लालच विनाश की जड है-पंचतंत्र की कहानियां
Apr 05,2021 07:28 AM posted by Admin
एक बार किसी देश में चन्द्र नाम का एक राजा राज करता था। उसका एक रसोइया बुद्धू था। उसके महल में भेड़ों के बच्चे रहते थे और ऊपर बन्दर रहते थे। भेड़ के बच्चे जब रसोई में घुसकर भोजन को जूठा करते तो बुद्धू उन्हें खुब मारता था । बन्दरों की इस टुकड़ी के साथ राजा चन्द्र के बच्चे खूब खेलते थे। बन्दरों के सरदार ने सोचा कि इस रसोइये और भेड़ों का झगड़ा एक दिन उनके विनाश का कारण बनेगा, क्योंकि बुद्धू उस भेड़ के बच्चे को खूब मारता है । यदि किसी दिन रसोइए ने जलती लकड़ी से इसको मारा तो यह तो जलेगा ही साथ में पड़ी घोड़ों की घास को भी आग लगेगी जिससे चारों ओर आग फैलेगी, इससे घोड़े भी जलेंगे। क्योंकि राजवैद्य ने कहा है कि बन्दर की चर्बी से घोड़ों के घाव अच्छे होते हैं इसलिए हमारा विनाश होगा। इसलिए बड़ों ने कहा है कि ऐसे अवसर पर उस स्थान को ही छोड़ देना चाहिए जिसमें जान का खतरा हो। बन्दर सरदार की बात सुनकर दूसरे बन्दरों ने हंसते हुए कहा कि आप बूढ़े हो गए हैं जिसके कारण आपकी बुद्धि भ्रष्ट हो चुकी है, तभी तो ऐसी बातें करते हैं, कहा भी है-बुढ़ापे में मुंह दांतों से खाली हो जाता है और लार टपकती रहती है । बालकों और बूढ़ों की बुद्धि काम नहीं देती।
हम इस महल के मज़ेदार भोजन को छोड़कर जंगल में भूखे मरने नहीं जाएंगे।“तुम नहीं जाते तो न जाओ। मैं तो अपनी आँखों के सामने अपनी जाति का नाश नहीं देख सकता।" यह कहकर बन्दर सरदार तो वहां से चला गया। दूसरे ही दिन उस रसोइये ने जैसे ही अधजली लकड़ी से उस भेड़ के बच्चे को मारा तो उसके सारे शरीर में आग लग गई। वह रसोई से बाहर निकलकर घोड़ों के तबेले की ओर भागा, बस वहां पर पड़ी सूखी घास ने आग पकड़ ली । यह आग देखते-ही-देखते चारों ओर फैल गई जिससे कुछ घोड़े बुरी तरह झुलस गए कुछ के शरीर जलकर छलनी हो गए। राजवैद्य ने राजा से कहा, “देखो यह आग के घाव केवल बन्दरों की चर्बी से ठीक हो सकते हैं।" राजा ने उसी समय सब बन्दरों को मारने के आदेश दे दिए, बस फिर क्या था, कुछ ही क्षणों में सारे के सारे बन्दर मारे जाने लगे। बन्दर सरदार को जैसे ही अपने परिवार के सर्वनाश की सूचना मिली तो उसे बहुत दुःख हुआ। वह इसका बदला लेने के लिए चल पड़ा, वह सोच रहा था कि मैं अकेला हूं, राजा सेना का स्वामी और शक्तिशाली, आखिर मैं इससे बदला लूं भी तो कैसे ? यही सोचता हुआ वह एक पुराने तालाब पर पहुंचा, वहां पर उसकी मित्रता तालाब के राक्षस से हो गई ।
उस राक्षस के पास मोतियों का बड़ा हार था, बन्दर ने राक्षस से कहा, “मित्र, मुझे एक राजा से बदला चुकाना है यदि तू मुझेयह हार दे तो मैं उसे लालच में फंसाकर इस तालाब तक ले जाऊं उसके आते ही तू उसे खा जाना।” राक्षस ने उसे वह हार दे दिया। उसे पहन कर वह राजा के महल में ।। राजा ने बन्दर के गले में मोतियों का हार देखा तो उसके मुंह में पानी आया। उसने बन्दर को प्यार से पूछा कि यह हार कहां से लिया। तो झट से बोला “महाराज, यह हार तो एक पुराने तालाब में रविवार के दिन नहाने से सूर्य ता की ओर से उपहार के रूप में मिलता है।" राजा खुश होकर बोला, “हे बन्दर, तुम मुझे और मेरे सारे परिवार को तालाब पर ले चल,ताकि हम बहुत से हार ले आएं।" “चलिए. चलिए. महाराज.. !”
राजा बन्दर को अपनी गोद में लेकर अपने साथ बैठाया व प्यार से उसकी उ पर हाथ फेरता रहा। जैसे ही वे सब लोग उस तालाब पर पहुंचे, तो बन्दर ने कहा, “महाराज ! प इन सबको नहाने के लिए भेज दो, फिर यही लोग आपके लिए मोतियों हार ले आएंगे।” राजा स्वयं बाहर बैठ गया। उसका सारा परिवार उस तालाब में नहाने लिए उतरा, राक्षस पहले से ही उनकी प्रतीक्षा कर रहा था। बस उन सबको ल-भर में चट कर गया। राजा ने देखा कि अभी तक उसके सभी लोग तालाब में से नहीं निकले ही मोतियों के हार मिले हैं ।
तब वह बन्दर से पूछने लगा कि यह क्या बात बन्दर हंसकर ऊंचे वक्ष पर चढ़ते हुए बोला “महाराज ! आपके सभी लोगों को राक्षस ने खा लिया है। यदि मैं चाहता तो आपको भी मरवा सकता था, लेकिन मैंने केवल अपना राजा समझकर छोड़ दिया। आप ने मेरे परिवार को मारा था। मैंने आज उसका बदला चुका लिया है। की बात सुनकर बहुत क्रोध में आ गया था किन्तु अब क्या निराश और दुःखी होकर वह वहां से अपने घर की ओर चला गया इसलिए मैं कहता हूं जो लालच में आकर काम करता है वह सदा नुकसान उठाता है।“इसलिए भाई, अब मुझे जाने दो।" चक्रधर बोला, “मुझे इस हालत में छोड़कर कहां जा रहे हो? “अब इस चक्र से तुम्हें कोई नहीं छुड़वा सकता, मैं तो सोचता हूं यहां से जल्दी जाऊं, कहीं मुझे तो यह चक्र न अपने कब्जे में ले ले।परन्तु लो, मैं तुम्हें एक और कहानी सुनाता हूँ-"