बुज़दिल मत बनो-पंचतंत्र की कहानियां

Apr 03,2021 07:54 AM posted by Admin

एक बार एक गीदड़ उस जंगल में चला गया जहां दो सेनाएं युद्ध कर रही थीं। दोनों सेनाओं के मध्य क्षेत्र में एक नगाड़ा रखा हुआ था। गीदड़ ने बड़े गौर से उस नगाडे को देखा। वह गीदड़ बेचारा कई दिनों से भूखा था, नगाड़े को ऊंचे स्थान पर रखे देखकर वह कुछ देर के लिए रुका। उसके देखते ही देखते हवा के एक तेज़ झोंके से नगाड़ा नीचे गिर गया, फिर आस-पास के वृक्षों में झूलती शाखायें हवा से उस नगाड़े पर पड़ने लगी तो उसमें से आवाजें आने लगीं।

बेचारा गीदड़ इन आवाजों को सुनकर डर गया। वह सोचने लगा कि अब क्या होगा ! क्या मुझे यहां से भागना पड़ेगा ? - “नहीं.... नहीं।” मैं अपने पूर्वजों के इस जंगल को छोड़कर नहीं जा सकता । भागने से पहले मुझे इस आवाज़ का रहस्य तो जानना ही होगा। बस यही सोचकर वह धीरे-धीरे उस नगाड़े के पास पहुंच गया। कितनी देर तक उसे देखने के पश्चात् वह सोचने लगा कि यह नगाड़ा तो बहुत बड़ा है, इसकी शक्ति भी कुछ कम नहीं, फिर इसका पेट भी बहुत बड़ा है, इसको चीरने से तो बहुत चर्बी और माल खाने को मिलेगा। “वाह.... वाह... अब तो खूब आनन्द आएगा खाने में ।"

यही सोचकर उस गीदड़ ने नगाड़े का चमड़ा फाड़ दिया और उसके अन्दर घुस गया परन्तु वहां क्या था "मात्र ढोल का पोल।" अत: गीदड पोल में कुछ भी न पाकर बहुत निराश हुआ। इस नगाडे को फाडने में तो उसके दांत भी टूट गये थे, किन्तु मिला क्या ? कुछ भी नहीं। वह तो इस नगाड़े से डर रहा था। तो भी कुछ नहीं हुआ। "देखो केवल आवाज़ से ही नहीं डरना चाहिए, इन्सान को बुजदिल भी नहीं बनना चाहिए।"

शेर ने दमनक की ओर देखकर कहा "देखो भद्र. मेरे यह सारे साथी इस समय बहुत डरे हुए हैं, यह सब भाग जाना चाहते हैं, बताओ मैं अकेला क्या करूं?" "यह इनका दोष नहीं महाराज। आप तो जानते ही हैं 'जैसा राजा वैसी प्रजा।"

घोड़ा, शस्त्र, शास्त्र, वीणा, वाणी, नर और नारी, यह सब पुरुष विशेष को पाकर योग्य और अयोग्य होते हैं, इसलिए आप तब तक यहीं रहें जब तक कि मैं पूरी सच्चाई का पता लगाकर वापस न आऊं।" )
“क्या तुम वहां जाने का इरादा रखते हो ?" शेर ने पूछा। “जी हां महाराज, अच्छे और वफादार दास का जो कर्त्तव्य है मैं उसे पूरा करूंगा। बड़े लोग यह कह गए हैं कि अपने स्वामी का कहना मानने में कभी भी झिझक नहीं होनी चाहिए, चाहे उसे सांप के मुंह में या सागर की गहराई में ही क्यों न जाना पड़े। अपने स्वामी के आदेशों को जो भी सेवक यह नहीं सोचता कि यह कठिन है अथवा सरल, वही महान होता है।"

पिंगलक, दमनक की बातों से बहुत खुश हो गया था। उसने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा, “यदि यही बात है तो जाओ, भगवान तुम्हें इस काम में सफलता दे।” “धन्यवाद ! मेरे मालिक, भगवान ने चाहा तो मैं सफलता पाकर ही लौटूंगा।” इतना कहकर दमनक वहां से उठकर उस ओर चल दिया जहां से उस बैल की आवाज सुनी गई थी। - दमनक के चले जाने के पश्चात् शेर सोचने लगा कि मैंने यह अच्छा नहीं किया जो उसे अपने सारे भेद बता दिए । कहीं यह शत्रु का जासूस न हो, या दोनों पक्षों को पागल बनाकर अपना स्वार्थ सिद्ध न कर रहा हो ! यह भी हो सकता है कि यह मुझसे पुराना बदला चुकाना चाहता हो, क्योंकि मैंने इसे पद से हटाया था, इस बारे में कहा गया है।

जो लोग राजा के यहां पहले से ऊंचे पद पर होते हुए बड़ी इज्जत-मान रखते हैं, यदि उन्हें इस पद से हटा दिया जाए तो वे अच्छे होते हुए भी उस राजा के शत्रु बन जाते हैं । वे अपने अपमान का बदला लेना चाहते हैं, इसलिए में उस दमनक को परखने के लिए यहां से जाकर दूसरे स्थान पर रहना शुरू कर देता हूं। यह भी हो सकता है कि दमनक उसे साथ लेकर मुझे मरवा ही डाले । ऐसे ही लोगों के बारे में कहा गया है। विश्वास न करने वाले कमज़ोर प्राणी बलवानों से भी नहीं मारे जाते और कभी-कभी बलवान भी विश्वास करने पर कमज़ोर के हाथों से मारे जाते हैं।

सौगंध खाकर संधि करने वाले शत्रु का भी विश्वास नहीं करना चाहिए, राज्य प्राप्त करने के लिए उद्धत वृत्रासूर सौगंधों द्वारा ही इन्द्र से मारा गया था। देवताओं का शत्रु भी बिना विश्वास दिलाए बस में नहीं होता, इसी विश्वास के धोखे से तो इन्द्र ने दिति के गर्भ को नष्ट कर दिया था। यह सब सोचकर पिंगलक किसी दूसरे स्थान पर जाकर दमनक के रास्ते को देखते हुए उस स्थान पर जाकर बैठ गया।

जैसे ही दमनक बैल के पास जा रहा था वह दिल ही दिल में खुश हो रहा था, क्योंकि उसे अपने पुराने मालिक को खुश करने और अपनी खोई हई इज्जत प्राप्त करने का एक सुन्दर अवसर मिला था। बैल से मिल कर वह वापस अपने मालिक के पास जाने लगा तो सोच रहा था कि विद्वानों ने ठीक ही कहा है “राजा मंत्रियों के कहने पर उस समय तक दयालु और सच्चाई के मार्ग पर नहीं चलता जब तक वह स्वयं दुःख न उठा ले, दुःख और मुसीबत में फंस कर ही राजा को वास्तविक जीवन का पता चलता है । इसलिए मंत्री लोग दिल से चाहते हैं कि राजा भी कभी-न-कभी दुःख झेले। जैसे स्वस्थ प्राणी किसी अच्छे डाक्टर को नहीं चाहता वैसे ही दु:खों और संकटों से बचा हआ राजा किसी अच्छे मंत्री को नहीं चाहता।"

यही सोचता हुआ, दमनक वापस शेर के पास पहुंच गया, शेर भी दर से ही उसे आते देख रहा था। उसने पहले से ही अपने को आने वाले खतरे का मुकाबला करने के लिए तैयार कर रखा था।
मानक को अकेले आते देखकर वह समझ गया था कि डर वाली कोई बात नहीं, उसने दमनक से पूछा “मित्र, क्या तुम उस भयंकर जानवर से मिल आए हो ?" “जी हां।” दमनक ने उत्तर दिया। "क्या यह सत्य है ?” शेर ने आश्चर्य से पूछा। “महाराज ! क्या आप यह सोच सकते हैं कि मैं अपने मालिक के सामने अठ बोलूंगा ? आपको याद नहीं जो पुरुष राजा और विद्वानों के आगे झूठ बोलता है वह कितना ही महान् क्यों न हो, शीघ्र ही नष्ट हो जाता है।"

पिंगलक (शेर) बोला, “यह ठीक है, तुमने उसे देखा होगा छोटों पर बड़े क्रोध नहीं करते इसीलिए उसने तुम्हें कुछ नहीं कहा होगा !" "महाराज, हवा कभी भी नीचे झुके तिनकों और धरती पर बिछी हुई घास को कुछ नहीं कहती, सदा बड़े बड़ों पर अपनी शक्ति दिखाती है। जैसे मस्त भंवरे जब किसी हाथी के कान के निकट जाकर अपना राग अलापते हैं तो वह हाथी कभी भी उस भंवरे पर गुस्सा नहीं करता, क्योंकि बलवान सदा बलवान पर गुस्सा करता है।"

"ठीक है मेरे मित्र, मैं तुम्हारी बातों से खुश हुआ, अब उस भयंकर जानवर के बारे में भी तो कुछ बताओ जिसकी गर्ज से ही जंगल कांप उठता है।" शेर की जिज्ञासा बढ़ रही थी। "जी महाराज, यदि आप कहें तो मैं उस भयंकर जानवर को आपकी भी सेवा में लगा दूँ।" दमनक ने कहा। शेर पिंगलक ने एक ठंडी सांस भरते हुए कहा-“क्या यह हो सकता है ?" "महाराज ! बुद्धि से इस संसार में क्या नहीं हो सकता? यह बात भी सत्य है कि बुद्धि द्वारा जो काम बन सकता है वह हथियारों से नहीं बनता।" “यदि ऐसा तुम कर दिखाओगे दमनक, तो मुझे बहुत खुशी होगी, वैसे मैं तुम्हारी बातों से बहुत प्रभावित हुआ हूं । मैं आज से तुम्हें अपना मंत्री बनाता हूं, मेरे सारे काम को तुम ही देखा करोगे।” "धन्यवाद महाराज, मैं आपको वचन देता हूं कि मैं आपकी सेवा सच्चे दिल से करूंगा, आप मुझे आशीर्वाद दें कि मैं उस भयंकर जानवर को ले जाकर उसे आपके रास्ते से हटा सकू।"

“जाओ दमनक जाओ, मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं।" । दमनक अपने पुराने मालिक की खुशी और अपने खोये हुए पद को पाकर अत्यन्त खुश हो गया था। वह वहां से सीधा उस बैल के पास पहुंचा, जाते ही उसने बैल से कहा “ओ दुष्ट बैल ! इधर आ, मेरा मालिक पिंगलक तुझे बुला रहा है।” . उसकी बात सुनते ही बैल ने आश्चर्य से पूछा, “मित्र, यह पिंगलक कौन “अरे, क्या तू मेरे मालिक पिंगलक को नहीं जानता ? कमाल है तुझे इस जंगल में रहकर भी नहीं पता कि उस सामने बट के पेड़ के नीचे पिंगलक नामक शेर रहता है।"

बैल उसके मुंह से शेर की बात सुनकर डर-सा गया किन्तु फिर भी अपने आपको संभालता हुआ बोला, “देखो मित्र, यदि तुम मुझे अपने मालिक के पास ले जाना चाहते हो तो मेरी रक्षा की सारी जिम्मेदारी तुम पर ही होगी।" "हा....हां मित्र, तुम ठीक ही कहते हो मेरी नीति यही है, क्योंकि धरती, सागर और पहाड़ का तो अन्त पाया जा सकता है किन्तु राजा के दिल का भेद आज तक किसी ने नहीं पाया, इसलिए तुम उस समय तक यहीं पर ठहरो जब तक मैं अपने मालिक से सारी बात करके वापस न आ जाऊं।"

"ठीक है मित्र, मैं तुम्हारा इन्तज़ार करूंगा,” बैल ने कहा। दमनक बैल को वहीं छोड़ कर खुशी से छलांगें लगाता हआ फिर शेर के पास पहंचा। शेर भी अपने मंत्री को आते देखकर खश हआ। सो पूछा
"कहो प्रिय मंत्री ! क्या खबर लाए हो ?" - "महाराज । वह कोई साधारण बैल नहीं है । वह तो भगवान शंकर का वाहन बैल है, स्वयं शंकर जी ने उसे इस जंगल में घास खाने पिंगलक ने हैरानी से कहा, “अब मुझे ठीक-ठीक पता चल गया कि यह बैल इस जंगल में क्यों आया है । इसके पास देवताओं की शक्ति के यहां के जीव-जन्तु उसके सामने आज़ादी से नहीं घूम सकते."

"मगर मंत्री, तुमने उससे क्या कहा ?" मैंने उसे कहा, “यह जंगल चंडी के वाहन, मेरे राजा पिंगलक नामक शेर के अधिकार में है, इसलिए आप हमारे मेहमान हैं, मेहमान की सेवा करना हमारा सर्वप्रथम धर्म है। इसलिए मैं अपने राजा की ओर से आपसे प्रार्थना करता हूं कि आप हमारे साथ रहें।" "वह क्या बोला ?" पिंगलक ने पूछा। "महाराज ! वह मेरे साथ आने को तैयार हो गया, अब तो मैं केवल आपकी आज्ञा की प्रतीक्षा कर रहा हूं । कहें तो उसे आपके पास ले आऊं ?"

“दमनक, तुमने तो हमारे दिल की बात कह दी । मैं बहुत खुश हूं । जाओ तुम जल्दी से उसे मेरे पास ले आओ। मुझे तो यह बात बार-बार याद आती। जैसे शक्तिशाली खम्भों पर भवन खड़ा किया जाता है वैसे ही बुद्धिमान मंत्री के कन्धों पर राज्य का बोझ डाला जाता है।" दमनक, अपने राजा के मुंह से अपनी प्रशंसा सुनकर बहुत खुश हुआ और फिर वहां से वापस उस बैल की ओर चल दिया। बैल दमनक की बात सुनकर बहुत खुश हुआ और शेर का निमन्त्रण पाते ही बोला

"जैसे सर्दी में आग अमृत, वैसे अपने मित्र का दर्शन अमृत है, दूध का भोजन खीर अमृत और राज सम्मान भी ऐसे ही अमृत हैं, हम अपने मित्र सिंह के पास चलेंगे।" दमनक ने बैल से कहा, “देखो मित्र ! मैं तुम्हें वहां पर ले जा रहा हूं। मैंने ही शेर से तुम्हारी मित्रता करवाई है, इसलिए तुम्हें मुझे यह वचन देना होगा कि तुम सदा मेरे मित्र बने रहोगे। राजा, सदा राजा रहता है, मंत्री मंत्री, किन्तु शिकारी की नीति से राज्य वैभव मनुष्यों के बस में हो जाता है, एक तो प्रजा को प्रेरित करता है दूसरा यानि शिकारी मृगों की भांति उसे मार देता है।