लालच विनाश का मूल-पंचतंत्र की कहानियां

Apr 06,2021 01:35 AM posted by Admin

किसी देश में चन्द्र नाम का एक राजा राज करता था। उसका एक रसोइया था। जिसका नाम बुद्ध था। उसके महल में भेड़ों के बच्चे रहते थे और ऊपर बंदर रहते थे। भेड़ के बच्चे जब रसोई में घुसकर भोजन को जूठा करते तो बुद्धू उन्हें मारता था। बंदरों की इस टुकड़ी के साथ राजा चन्द्र के बच्चे खब खेलते थे। बंदरों के सरदार ने सोचा कि इस रसोइये और भेड़ों का झगड़ा एक दिन उसके विनाश का कारण बनेगा, क्योंकि बुद्धू उस भेड़ के बच्चे को खूब मारता है। यदि किसी दिन रसोइये ने जलती लकड़ी से इसको मारा तो यह जलेगा ही साथ ही पड़ी घोड़े की घास को आग लगेगी, जिससे चारों ओर आग फैलेगी। इससे घोड़ें भी जलते क्योंकि राज वैद्य ने कहा कि बंदर की चरबी से घोड़ों के घाव अच्छे होते हैं इसलिए हमारा विनाश होगा। बड़ो ने कहा है कि ऐसे अवसर पर उस स्थान को छोड़ देना चाहिए जिसमें जान का खतरा हो। बंदर सरदार की बात सुनकर दूसरे बंदरों ने हंसते हुए कहा कि आप बूढ़े हो गए है जिसके कारण आपकी बुद्धि भ्रष्ट हो चुकी है तभी तो ऐसी बाते करते हो। कहा भी गया है कि बालकों और बूढ़ों की बुद्धि काम नहीं देती। हम इस महल के मजेदार भोजन को छोड़कर जंगल में भूखे मरने नहीं जाएंगे।तुम नहीं जाते तो न जाओ।

मैं तो अपनी आंखों के सामने अपनी जाति का नाश होते नहीं देख सकता। यह सोचकर बंदर सरदार तो वहां से चला गया।दूसरे दिन उस रसोइये ने जैसे ही अधजली लकड़ी से उस भेड़ के बच्चे को मारा तो उसके सारे शरीर में आग लग गई। वह रसोई से बाहर निकलकर घोड़ों के तबेले की ओर भागा, बस वहां पड़ी सूखी घास ने आग पकड़ ली। देखते ही देखते चारों ओर आग फैल गई, जिससे घोड़े बुरी तरह झुलस गए, कुछ गए। राजवैद्य ने राजा से कहा- "देखो, यह धाव की चर्बी से ठीक हो सकते है।" उसी समय सब बंदरों को मारने का आदेश दे दिया। बस फिर में सारे के सारे बंदर मारे जाने लगे। 7 को जैसे ही अपने परिवार के सर्वनाश की खबर मिली तो उसका बदला लेने के लिए चल पड़ा। वह सोच रहा ला हूँ. राजा सेना का स्वामी और शक्तिशाली, आखिर मैं उससे एक पराने तालाब पर पहुंचा। वहां पर उसकी के शरीर बहुत आधक जल गए। राजन केवल बंदरों की चर्बी से ठीक हो  राजा ने उसी समय सब के क्या था, कुछ ही क्षणों में सारे के सारे वानर सरदार को जैसे ही अपने उसी बहुत दुख हुआ। वह उसका बदला लेने के था कि मैं अकेला हूँ, राजा सेना क बदला लूं तो कैसे?


यह सोचता हुआ वह एक पुराने तालाब पर पहुंचा। तालाब के राक्षस से थी। उस राक्षस के पास मोतियों का बड़ा हार था। राक्षस से कहा- “मित्र, मुझ एक राजा से बदला चुकाना है। यदि त मझे -बार दे दे तो मैं उसे लालच में फंसाकर इस तालाव तक ले आऊं। उसके यहां आते ही तू उसे खा जाना।" पर राक्षस ने हार दे दिया। उसे पहनकर वह राजा के महल में पहंचा। राजा ने बंदर के गले में मोतियों का हार देखा तो उसके मुंह में पानी भर आया। उसने बंदर से प्यार से पूछा कि यह हार कहां से लिया है तो बंदर झट से बोला- “महाराज यह हार तो एक पुराने तालाब में रविवार के दिन नहाने से सूर्य देवता की ओर से उपहार के रूप में मिलता है।"राजा खुश होकर बोला- “हे बंदर, तू मुझे और मेरे सारे परिवार को उस तालाब पर ले चल ताकि हम बहुत से हार ले आए।"
चलिए.... चलिए.... महाराज। राजा ने बंदर को अपनी गोद में लेकर अपने साथ बैठाया व प्यार से उसकी पीठ पर हाथ फेरता रहा।निल जैसे ही वे सब उस तालाब पर पहंचे, तो बंदर ने कहा- “महाराज! आप सब इन सबको नहाने के लिए भेज दो, फिर यही लोग आपके लिए मोतियों के हार ले आएंगे।"  स्वय बाहर बैठ गया। उसका सारा परिवार उस तालाब में नहान क ९ उतरा। राक्षस पहले से ही उनकी प्रतीक्षा कर रहा था। बस उन सबका पल भर में चट कर गया। न ही मोतियों के  जा न देखा कि अभी तक उसके सभी लोग तालाब में से नहीं निकल, क हार मिले हैं। तब वह बंदर से पछने लगा-"क्या इतनी देर क्यों हई हैं?"

बंदर हंसकर ऊंचे वृक्ष पर चढ़ते बोला- “महाराज! आपके सभी लोगों का राक्षस खा लिया है। यदि मैं चाहता तो आपको भी मरवा सकता था लेकिन मैंने केवल अपना राजा समझकर छोड़ दिया। अपने मेरे सारे परिवार को मारा था। मैंने आज उसका बदला चुका लिया है।"राजा बन्दर की बात सुनकर क्रोध में आ गया था किन्तु अब क्या हो सकता था ? निराशा और दुखी होकर वह वहां से अपने घर की ओर चल आग इसलिए मैं कहता हूं जो लालच में आकर काम करता है, वह सदा नुकसान उठाता है।“कैसे?" लो सुनो