एक बार किसी जंगल में गौरैये का जोड़ा रहता था। समय आने पर उन्होंने अपने घौंसले में अंडे दिए । दूसरे दिन धूप से दुःखी एक हाथी उस वृक्ष के नीचे आ गया । अपनी ताकत के नशे में आकर उसने उस वृक्ष की वह शाख तोड़ डाली जिस पर गैरैये के जोड़े का घौंसला था। बस फिर क्या था जैसे ही वह शाख टूट कर गिरी उसके साथ ही गौरैये के अंडे टूट गये। अपने अंडों को टूटे देखकर वे दोनों बेचारे रोने लगे। उन्हें रोते देखकर उनका मित्र कठफोरवा पक्षी उनके पास आया और बोला “अरे मित्रो ! रोने से क्या लाभ, कहा गया है कि पंडित और बुद्धिमान, मरे हुए और बीते हुए समय को नहीं सोचते, बुद्धिमान और मूर्ख में यही अन्तर
“हम तुम्हारी सब बातें मानते हैं। पर इस समय तो हमें इस पापी को मारने का रास्ता बताओ जिसने हमारा सब कुछ नष्ट कर दिया है।" चटकी ने कहा।
"मित्रो ! आप ठीक कहते हो। सच्चा मित्र वही है जो दुःख में काम आए। अच्छे दिनों में तो हर आदमी मित्र बन जाता है । बुरे समय में कोई पास नहीं ठहरता । खैर ! तुम चिन्ता मत करो, मेरी एक मक्खी मित्र है, मैं उसे अभी बुलाकर लाता हूं। वह हमारे दुःख के समय में अवश्य काम आएगी। मैं अभी उसी के पास जा रहा हूं।
इतना कहते ही वह उस मक्खी के पास गया और जाते ही बोला, “बहन ! मेरी एक चटकी मित्र है जिसका सारा घर एक हाथी ने नष्ट कर दिया, उसके अंडे फोड़ दिए । उसे मारने में मेरी कुछ मदद करो।" सनखी बोली, “भैया, तुम चिन्ता मत करो। मित्र के मित्र ही सदा काम आता है । इस काम के लिए मुझे भी एक मित्र के पास जाना होगा । एक मेंढक मेरा बड़ा पुराना मित्र है । वह अवश्य ही हमारे काम आएगा। उसकी बुद्धि भी बहुत तेज है।
अब वे तीनों मिलकर उस मेंढक के पास पहुंचे, उन्होंने उसे सारा हाल सुनाया। उसने कहा कि क्रुद्ध हुए बहुतों के आगे वो बेचारा हाथी है क्या ? सुनो मेरी योजना दोपहर के समय मक्खी जाकर उसके कान के आगे वीणा बजाएगी जिससे वह हाथी मस्त होकर आंखें बन्द कर लेगा। तब कठफोरवा उसकी आंखें फोड़ देगा । जब उसे प्यास लगेगी तो मैं अपनी आवाज़ एक गहरे गढे में से निकालूंगा। क्योंकि वह अंधा होगा इसलिए मेरी आवाज़ सुनकर ही पानी का स्थान समझेगा और अपनी प्यास बुझाने के लिए उस गढ़े की ओर आएगा। तब अंधा हाथी उस गढ़े में गिर जाएगा। बस वहां गिरा हाथी दोबारा नहीं निकल पाएगा।
इस प्रकार से इन तीनों ने मिलकर तेज बुद्धि से ही उस हाथी को मार डाला था। अब मैं भी अपनी बुद्धि से ही इस समुद्र को सुखाऊंगा।" इसी काम के लिए उसने अपने मित्रों बक, सार, मोर आदि को बुलाकर कहा “भाइयो, इस समद्र ने मेरे अंडे नाश करके मुझे अपमानित किया है इसलिए इसे सुखाने का उपाय सोचो।”
तीनों ने बहुत सोचने के पश्चात् कहा कि भाई यह काम हमसे नहीं हो सकेगा। भला इतने बड़े समुद्र को हम कैसे सुखा सकते हैं ? इसलिए कहा गया है निर्बल भी जो मद से मोहित बलवान शत्रु से भिड़ता है वह युद्ध से ऐसे लौटता है जैसे टूटे दांत वाला हाथी । अतः हमें अपने राजा गरुड़ से सब हाल कहना चाहिए। संभव है वह अपनी जाति का अपमान सुनकर क्रुद्ध होकर बदला लेने को सोचे, किसी विद्वान ने कहा है
“मन मिले मित्र, गुणवान नौकर, आज्ञाकारी स्त्री, बलवान स्वामी। इन सबसे अपना दुःख कहकर मनुष्य सुखी होता है।”
बस फिर क्या था ! सब के सब पक्षी गरुड़ के पास पहुंचे और रोते-रोते अपना हाल सुनाया और साथ ही यह भी कहा कि सागर एक दिन सब पक्षियों को नष्ट कर देगा, क्योंकि लोग एक को बुरा कर्म करते देखकर स्वयं भी बुरा काम करने लगते हैं, बुरे काम के लिए बहुत जल्द नकल करते हैं। अच्छा काम करना बहुत कठिन है । राजा को चाहिए कि चोर, डाकुओं, लुटेरों से प्रजा की रक्षा करे। इनके दुःखों को सुनकर गरुड़ सोचने लगा। फिर उसने सोचकर कहा कि मैं आज समुद्र से कहूंगा । पहले उसने विष्णु जी के दूत से आकर कहा, "भगवान विष्णु से आप जाकर यह कहो कि वे अत्याचारी सागर को सजा दें, जिसने मेरे मित्र टिट्टिभ के अंडे हर लिए हैं। यदि वे उसे सजा नहीं देंगे तो मैं भी आज से उनकी सवारी का कार्य नहीं करूंगा।" स्वयं भगवान ने भी अपने वाहन सेवक की बातें सुन ली थीं। वह वहीं प्रकट हो गए।
गरुड ने स्वयं भगवान को आते देखकर अपना सिर झुकाकर नमस्कार किया और बोला, “देखों भगवान, आपके सेवक समुद्र ने मेरे मित्र के अंडे हर कर मेरा अपमान किया है । मैंने आपके डर से देर की है नहीं तो मैं उसे अभी सखा देता, क्योंकि स्वामी के डर से तो कुत्ता भी नहीं मारा जाता, बड़ों ने कहा है कि जिस काम से मालिक को दुःख पहुंचे या उसका छोटापन जाहिर हो, ऐसे काम मरने तक भी अच्छे नौकरों को नहीं करना चाहिए।"
यह सुनकर विष्णु भगवान ने खुश होकर कहा, “तुमने ठीक कहा है और कहा गया भी है कि नौकर द्वारा किए गए पाप का दंड मालिक को मिलता है। इससे जो भी लज्जा होती है वह भी मालिक को ही होती है । इसलिए आप टिट्टिभ के अंडे समुद्र से वापस लाकर दें फिर हम इन्द्रलोक चलेंगे। इतना कहते ही भगवान ने अग्निबाण चढ़ाकर समुद्र को झिड़कते हुए कहा, “हे पापी ! टिट्टिभ के अंडे दे। नहीं तो मैं तुझे भून दूंगा।"
भगवान का क्रोध देखकर समुद्र डर गया। उसने झट से टिट्टिभ के अंडे वापस कर दिए। इस प्रकार टिट्टिभ की विजय हुई और विशाल सागर हार गया। इसलिए पुरुष को कभी हिम्मत नहीं छोड़नी चाहिए।
यह सुनकर उस बैल ने उस दमनक ने फिर पूछा-
"ऐ मित्र ! मैं यह कैसे जानूं कि वह पापी है ? अब तक तो वह मुझसे निरन्तर प्रेम ही करता रहा है। अब मैं उससे कैसे बचाव करूं?" "देखो मित्र ! शत्रु को पहचानने के लिए तुम जब कभी उसके पास जाओ तो देखना कि यदि उसकी आंखें लाल हैं तो समझो उसे क्रोध आ रहा है, वह तुम्हारा शत्रु है। यदि उसकी आंखें लाल न हों तो समझ लेना वह तुम्हारा मित्र है। अब मुझे आज्ञा दो कि मैं यहां से चलूं, हां इस बात का ध्यान रखना कि हम दोनों की बात का किसी को पता न चले, यदि तुम अपना बचाव करना चाहो तो शाम तक इस जंगल से भागने का प्रयत्ल करना, क्योंकि कुल के लिए एक को, ग्राम के लिए कुल को और अपने लिए धरती को छोड़ देना चाहिए। अपने से ताकतवर शत्रु द्वारा हमला करने पर या तो देश छोड़ दो या फिर उसकी अधीनता कबूल कर लो । यही नीति है।" इतना कहकर दमनक करटक के पास चला गया।
करटक उसे देखते ही बोला, “क्यों भाई, क्या नया रंग लगाकर आ रहे हो ?"
“अरे भाई ! मैंने नीति रूपी बीज तो बो दिया है।" “कैसा बीज बोया है, जरा मुझे भी तो बताओ।" “मैंने झूठी बातों से एक दूसरे के विरुद्ध भड़का दिया है । अब तुम उन्हें कभी भी एक साथ बैठे मित्रता की बातें करते नहीं सुनोगे।" “अरे भाई ! यह तुमने अच्छा नहीं किया, जो दोनों मित्रों से खुशियां छीनकर उन्हें नफरत की आग में धकेल दिया है, कहा गया है जो प्राणी अपने दुःख को न पहचानने वाले, सुखी प्राणी को दुःखी करता है वह मनुष्य कभी भी सुख नहीं पा सकता।"
दमनक करटक के चेहरे की ओर देखकर बोला, “तुम नीति शास्त्र को नहीं जानते भाई ! सुनो- जो शत्रु और रोग को बढ़ने से पहले नहीं मारता वह स्वयं इनके बढ़ने से मारा जाता है।
वे जो शत्रु पैदा होते हैं, उन्हें और उनके मित्रों, साथियों को भी साथ ही मार देना अच्छा होता है। भैया, मैं ही उसे शेर के पास ले गया था। उसने सबसे पहले मुझे ही मंत्री पद से हटवा दिया। ऐसे शत्रु को छोड़ना मूर्खता नहीं तो और क्या है ? इसलिए अब मैंने उसे मारने का यत्न किया । सदा याद रखो-शत्रु, शत्रु होता है यदि वह मित्र बनना भी चाहे तो उसमें भी उसकी कोई चाल होती है। यदि वह बैल मरा न भी तो भी वह इस जंगल,देश को छोड़ कर भाग जाएगा। इसके मरने या भागने से हमें तीन लाभ होंगे:-
1. शत्रु से हमारा रास्ता साफ होगा,
2. हमें पहले की भांति शेर से अच्छा भोजन मिलेगा, और
3. मंत्री पद फिर से हमारे पास आ जाएगा।
तुमने उस चतुरक की कहानी नहीं सुनी जिसने अपनी बुद्धि से कितना बड़ा काम किया था !
“कैसा बड़ा काम ?" करटक ने पूछा। "लो सुनो उसकी कहानी"