चालाक बगुला-पंचतंत्र की कहानियां

Apr 03,2021 07:40 AM posted by Admin

किसी जंगल में अनेक प्रकार के जल-जन्तुओं से भरा तालाब था। वहां पर रहने वाला एक बगला बूढ़ा होने के कारण मछलियों को मारने में भी समय हो गया। वह बेचारा तालाब के किनारे बैठ रो रहा था। उसे इस रात देखकर एक केकड़े को बहुत दुःख हुआ। उसके आंसू देखकर स दया आ गई। वह बगले के पास जाकर बोला माजी ! आज तम भोजन क्यों नहीं कर रहे, इस प्रकार रो क्यों रहे हो |

बगुला बोला, “तुम ठीक कह रहे हो बेटे, मैं वास्तव में ही दुःखी हूं ! लेकिन मेरे दुःख का कारण वह नहीं जो तुम समझ रहे हो ।” “और क्या कारण है ?" तुम बताओ तो सही।
“बेटा, मैं तो केवल उपवास कर रहा हूं। क्योंकि मैंने बहुत ही पाप किये हैं, इसलिए अपने उन पापों का पश्चाताप कर रहा हूं । इसीलिए मैं पास आई हुई मछली को भी नहीं खाता।”
“मैं आपके इस पश्चाताप का कारण नहीं समझा।" केकड़े ने कहा। । “बेटे, मैं इस तालाब के किनारे ही पैदा हआ। यहीं पर पल कर जवान हुआ, यहीं पर बूढ़ा हुआ, इसलिए मुझे यहां की हर चीज़ से प्यार है। अब जब मैंने यह सुना कि बारह वर्ष तक वर्षा नहीं होगी तो... ।”


“किससे सुना है आपने...?" - “एक ज्योतिषी के मुंह से, उसने कहा है कि शनिवार और रोहिणी शकट को भेदकर, भीम (मंगल) और शुक्र के पास जाएगा और बारह मिहिर ने कहा है|यदि शनि-ग्रह रोहिणी के शकट का इस लोक में भेद न करे तो बारह वर्ष तक बादल धरती पर नहीं बरसते और भी...।।

प्रजा सत्य शकट (रोहिणी नक्षत्र) के भेदे जाने पर मानों धरती यह पाप करके, भस्म और अस्थि के टुकड़ों से परिपूर्ण कापालिक का सा व्रत धारण करती है, और...।
यदि शनि, मंगल अथवा चांद, रोहिणी शकट का भेद न करे तो मैं क्या कहं । यह तो सब जानते हैं कि इससे सारा संसार नाश हो जाता है। रोहिणी शकट के मध्य में चांद के स्थित होने पर शरणहीन होकर कहीं भी जाएं, उन्हें शरण नहीं मिल पाती और न ही कुछ खाने-पीने को मिलता है। बस इसी कारण वे लोग बच्चों का मांस खाने वाले बन जाते हैं और सूर्य के तेज से उबलते हुए पानी को मजबूर होकर पीते हैं।


अत: यह तालाब जिसमें पहले ही थोड़ा-सा पानी है, शीघ्र ही सूख जाएगा। इसके सूख जाने पर जिनके साथ मैं सदा से ही रहा हूँ वह जल के न होने से मर जाएंगे। मैं यह दःख सहन नहीं कर पाऊंगा। इसीलिए मैंने उपवास किया है और रो रहा हूं। इस समय थोड़े पानी वाले सभी तालाबों के जन्तु बड़े-बड़े तालाबों की ओर जा रहे हैं । अब कुछ ही दिनों में यहां पर सब कुछ समाप्त हो जाएगा।

केकड़ा उस बगुले से यह विनाश की कहानी सुनकर सब जन्तुओं के पास जाकर आने वाले विनाश की कहानी सुनाने लगा। उस कहानी को सुनते ही डर के मारे कांपते हुए मछलियां, कछुवे उस बगुले के पास आकर पूछने लगे “मामा ! क्या इस मौत से बचने का कोई रास्ता भी है ?"


बगला बोला, “इस तालाब के पास ही एक बड़ा तालाब है जो 24 वर्ष तक वर्षा न होने पर भी सूखता नहीं है । जो कोई मेरी पीठ पर चढ़ जाए मैं उसे उस तालाब में छोड़ सकता हूं।"
बगुले की बात सुनकर जन्तु बोल उठे "मामा ! मुझे वहां ले चलो...." हर कोई चाहता था कि पहले मैं वहां पर जाऊं।


बस फिर क्या था, बगुले की चाल सफल हो गई थी। वह बारी-बारी कुछ जन्तुओं को अपनी पीठ पर लादता और एक चट्टान पर ले जाकर खा लेता।इस प्रकार वह प्रतिदिन ही इन जन्तुओं को खाने लगा और वहां से आकर दूसरे जन्तुओं को झूठ-मूठ की कहानी घढ़कर सुना देता।इस प्रकार बूढ़े बगुले ने चालाकी, झूठ, हेरा-फेरी से अपना धंधा जमा लिया। बेचारे जीव-जन्तुओं को क्या पता था कि धीरे-धीरे उनके साथी उस बगुले के पेट में जा रहे हैं।केकड़ा बेचारा प्रतिदिन ही बगुले से कहता कि मुझे भी उस तालाब में छोड़ आओ परन्तु हर बार ही बगुला उसे छोड़ जाता और मछलियों को ले जाता।


एक दिन क्रोधित केकड़े ने बगुले से पूछ ही लिया “मामा जी ! आप मुझसे सबसे अधिक प्यार करते थे लेकिन इस भयंकर मौत से बचाने के लिए आप मुझे यहाँ से निकालकर क्यों नहीं ले जाते ?"
बगुला केकड़े की बात सुनकर सोचने लगा कि कहीं इस केकड़े को मेरी चालाकी का पता न लग जाए। फिर नित्य-प्रति मछलियां खाकर भी वह तंग आ गया था। केकड़े को खाने से ज़रा मुंह का स्वाद भी बदल जाएगा। यही सोचकर उस बगुले ने केकड़े से कहा "चलो बेटा, आज तुम ही मेरे साथ चलो, आज तुम्हें भी किनारे लगाकर आता हूं।"तब उस केकड़े को अपनी पीठ पर लाद पर बगुला ले चला उस पहाड़ी की ओर । केकड़े बेचारे को क्या पता था कि उसके साथ यह धोखा हो रहा है ! देखते-ही-देखते उस केकड़े को उस पहाड़ी पर जा पटका।


“मामा जी ! अभी वह तालाब कितनी दूर है, मेरे बोझ से आप थक गये लगते हैं ?" बगुला हंसा । उसे पता था कि यह मंद बुद्धि जल-जन्तु अब इस पहाड़ी पर मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। अब इससे डरने की कोई जरूरत नहीं। उसने अपनी शेखी बघारते हए कहा "बेटा ! उस तालाब को अब भूल जा । उस तालाब की कहानी तो मैंने तुम लोगों को पागल बनाने के लिए घड़ी थी । मैं तो इस ढंग से अपना शिकार करता हूं। सीधी तरह शिकार मुझे मिलता नहीं था, मैंने अपनी तेज बद्धि से यह रास्ता निकाल लिया।" केकड़ा बड़ा होशियार था। उसे बगुले की चालाकी का पता चल गया।
वह ज़ोर से चीखा, “मेरे मामा...।" यह कहते हुआ वह बगुले के गले से दिये। लिपट गया। साथ ही उसने अपने दोनों दांत बगुले की गर्दन पर ज़ोर से गाढ़"हाय ! मैं मरा... ।” बगुले के गले से अन्तिम चीख निकली।


इसके पश्चात् उसकी आवाज़ सदा के लिए बंद हो गई। उसकी कटी गर्दन को लेकर केकड़ा वापस उसी तालाब में अपने साथियों के पास आ गया। उसके साथियों ने उसे इस प्रकार वापस आते देखकर पूछा "भाई ! तुम वापस क्यों आ गये ? उस मित्र को कहां छोड़ जाए जो हम सब की जान बचा रहा था ?" । तब केकड़े ने हंसकर कहा, “अरे मूखों ! वह बगुला तो सबसे बड़ा झूठा और धोखेबाज और हत्यारा निकला । वह तो हमारे एक-एक साथी को धोखे से जहां से ले जाकर उस पहाड़ी पर बैठकर खा जाता था। आज मैंने उसकी यह चालाकी पकड़ ली और साथ ही उसे भी सदा के लिए शांत कर दिया। सोचो, यदि आज मैं उसे ठिकाने न लगाता तो वह एक-एक करके सबको खा जाता। यदि तुम्हें विश्वास नहीं तो देखो उस धोखेबाज की गर्दन, जिसे काटकर मैं साथ ले आया हूं।” यह कहकर उसने उन्हें बगुले की कटी हुई गगर्दन दिखा दी।


जल-जन्तु अपने साथी की तीव्र बुद्धि से शत्रु को मारने से बहुत खुश हुए। कौवा उस केकड़े की कहानी सुनकर खुश हुआ और साथ ही बोला“भाई अब मुझे यह भी बताओ कि मैं उस साँप को कैसे समाप्त करूं ?” गीदड़ बोला, “तुम लोग राजा की राजधानी में जाओ और वहां से एक सोने का हार चोरी करके लाओ और उसे सांप के बिल पर रख दो । जैसे ही सांप अपने बिल से बाहर निकलेगा तो वह हार उसके पास से बरामद करने के लिए राजा के नौकर उसे मार देंगे। बस इसी तरीके से इस सांप को मारा जा सकता है।

कौवा-कौवी को गीदड़ की यह योजना पसन्द आई एवं उन्होंने ऐसा ही करने की सोची। तब कौवा-कौवी वहां से उड़ गये। उड़ते-उड़ते वे एक ऐसे स्थान पर पहुंचे, जहाँ पर एक रानी नदी में स्नान कर रही थी। बस फिर क्या था । कौवी ने अपने पति की ओर इशारा किया तथा अपना दांव मारा और उस हार को ले उड़ी। रानी ने जैसे ही अपने मोतियों के हार को इस प्रकार जाते देखा तो उसने शोर मचा दिया। रानी का शोर सुनते ही नौकरों की पूरी सेना उस कौवे-कौवी के पीछे-पीछे भागने लगी। कौओ  उड़ने में बड़ी तेज थी , उसने जाते ही उस हार को सांप के बिल पर गिरा दिया |

जब तक रानी के नौकर वहां पहुचते तब तक वह कला सांप भी बिल से बहार निकल आया था | जैसे ही रानी के नौकरों ने काले सांप को उस हार के बिच में देखा तो सब के सब उस पर टूट पड़े देखते ही देखते सांप मारा गया रानी के नौकर अपना हार लेकर चले गए |