एक जंगल में एक शिकारी एक दिन शिकार खेलने के लिए गया, उसे एक भयंकर सूअर मिला, जैसे ही उस शिकारी ने उस सूअर पर तीर चलाया तो सूअर ने मुड़कर उस शिकारी पर इतना भयंकर हमला किया कि कुछ ही क्षणों में उस शिकारी की लाश ही खून में लतफत नज़र आई। लेकिन सूअर के पेट में लगा तीर उसे ले डूबा । सूअर की लाश भी वहीं ढेर हो गई। थोड़ी देर के पश्चात् एक गीदड़ भूख से बेचैन वहां से गुजरा तो उसने सूअर की लाश को पड़े देखकर दिल ही दिल में कहा “वाह... वाह.....आज तो अपने नसीब जाग गए हैं. परे का परा सअर. अब तो हम कई दिन तक आराम से इसे खा-खाकर काटेंगे। शिकार की चिन्ता ही समाप्त । अब तो मैं इसे धीरे-धीरे खाऊंगा, थोड़ा-थोडा.... आनन्द ।”
"हां भाई.... पहले तो मैं इसके पेट में लगे तीर से साथ निकली अन्तड़ियों को ही खाकर अपना पेट भरूंगा। बाकी का शव तो कल से खाना आरम्भ करूंगा।"बस यही सोच लालची गीदड़ उस सूअर के पेट से तीर निकाल कर खाने ही लगा था कि तीर के आगे लगे लोहे के टुकड़े उसके दांतों में फंसे, मगर लालची गीदड़ ने उस मांस को चबाने का प्रयास आरम्भ रखा। फिर एक लोहे का टुकड़ा उस गीदड के गले में फंसा, जिसके कारण उस गीदड की वहीं पर मात हो गई । इसलिए मैं कहता हूं कि लालच बुरी बला है।"ओ मेरी प्रिया, क्या तुमने यह नहीं सुना कि जीव जब भी मां के गर्भ में रहता है तभी उसकी आयु, कर्म, धन, विद्या और मृत्यु-यह पांचों चीजें बना दी जाती हैं।"
तब वह बोली-“मेरे पास तिल बहुत हैं, इन तिलों में ही भोजन तैयार करके ब्राह्मणों को भोज करा दूंगी।" अपनी पत्नी की बात सुनकर वह गांव से चला गया। तभी उसकी पत्नी ने तिलों को गर्म पानी में भिगो, मल-कूटकर धूप में सूखने के लिए डाल दिया। तिलों को वहीं छोड़ वह बेचारी अपने काम में लग गई। तब कहीं से एक कुत्ता वहां पर आया उसने इन तिलों में पेशाब कर दिया । बेचारी स्त्री ने जब यह देखा कि उस कुत्ते ने उसके रहें-सहे तिल भी गंदे कर दिए हैं। तभी उस चतुर औरत ने सोचा “चलो, मैं इन तिलों को लेकर किसी के घर जाती हैं और इन्हें दूसरे तिलों में बदल लाऊं।" जैसे ही वह औरत अपने किसी पड़ोसी के घर पहुंची तो मैं भी वहां पर पहुंचा हुआ था । उस घर की मालकिन जब उन साफ तिलों को अपने गन्दे तिलों से बदलने लगी तो उसके बेटे ने कहा- “माता जी, इन तिलों को मत लो। साफ तिल लेकर यदि कोई गन्दे तिल लेता है तो उसके पीछे ज़रूर कोई चाल होती है।”
अपने बेटे की बात सुनकर, उस औरत ने तिल बदलने से इन्कार कर दिया। इस प्रकार से उस ब्राह्मण की पत्नी की यह चाल असफल हो गई।“अच्छा संन्यासी जी, क्या आप उस चूहे के आने का रास्ता जानते हो?"
"हां, जानता हूं। क्योंकि वह कभी अकेला नहीं आता बल्कि अपने कई साथियों के साथ आता है।“ठीक है, अब हम सुबह उठकर उस रास्ते पर मिट्टी डाल देंगे जहां से वह चूहा आता है, इस प्रकार से उसके पांव के निशान उस मिट्टी पर बन जाएंगे जिससे हमें उसके आने का रास्ता पता चल जाएगा।"
मेहमान साधु की बात सुनकर मैंने सोचा कि मारा गया। उसने जैसे मेरे खजाने को जान लिया वैसे ही मेरे बिल को जान लेगा। इस प्रकार मैं डर के मारे अपना बिल वाला रास्ता छोड़कर किसी दूसरे रास्ते से चल पड़ा।मैं सहपरिवार चला ही था कि सामने से एक बिल्ला आ गया । वह चूहों को देखकर टूट पड़ा और मेरे बहुत सारे साथियों को मारकर खा गया। तब बाकि के चूहे मुझे गलत रास्ते पर जाने के कारण गालियां देते हुए खून से लथ-हथ मेरे बिल में घुस गए। मैं अकेला ही वहां से एक दूसरे स्थान की ओर चला गया। उस मेहमान साधु ने अपनी चाल से मेरे खज़ाने का पता लगा लिया जिसकी गर्मी से मैं बहुत बड़े किले पर भी पहुंच जाता था।फिर उस मेहमान साधु ने ताम्रचूड़ से कहा कि अब आप आराम से सो जाओ, क्योंकि इसी खजाने की गर्मी से वह आपको तंग करता था। इतना कह दोनों खज़ाने को पाकर अपने मठ की ओर चले गए। बाद में जब मैं वहां पर पहुंचा तो मुझे वह स्थान बहुत सूना लगने लगा और मैं उदास होकर सोचने लगा कि अब मैं कहां जाऊं, किधर जाऊं-
इस प्रकार सोचते-सोचते बड़ी कठिनाई से वह दिन बीता। जब दिन समाप्त हो गया तो मैं अपने साथियों को लेकर उसी मठ में पहुंचा मेरे साथियों की आवाज़ सुनकर संन्यासी ने बांस को उस भिक्षापात्र पर मारना आरम्भ किया, तब वह मेहमान बोला "मित्र ! क्या आज भी आपको नींद नहीं आती "भाई, वह चूहा अपने सथियों समेत फिर आ गया। इसलिए मैं बांस मार मारकर उन्हें भगा रहा हूं।" मेहमान बोला-“मित्र, तुम अब डरो मत । धन के जाने से इसके कूदने की शक्ति भी चली गई। सब प्राणियों का यही हाल होता है । कहा भी है मनुष्य जो उत्साही रहता है और गन्दे शब्द बोलता है वह सब धन का बल होता है।" उसकी बात सुनकर मुझे क्रोध आ गया और मैं पूरे जोश के साथ उस टंगे भोजन पर कूदा, लेकिन मैं उस पर पहुंचने से पहले ही धरती पर गिर पड़ा। मुझे इस प्रकार गिरते देख वह मेहमान ताम्रचूड़ से कहने लगा “देखो भाई, सब धन से बलवान और पंडित होते हैं, बिना धन के वह चूहा भी अपनी जाति के दूसरे चूहों जैसा हो गया, इसकी शक्ति समाप्त हो गई । तुम चिन्ता छोड़ो और आराम से सो जाओ।" यह सुनकर मैंने अपने मन में सोचा कि निर्धन का जीना बेकार है । चाहे मनुष्य में और कितने गुण क्यों न हों यदि धन न हो तो बेकार है।
मेरे सारे साथी मुझे बेकार समझकर मेरा साथ छोड़कर चले गए, क्योंकि उन्हें यह पता चल गया था कि अब मेरी शक्ति समाप्त हो गई है, वे अब मेरी सेवा क्यों करें ? इस तरह से मैं दुःखी होकर सुबह-सुबह अपने बिल में गया और वहां जाकर अकेले में सोचने लगा कि मेरा भी क्या जीवन है ? ठीक ही कहा जाता है, बेकार आदमी मरा हुआ है, बिना दक्षिणा का यज्ञ भी बेकार है। मैं इस प्रकार सोचता ही रहा कि मेरे सारे साथी शत्रु के साथ जा मिले। तभी मैंने अपने जीने का रास्ता निकाला और निर्णय किया कि संन्यासी जब रात को सो जाए तो उसके तकिए के नीचे रखी धन की थैली को उठा लाऊं, इस प्रकार से मेरी खोई हुई ताकत फिर से वापिस आ जाएगी, कहा भी है “निर्धन को भाई-बन्धु....मित्र सब छोड़ देते हैं।
गरीब आदमी यदि अमीर आदमी को कुछ देने भी जाए तो लोग उसे भिखारी समझते हैं। ऐसी गरीबी पर लाहनत है। यही सोचकर मैं रात को संन्यासी के पास गया और उसके तकिए को छेड़ा ही था कि वह संन्यासी जाग उठा और उसने फटे बांस से मेरे सिर पर वार किया। लेकिन मैं अपनी होशियारी से उसका वार बचा गया। सच है मिलने वाला धन मिलता ही है। उसे देवता भी नहीं रोक सकते और जाने वाला धन जाएगा ही उसे कोई ताकत नहीं रोक सकती। इसीलिए मैं न तो सोच करता हूं और न ही चिन्ता । जो चीज़ मेरी है वह किसी दूसरे की नहीं हो सकती । इसीलिए मैंने सभी चिन्ताएं छोड़ दी हैं और यहां आकर रहने लगा हूं । इस मित्र की कृपा से तुम्हारे तक पहुंचा हूं।"
कछआ, चूहे की बात सुनकर बोला-“मित्र का हृदय शुद्ध होता है तभी तो भखा होते हए भी तुम्हें रास्ते में नहीं खाया। कहा भी है-धन को देख जिसका दिल न मचले और सुख-दुःख में जो एक-सा रहे ऐसा मित्र अवश्य बनाना चाहिए और जो कोई मुसीबत के समय मित्र बना रहे वही सच्चा मित्र होता है। सुख में तो हर आदमी मित्र बन जाता है। इसलिए हम तुम्हारा स्वागत करते हैं । तुम इस तालाब के तट पर जब तक दिल करे रहिए। जो आपका धन नष्ट हो गया है उसकी चिन्ता मत कीजिए क्योंकि यह धन सदा किसी का साथ नहीं देता। धन के कमाने में भी दुःख और चले जाने पर दुःख । फिर ऐसे धन का क्या लाभ ? मनुष्य जितना धन कमाने के लिए कष्ठ उठाता है यदि उतना समय किसी अच्छे कार्य, ईश्वर भक्ति के लिए लगाए तो उसको आत्मिक सुख मिलेगा। इसलिए तुम्हें देश छोड़ने का भी दुःख नहीं करना चाहिए। बुद्धिमान के लिए तो सभी स्थान एक जैसे हैं । वे लोग यहां भी रहते हैं, अपनी बुद्धि से सब कुछ लेते हैं। मूर्ख मनुष्य धन कमाकर इसका लाभ नहीं उठा सकते । जैसे विशाल वन मूर्ख, सोमिलक का हाल हुआ।"
“वह कैसे ?” चूहे ने पूछा। लो सुनो उसकी कहानी