जाति-प्रेम-पंचतंत्र की कहानियां

Apr 05,2021 04:28 AM posted by Admin

गंगा नदी के किनारे एक आश्रम था जिसके कुलपति थे श्री याक्ष जी । एक दिन वह गंगा से नहाने के पश्चात् अपने आश्रम लौटे तो उनके अंगुली से एक चुहिया लिपट गई। उन्होंने उसे बरगद के पत्ते में रख दोबारा स्नान किया और फिर अपनी शक्ति से उस चुहिया को लड़की बना दिया और अपने पास रखकर अपनी पत्नी से बोले “लो प्रिया ! यह कन्या तुम्हारे लिए है ।

तुम इसका पालन करना ।" इस तरह से वह लड़की बारह वर्ष की हो गई, तो विवाह योग्य हई देखकर पत्नी ने पति से कहा कि क्या आपको पता नहीं कि कन्या की शादी की आय निकली जा रही है। तब गुरु जी ने अपनी पत्नी से कहा कि यदि तुम ओर यह लड़की पसंद करें तो मैं आदित्य भगवान् को बुलाकर इसकी शादी की बात कर दूं।

पत्नी बोली, “इसमें कोई बुराई की बात नहीं। यह तो और भी अच्छी  बात है।" पत्नी की बात मान याक्ष जी ने आदित्य भगवान को घर बुलाया, उन्हें देख लड़की बोली “पिता जी ! यह तो अति जलाने वाले हैं, किसी और को बुलाएं। लड़की के वचन सुन याक्ष जी ने आदित्य भगवान से पछा कि आपसे अच्छा कोई है ? आदित्य (सूर्य) ने कहा कि मुझसे अच्छा तो बादल है जो मुझे भी अपनी चादर में ढांप लेता है। तब मुनि जी ने बादल को बुलाया और लड़की से पूछा-"बेटी, क्या यह तुम्हें पसंद है ?"नहीं । यह तो काला है किसी और को लाएं।

लड़की ने कहा। "तब मुनिजी ने बादल से पूछा, “भाई आपसे बढ़कर भी कोई है ?“जी हां, मुझसे बढ़ कर हवा है । जो मुझे भी मार कर टुकड़े-टुकड़े कर देती है।" यह सुनकर मुनि ने हवा को बुलाया और लड़की से पूछा, “बोलो बेटी ! क्या यह तुम्हें पसंद है ?" लड़की कहने लगी कि यह तो बहुत चंचल है । मुझे यह पसंद नहीं और किसी को लाइए। तब मनि ने हवा से पूछा कि आपसे अच्छा और कौन है। उसने कहा, “मुझसे अच्छा पहाड़ है। जिसके रोकने से मैं भी गिर जाता फिर मुनि ने पहाड़ को बुलाया और अपनी लड़की से कहा, “देखो बेटी, क्या यह तुम्हें पसंद है “नहीं पिता जी, यह बहुत सख्त है।”तब मुनि ने पहाड़ से पूछा, “पहाड़ राजा, क्या आपसे अच्छा कोई और है ?

तब पहाड़ ने कहा, “मुझसे बढ़कर तो केवल चूहा ही है जो मेरा पेट फाड़कर उसमें सुराख कर देता है। तभी मुनि ने चूहे को बुलाया और अपनी बेटी से कहा, “बोलो बेटी ! क्या यह तुम्हें पसंद है ?" लड़की ने चूहे को देखा और अपने मुनि पिता की ओर देखकर बोली, “जी हां, आप मुझे चूहिया बनाकर इसके साथ शादी कर दें ताकि मैं अपना जीवन शांति से काट सकुँ ।”तब मुनि जी ने उसे अपनी शक्ति से चुहिया बनाकर उस चूहे के साथ शादी कर दी। इसीलिए मैं कहता हूं कि जाति प्रेम कभी नहीं जाता, इससे हर समय चौकस रहें।

उल्लू राजा उसे अपने किले में ले जाकर बोला कि इस मेहमान कौवे को इसकी इच्छानुसार स्थान दो। कौवे ने सोचा मुझे तो इनका नाश करना है, इसलिए यदि मैं इनके बीच में रहूंगा तो मैं अपना काम पूरा नहीं कर सकूँगा, इसलिए कौवे ने उल्लू राजा से कहा“देखो महाराज, वास्तव में मैं आपका शत्रु हूं, इसलिए मैं नहीं चाहता कि मुझ पर कोई संदेह करे, बस आप मुझे अपने इस किले के बाहर ही बैठने दीजिए, यहीं पर रहकर मैं आपको प्रणाम करता रहूंगा।" उल्लू राजा ने कहा"जैसी तुम्हारी इच्छा है, वैसा ही किया जाएगा।

तब वह कौवा उसी किले के द्वार पर रहने लगा और दूसरे उल्लू उसके लिए मनपसंद खाने ला-लाकर खिलाते । कुछ ही दिनों में वह मोर के समान मोटा-ताजा और बलवान हो गया। उसे मोटा होते देखकर बूढ़े उल्लू ने कहा कि राजन ! आप और आपका मंत्री मंडल मूर्ख है, कहा भी है पहले तो मैं मूर्ख हूं फिर प्रजा इसके बाद राजा और मंत्री भी मूर्ख हैं। “यह कैसे ?” लो सुनो इस बारे में कहानी