चालाक गीदड़-पंचतंत्र की कहानियां
Apr 05,2021 05:58 AM posted by Admin
एक बार किसी जंगल में गीदड़ रहता था। उसे एक बार कहीं से मरा हुआ हाथी नज़र आ गया, वह उसके चारों ओर घूमता रहा किन्तु उसकी सख्त खाल को फाड़ न पाया। उसी समय उधर से कहीं एक शेर घूमता हुआ आ गया, उस गीदड़ ने शेर के आगे सिर झुकाकर कहा, “महाराज, यह आपका शिकार है, मैं कब से खड़ा इसकी रक्षा कर रहा हूं। “भाई गीदड़ ! मैं दूसरे का मारा शिकार नहीं खाता, तुमने सुना नहीं कि वन में रहने वाले भूखे शेर कभी भी घास नहीं खाते । सो मैंने यह हाथी तेरे का ही उपहार के रूप में दिया, शेर की बात सुन गीदड़ बहुत खुश हुआ, जैसे हाशर वहां से गया तो उसके पश्चात् एक बाघ वहां पर आ पहुंचा,उसे देखकर गादड़ घबराया और सोचने लगा कि एक दुष्ट से पीछा छुड़वा लिया किन्तु जब इससे कैसे पीछा छटे ? कछ क्षणों के पश्चात् उसने रास्ता निकाला।" मामा जी, आप इस ओर कैसे चले आए, यह हाथी तो शेर ने मारकर मुझ इसकी रक्षा के लिए खडा किया है, साथ ही उसने मुझसे कहा कि कोई आए तो उसकी सूचना मझे देना क्योंकि पिछले दिनों मेरा एक शिकार अकर ले गए थे, अब मैं इन बाघों को तलाश करके मारूंगा।"
जैसे ही बाघ ने यह बात सुनी तो वह वहां से भाग खड़ा हुआ, जाते-जाते गीदड़ से बोला, “शेर को मेरे आने की खबर मत देना मेरे भांजे।"जैसे ही बाघ वहां से गया तो एक चीता आ गया, गीदड़ ने उसे देखकर सोचा कि चीते के दांत बहुत तेज़ होते हैं, क्यों न इससे हाथी की चमड़ी कटवा लूं । बस फिर क्या था उसने चीते से कहा, "भाई, यह हाथी शेर ने मारा है, यदि तुम इसे खाना चाहते हो तो जल्दी से इसे खा लो, मैं शेर के आने का ध्यान रखता हूं जैसे ही मुझे शेर आते दिखाई दिया मैं तुम्हें बता दूंगा, तुम उसी समय भाग जाना", चीते ने उसकी बात मान ली। उसे क्या पता था कि यह गीदड़ उसके साथ चाल खेल रहा है, वह देखते ही देखते हाथी की खाल काटने लगा। उधर जैसे ही गीदड़ ने देखा कि हाथी के शरीर से खाल उतर चुकी है, बस उसने शोर मचा दिया-“भागो, भागो शेर आया...." इस प्रकार चीता भाग खड़ा हुआ।
चीते के भागने के पश्चात् चालाक गीदड़ हंसने लगा और साथ ही बड़े आनन्द से हाथी का मांस खाने लगा था। “सो भाई मगरमच्छ ! तुम भी इस गीदड़ के काम से राजनीति सीखो और अपने घर जाकर उस मगरमच्छ से युद्ध करके उसे भगा दो, डरने से काम नहीं चलता, शत्रु को राजनीति से भगाओ। क्योंकि गायों में धन की, ब्राह्मणों में तप की, औरतों में चंचलता की और अपनी जाति में भय की संभावना करनी चाहिए, विदेश में कई प्रकार के भोजन मिल जाते हैं क्योंकि वहां की स्त्रियां उदार होती हैं पर विदेश में एक ही दोष है कि अपनी जाति ही विरुद्ध हो जाती है।" “अरे भाई, यह कैसे जरा मुझे भी तो बताओ?" "हां... हां....यह भी बताता हूं।" "सुनो देश-परदेश की कहानी ।”