करटक बोला- “इस प्रकार वह बंदर अपनी ही मूर्खता से मर गया। जो सरों के काम में टांग अड़ाता है, उसका यही हाल होता है, इसलिए कहता हूं कि सिंह को भूल जाओ और अपनी चिंता करो। हम झंझट में क्यों फंसे?" दमनक उसकी बात से चिढ़कर बोला- "देखो भाई। यह ठीक नहीं. मित्रों का भला और शत्रुओं की हानि करने के लिए ही बुद्धिमान जन राजा का सहारा लेते है। पेट कौन नहीं भर लेता? जिनके जीते रहने से अन्य बहुत से लोग भी जीवित रह सकें, उसी को जिंदा कहना चाहिए। अन्यथा क्या पक्षी भी चोंच से अपना पेट नहीं भर लेता? जो प्राणी दूसरों के दूख में काम न आए उसका जीना बेकार है।
उस पुत्र के उत्पन्न होने का क्या लाभ जो वंश में अग्रणी नहीं होता। नदी तट पर उपजे उस घास झुंड का भी जन्म सार्थक है, जिसको पकड़कर डूबता प्राणी किनारे आ लगता है। मनुप्य चाहे कितना ही ताकतवर हो पर यदि उसकी ताकत प्रकट नहीं है तो लोग उसका अपमान करते हैं, जैसे लकड़ी के अंदर व्याप्त आग को सब लोग लांघ जाते हैं, पर जब वह आग प्रकाट हो तो कोई उसके पास जाने का साहस नहीं करता।"करटक ने अपने भाई की बातों को बड़े धैर्य से सुना और फिर बोला-“यह सब ठीक है, किन्तु हम कर भी क्या सकते हैं। फिर हमें इस बात से क्या प्रयोजन? देखो कहा गया है, साथ ही वह अपमानित भी होता है। इसलिए अपनी बात वहां कहनी चाहिए जहां उसकी कद्र हो, क्योंकि ऐसी जगह बात करन का एसा प्रभाव होता है जैसे सफेद कपड़े पर रंग चढ़े।' दमनक ने करटक की बात सुनते ही कहा-नहीं भाई, ऐसा ना कहो क्योंकि विद्वानों, बुद्धि जीवियों, बहादुरों का सम्मान राजा के सिवा और कोई नहीं
कर सकता। जो मन्प्य अपनी उच्च जाति आदि के अभियान के पास नहीं जाते, वे असफलता और निराशा क सिवा का राजा का सहारा लेकर ही बुद्धिमान लोग उचित स्थान पानी “भाई दमनक, आखिर तुम कहना क्या चाहते हो, ___“में तमस कवल यह कहना चाहता हूं कि आज हमा उसका परिवार डरा हुआ है, उसके पास जाकर भय का कारण विरोध, लड़ाईं, हमला करना या चुप रहकर मौके की तला ताकतवर का सहारा लेना, राजनीति के यह दांव पेंच हैं। मेरे भी दांव लगाया जा सकता है। “मगर भाई, तुमने यह कैसे जाना कि हमारा मालिक करटक ने पूछा। __ “मेरे भाई, कही हुई बात को तो पशु भी भांप लेते हैं. मगर है त बिना कहीं बात का भी चेहरे से जान जात ह-आकार मात इशारा. चाल-ढाल, बोल-चाल, आंख द्वारा मन के अन्दर की बात बार हैं. इसलिए मैंने यह सब जान लिया है। मैं निडर होकर सिंह के पास और उसकी पूरी-पूरी सहायता करूंगा। “मगर भाई, आपको तो अभी राज-दरबार में जाना ही नहीं आता आप सेवा कैसे करेंगे करटक बोला। दमनक ने हंसकर उत्तर दिया, वाह । मैं क्या राजा की सेवा करना नहीं जानता। पिता जी की गोद में खेलते हुए मैंने घर में आने वाले साधु-सन्यासियों की और विद्वानों की बातें सुनी थी। वे सब की सब मैंने दिल में बैठा ली थी।"“हां भैया! मैं यह बात जानता हूं और साथ में यह भी जानता हूं कि मनुष्य अपनी तीव्र बुद्धि से ही इन सबको मात देकर अपना रास्ता स्वयं बनाता है। बुद्धिमान व्यक्ति जब राजा तक पहुंच जाते हैं तो खुशामदी लोग राजा की नजरों से गिर जाते हैं।"करटक ने कहा-ठीक है यदि भाई तुम्हारे यही विचार हैं तो तुम अवश्य यहीं करो, जो तुमने सोचा है। फिर दमनक हंसा और उस शेर की ओर चल दिया। शेर ने जैसे ही दमनक को अपनी ओर आते देखा तो अपने मत्रा से कहा-“देखो वह हमारे पुराने मंत्री का पुत्र आ रहा है, उसे आदर स हमार पास लाओ।"जैसे ही दमनक शेर के सामने गया तो उसने सिर झुकाकर प्रणाम किया
सेर अपने पुराने मंत्री के पुत्र को देखकर बहुत खुश हुआ और अपने पास जिताकर प्यार से उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए पूछा "कहो मित्र कैसे हो, बहुत दिनों के पश्चात मिले हो।" उसनक बड़े प्यारे से बोला- “महाराज! भले ही आप हमें भूल गए हैं हम आपको कैसे भूल सकते हैं, क्योंकि हम आपके पुराने वफादार हैं। जब हमने आपको दुःख में घिरे उदास देखा तो हमसे रहा नहीं गया। आज नाई के समय में ही तो अपने पराए का पता चलता है। अपने कर्त्तव्य का पालन करना हमारा फर्ज है महाराज, आप तो जानते ही है आपने जो मुझसे पूछा कि बहुत दिनों बाद आए हो, इसका उत्तर तो यही जिस देश मे जौहरी न हो वहां पर सागर से निकले मोतियों की कीमत नहीं लग सकती। जिनकी बुद्धि कांच को मणि और मणि को कांच समझती है उनके पास नौकर नाममात्र को भी नहीं ठहरता। __जहां मालिक सब नौकरों से उनकी योग्यता और अयोग्यता आदि का विचार न करके एक सा बर्ताव करता है, वहां पर बुद्धिमान सेवकों के दिल टूट जाते हैं। न सेवकों के बिना राजा खुश होकर अपने वफादार सेवकों को इनाम ही देता है, वही नौकर समय आने पर राजा के लिए अपनी जान न्यौछावर कर हते हैं। जो नौकर भूख, गर्मी, सर्दी आदि से नहीं घबराता, वही वफादार सेवकों को इनाम ही देता है, वही नौकर समय आने पर राजा के लिए अपनी जान न्यौछावर कर देते हैं। जो नौकर भूख, गर्मी सर्दी आदि से नहीं घबराता, वही वफादार हो सकता है और क्या कहूं महाराज! हीरे की कद्र तो जौहरी ही जानता है। अब मैं यह तो नहीं कहता महाराज कि मैं हीरा हूं किन्तु कुछ निवेदन करना चाहता हूं।"दमनक की ज्ञान भरी बातें सुनकर पिंगलक प्रभावित होकर बोला“तो फिर संकोच क्यों ? जो कहना है कहो।" महाराज ! राजा का जो भी काम हो उसे सबके सामने नहीं, गुप्त रूप से करना चाहिए, क्योंकि गुप्त बात छः कानों में जाने से किसी भी मुसीबत का कारण बन सकती है।" पिंगलक ने दमनक की बात को बड़े ध्यान से सुना तो और अधिक प्रभावित हुआ। उसने आंख के इशारे से वहां पर बैठे अपने सभी दरबारियों को जाने का इशारा किया। सबके जाने के बाद दमनक ने पूछा "हे स्वामी! अब आप बताओ कि जब नदी पर पानी पीने गए थे तो वापस क्यों आ गए?"
शेर ने हंसकर कहा,-"वैसे ही “देखिए महाराज ! इस बात को छिपाइये मत, यदि यह का है तो रहने दो, वैसे इस विषय पर कहा गया है-' 'बद्धिमान को चाहिए कि सकट के समय अपने मित्रों व गुप्त से गुप्त बात कभी समय आने पर कह डाले।" दमनक की बात सुनकर शेर सोच में पड़ गया क्योंकि साल वजन था। फिर वह सच्चा मित्र लग रहा था। मित्रों के बारे में कहा, __सच्चे मित्र, वफादार नौकर, बुद्धिमान स्त्री, दयालु कोमल हा के आगे अपनी बात कहकर आदमी अपने दिल का बाझ हल्का करना इसीलिए शेर ने अपने मन की बात होंठों पर लाते हुए कहा “भद्र, मैं इस जंगल से जाना चाहता हूं।" “क्यों, जंगल के राजा होकर आप ऐसा क्यों सोच रहें हैं,“मेरे मित्र, मैं तुमसे क्या छिपाऊं। वास्तव में इस जंगल में कोई असर जानवर आ गया है। वह मुझसे अधिक शक्तिशाली है। उसकी गरज ही इतनी भयंकर है कि डर के मारे कलेजा हिल गया है। सोचो उसकी शक्ति कितनी होगी" दमनक ने हंसकर शेर की ओर देखा, फिर बोला- “अपने पूर्वजनों द्वारा उपार्जित इस वन को छोड़ना आपके लिए ठीक नहीं। इस प्रकार डरकर भागने से तो आपकी बदनामी होगी। एक बार मेरे साथ भी हुआ, एक आवाज से मैं भी डर गया था, मगर जब सत्य सामने आया तो पता चला कि यहां तो ढोल की पोल है।' वह कैसे शेर ने हैरान होकर पूछा।' “सुनिए-,