मूर्ख ही मूर्ख-पंचतंत्र की कहानियां

Apr 05,2021 04:32 AM posted by Admin

एक बार किसी वृक्ष पर त्रिकुख नाम का एक पक्षी रहता था। उसकी बीट से सोना पैदा होता था। एक बार एक शिकारी उसका शिकार करने के लिए आया। उस पक्षी ने उसके सामने बीट की, वह बीट जैसे ही धरती पर गिरी सोना बन गई । यह देखकर शिकारी को बड़ी हैरानी हुई।

वह सोचने लगा कि मैं बचपन से लेकर अस्सी वर्ष की आयु तक पहुंचते हुए निरन्तर शिकार करता आया हूं, लेकिन आज तक मैंने किसी पक्षी की बीट में सोना नहीं देखा। यह सोचकर उसने पेड़ पर जाल फैंक दिया-वह मूर्ख पक्षी उस जाल में फंस गया, शिकारी ने उसे पिंजरे में बन्द किया और घर की ओर चल दिया। कुछ दिनों पश्चात् उस शिकारी ने सोचा कि मैं इस कीमती पक्षी को रखकर क्या करूंगा, क्योंकि यदि किसी ने इसके गुण को देखकर राजा से कह दिया तो निश्चय ही मेरे प्राण खतरे में होंगे, क्यों न मैं ही इस पक्षी को स्वयं ही राजा को दे दू |

यह सोचकर शिकारी उस पक्षी को राजा के पास ले गया। राजा ने जैसे ही सोने की बीट करने वाला पक्षी देखा तो बड़ा खुश हुआ। उसने अपने नौकरों से कहा कि इस पक्षी को संभाल कर रखना और इसकी पूरी तरह रक्षा करना। पास खड़े मन्त्री ने कहा "महाराज ! आप इस पागल शिकारी के कहने पर विश्वास कर रहे हैं, भला कोई पक्षी भी सोने की बीट कर सकता है ? अत: इसे आप पिंजरे से आज़ाद कर दीजिए, बेकार के पक्षी को पिंजरे में रखने का क्या लाभ मन्त्री का कहना मान राजा ने उस पक्षी को छोड़ दिया, पिंजरे से निकलते ही वह ऊंचे वृक्ष पर जा बैठा।

वहां पर बैठते ही उसने सोने की बीट कर दी। राजा और मंत्री दोनों ही आश्चर्य से देखते रह गए। पक्षी अपने स्थान से उड़ गया और जाते-जाते यह कह गया कि पहले तो मैं ही मूर्ख हूं, उसके पश्चात् तुम सब के सब इस पर भी उन लोगों ने किसी की न सुनी और वह कौवे को मांस आदि खिलाकर पालते रहे। उल्लू राजा के बड़े मंत्री ने अपने दल के लोगों को इकट्ठा करके कहा "भाइयो ! अब यहां पर रहने में खतरा है। राजा ने हमारी बात न मानकर सबसे बड़ी भूल की है। इसलिए हमें यह स्थान छोड़कर किसी दूसरे स्थान पर चले जाना चाहिए।

बड़े लोग कहते हैं, जो मुसीबत के समय से पहले ही अपना बचाव नहीं करता वह पछताता है । इस जंगल में रहते-रहते मैं बूढ़ा हो गया । पर मैंने कभी गुफा को बोलते नहीं सुना।”वह कैसे बोल सकती है ? उन लोगों ने पूछा। “सुनो, मैं तुम्हें बताता हूं।"