मूर्ख मित्र से बुद्धिमान शत्रु अच्छा-पंचतंत्र की कहानियां

Apr 03,2021 08:51 AM posted by Admin

एक राजा ने बड़े प्यार से एक बन्दर को पाला था। राजा और बन्दर में बहत ही प्यार था । वास्तव में वह बन्दर भी राजा का सच्चा सेवक था। वह राजा के बहुत से काम अपने आप कर दिया करता था। इस प्रकार राजा और बन्दर की मित्रता आदर्श थी। एक बार दोपहर में राजा जी सो रहे थे, गर्मी से राजा को बचाने के लिए बन्दर पंखा कर रहा था। एक मक्खी बार-बार राजा की छाती पर आ बैठती, बन्दर पंखे से उसे हर बार उड़ा देता, मक्खी उड़ती और फिर वहीं पर आकर बैठ जाती । बन्दर को इस मक्खी पर क्रोध भी आया, उसने पास टंगी हुई तलवार को उठाकर उसकी छाती पर बैठी मक्खी पर भरपूर वार किया, मक्खी तो उड़ गई परन्तु राजा जी के शरीर के दो टुकड़े हो गए।

इसलिए जो कोई अधिक समय तक जीना चाहे तो उसे मूर्ख सेवक नहीं रखने चाहिए।किसी शहर में एक बहुत बड़ा विद्वान पंडित रहता था । किसी कारणवश वह बेचारा चोर बन गया। एक दिन उसने किसी बाहर के देश से आए चार ब्राह्मणों को कुछ कीमती चीजें बेचते देखा तो उसके मुंह में पानी भर आया। वह सोचने लगा कि इन्हें कैसे पाऊं?

वह थोड़ी देर सोचकर उनके पास पहुंचा और ऊंचे-ऊंचे श्लोक बोलने लगा। उसे इस प्रकार श्लोक पढ़ते देख वे ब्राह्मण बड़े खुश हुए और उन्होंने इस ब्राह्मण को अपना नौकर रख लिया। किसी ने ठीक ही कहा है
“अत्यन्त शर्मीली स्त्री कुल्टा होती है।" “खारा पानी ठण्डा होता है।" “मीठी बातें करने वाला पुरुष चालाक होता है।" उन चारों ब्राह्मणों ने उन चीज़ों को बेचकर और भी कीमती सामान खरीदा। उस ब्राह्मण सेवक ने सोचा कि क्यों न मैं इन चारों को रास्ते में ही ज़हर देकर मार डालूं और सारा सामान लेकर चलता बनं । इस प्रकार मैं अमीर बन जाऊंगा। वे पांचों ब्राह्मण चलते-चलते एक गांव के पास से गुजरे तो वहां पर बैठे नाईयों ने उन्हें देखते ही शोर मचाना आरम्भ कर दिया "अरे गांव वालो, दौड़ो...दौड़ो....पकड़ो..... यह बहत बड़े धनी हैं |लाखो रूपये का माल है इनके पास , छीन लो .....

नाईयों की आवाज़ सुन, गांवों के लोग लाठियां और भाले लिए हए घरों से निकल आए। आते ही उन्होंने इन पांचों ब्राह्मणों को घेरकर उनकी तलाशी ली, किन्तु आश्चर्य की बात यह कि उनके पास से तो कुछ भी न
निकला। गांव वालों ने उनसे कहा“देखो ब्राह्मणों, इन नाईयों की बात आज तक झूठी नहीं निकली धन तो तुम्हारे पास ज़रूर है, इसलिये तुम अपने आप उस धन को निकाल दो नहीं तो हम तुम्हारे शरीर की चमड़ी तक उधेड़कर उसमें से भी धन निकाल लेंगे।" । उनकी यह बात सुन जो चोर ब्राह्मण था उसने सोचा कि मैं तो इनका नौकर हूं और पापी भी हूं फिर क्यों न इन ब्राह्मणों के लिए अपने आपको कुर्बान कर दूं, इससे मेरे पुराने पाप भी, धुल जाएंगे मौत तो इन्सान को कभी-न-कभी आनी ही है। । यह सोचकर उसने गांव वालों से कहा, "अरे भाईयो, तुम सबसे पहले मेरे शरीर के अंग काटकर देखो, यदि तुम्हें इसमें से धन मिल गया तो ठीक समझ लेना कि इन चारों के शरीर में धन होगा, नहीं तो इनको मारने का भी कोई लाभ नहीं होगा।"

उस ब्राह्मण की बात सुनते ही उन्होंने उसके शरीर को काट डाला और चमड़ी उधेड़ डाली, किन्तु उसके पास धन था ही नहीं तो निकलता कहां से ? जब उसके पास धन न निकला तो गांव वालों ने उन चारों
ब्राह्मणों से कहा कि तम अब जा सकते हो। इसलिए मैं कहता हूं कि पंडित शत्रु भी अच्छा होता है।अभी करटक और दमनक दोनों यह बातें कर ही रहे थे कि शेर ने अपने मित्र बैल को मार डाला। बैल को मरा देखकर शेर रोने लगा था और कह रहा था कि वास्तव में ही तुम मेरे अच्छे मित्र थे, तुम्हारे जैसा मित्र मुझे इस दुनिया में नहीं मिलेगा। तुम्हें मारकर मैंने बहुत बड़ा पाप किया है।शेर को इस प्रकार रोते देखकर दमनक ने प्यार से कहा“महाराज, मां, बाप, पुत्र, पत्नी यदि कोई भी प्राण लेने आवे तो उसे मार देना ही अच्छा होता है, शत्रु को मारने से कोई पाप नहीं होता।" दमनक के समझाने पर शेर ने अपने आंसू पोंछ डाले और साथ ही बैल के स्थान पर दमनक को अपना मन्त्री बना दिया, दमनक की यह चाल सफल हुई