जैसे कौवी ने सोने की माला द्वारा काला सांप मार दिया।
“वह कैसे भैया ?" __लो सुनो, मैं तुम्हें सुनाता हूं