धोखेबाज मित्र - पंचतंत्र की कहानियां

Apr 03,2021 07:40 AM posted by Admin

 प्राचीनकाल में दक्षिणी भारत के एक छोटे से नगर में वर्धमान नाम का एक व्यापारी रहता था। यूं तो उसके स्वर्गवासी पिता अपने पीछे अच्छा कारोबार छोड़ गए थे परन्तु वर्धमान के मन में ऐसा धनी बनने की इच्छा थी जिसका चर्चा चारों ओर हो । इसी धुन में वह हर समय खोया रहता । वह हर समय यही सोचता रहता कि और अधिक धनवान बनूं, अमीर बनूं !

वह धनवान बनने के साधन खोजने लगा सरकारी नौकरी, कृषि, विद्या, ब्याज, व्यापार तथा मांगना । यही छ: रास्ते उसे सूझे जिनसे और अधिक धन कमाया जा सकता था। बस उसकी तो एक ही तमन्ना थी-कैसे अमीर बना जाए? वह रात्रि को भी यही सोचता रहता कि इन साधनों में से अमीर बनने के लिए कौन-सा साधन चुना जाए !

वह सोचता कि सरकारी नौकरी में तो अफसरों की जी-हजूरी करनी पड़ती है फिर भी उनके क्रोध का शिकार होना पड़ता है। उसे यह भी यकीन नहीं हुआ कि इस प्रकार धनवान बना भी जा सकता है या नहीं ! कृषि करना तथा विद्या प्राप्त करना अब उसके बस में नहीं था । ब्याज में एक तो धन मारे जाने का डर रहता है दूसरे आदमी आलसी भी बन जाता है।अब उसके सामने एक ही रास्ता बाकी रह गया था और वह था व्यापार ।

तब उसने फैसला किया कि वह व्यापार करके ही अमीर बनेगा। अत: उसने अपने विश्वस्त साथियों को एकत्रित किया तथा उनसे इस विषय पर विस्तारपूर्वक चर्चा की। उन सब ने निर्णय किया कि वे इस छोटे कसबे से अनाज तथा लकड़ियां खरीद कर उन्हें शहर में ले जाकर महंगे भाव बेचकर अमीर बनेंगे। क्योंकि वर्धमान पहले से ही गांव का अमीर आदमी था इसलिए सबने उसकी बात मान ली तथा वे वर्धमान के साथ जाने के लिए तैयार हो गए। ज्यों ही उन्होंने शेर को नदी के किनारे से प्यासा ही वापिस आते देखा तो दमनक बोला-“भाई करटक, हमारा स्वामी तो नदी किनारे से प्यासा वापिस आ गया, अब तो बेचारा बड़ा शर्मिन्दा हुआ बैठा है। जंगल का राजा होते हुए वह पानी भी न पी सका।” करटक बोला, “भाई दमनक, हमने इन बातों से क्या लेना है ? बड़े लोग यह कह गए हैं कि जो भी दूसरों के काम में बिना मतलब टांग अड़ाता है वह बे-मौत मरता है।