बोलने वाली गुफा-पंचतंत्र की कहानियां

Apr 05,2021 04:36 AM posted by Admin

एक जंगल में एक शेर रहता था। एक दिन वह सारे जंगल में भटकता फिरता रहा किन्तु उसे कोई शिकार न मिला । वह भूख से व्याकुल था। शाम के समय वह एक बड़ी गुफा के अन्दर घुस गया और वहां पर बैठकर सोचने लगा कि शायद रात को कोई न कोई जानवर यहां अवश्य आए इसलिए मैं चुपचाप बैठता हूं। कुछ देर के पश्चात् उस गुफा का मालिक गीदड़ आया। उसने देखा कि गुफा में अन्दर जाने वाले शेर के पांव तो हैं, किन्तु उसके वापसी के नहीं। वह सोचने लगा अब तो वह मारा गया क्योंकि इसके अन्दर शेर ज़रूर है, पर मुझे कैसे पता चले ? कितनी देर तक गीदड़ अपने बचाव के लिए सोचता रहा फिर गुफा के द्वार पर जाकर बोला__ “हे गुफा ! हे गुफा !” यह आवाज़ दे वह थोड़ी देर के लिए चुप हो गया। - फिर वह बोला, “हे गुफा ! क्या तुझे यह याद नहीं कि मैंने तुम्हारे साथ वह शर्त रखी थी कि जब भी मैं बाहर से आऊं तू मुझे बुलाएगा और मैं तुम्हें ।

अब देख, यदि तू मुझे नहीं बुलाएगी तो मै रहने के लिए किसी दूसरी गुफा में चला जाऊंगा। यह सुनकर शेर ने सोचा, निश्चय ही यह गफा गीदड़ के आने पर इससे बोलती होगी। आज मेरे डर के कारण नहीं बोलती होगी इसलिए क्यों न मैं ही इस गीदड़ को बुलाऊं जिससे यह गुफा के अंदर आ जाए फिर मैं इसे खा लं। यह सोचते ही शेर ने उसे बुलाया। जिसकी आवाज़ सुनकर जंगल के सारे जानवर भाग खड़े हुए। इसके साथ ही गीदड़ भी यह कहता हुआ भाग निकला“जो भी मुसीबत आने से पहले उपाय करता है वही सुखी रहता है ।

जो भी ऐसा नहीं करता वह पछताता है । इस वन में रहते-रहते मैं बूढ़ा हो गया लेकिन मैंने कभी गुफा को बोलते नहीं सुना, इसलिए मैं आपसे यही कहता हूं कि आप लोग यहां से भाग निकलो, नहीं तो सब के सब मारे जाओगे। मन्त्री की बात सुन वे सब के सब उसके साथ जाने को तैयार हो गए। वे सब के सब उस पहाड़ी से बहुत दूर चले गए। उस बूढ़े मन्त्री के जाने पर कौवे ने सोचा“वाह ! यह तो बहत अच्छा हआ, वही मंत्री तो इन सब में होशियार था, बाकी के तो सब बेकार हैं। अब तो इन्हें मैं आसानी से मार लूंगा, कहा भी है-जिस राजा के पास बुद्धिमान मन्त्री नहीं होते उसके विनाश में अधिक समय नहीं लगता।”यही सोचकर वह कौवा, उस गुफा को जलाने के लिए अपने निवास स्थान पर एक-एक लकड़ी इकट्ठा करता रहा ।

उसकी तीव्र बुद्धि उल्लुओं के विनाश की बात सोच रही थी, उसकी इस चाल को मोटी अक्ल के उल्लू न समझ सके थे। इस तरह उसने अपने घौंसले के बहाने बहुत-सी लकड़ियां इकट्ठी कर ली थीं। एक दिन जब वह सुबह के समय सभी उल्लू अंधे होकर सो रहे थे तो यह बुद्धिमान कोवा अपने राजा के पास गया और बोला, “महाराज ! मैंने शत्रु के सर्वनाश की सारी तैयारी कर ली है, आप कहीं से एक जलती हुई लकडी लाकर उस घौंसले पर फैंक दें। बस....सब शत्रु अन्दर ह। जल जाएंगे। बस इतना कहते ही वह उड़ गया।"

उसके जाने के पश्चात् सारे के सारे कौवे चोंचों में जलती लकड़ियां उठाकर उड़ते हुए आए तथा उन्होंने उस घोंसले की बहुत सारी लकड़ियों के ढेर पर उन्हें फेंक दिया। बस फिर क्या था ? सूखी लकड़ियों में आग
भड़क उठी। यह आग गुफा के अंदर भी पहुंच गई, दिन में तो उल्लुओं को वैसे भी नज़र नहीं आता और ऊपर से भयंकर आग देखते ही सारे उल्लू जलकर राख हो गए। इस प्रकार कौवे अपने राजा समेत फिर अपने पुराने किले में वापस आ गए और बूढ़े कौवे की बुद्धि से उनके राजा बहुत खुश हुए उन्हें अपने दरबार के लिए विशेष दूत और विशेष सलाहकार बना लिया।

कौवा राजा ने अपने इस विशेष सलाहकार से पूछा कि तुम उन उल्लुओं के बीच कैसे समय काटते रहे जो हमारे सबसे बड़े शत्रु थे ? तब बूढ़ा कौवा बोला, “हे महाराज ! देखो पांडवों ने जंगलों में रहते हए क्या दुःख नहीं सहे, इस प्रकार मैं भी अपने कर्तव्य का पालन करने के लिए कष्ट सहता रहा। हां, मैंने इन लोगों जैसे मूर्ख और कहीं नहीं देखे, मैं तो यही कहूंगा कि बुद्धिमान वही है जो मौके के अनुसार अपना रंग बदले, जैसे काले सांप ने बहुत मेंढकों को मार डाला।“वह कैसे मारा ?”सुनो महाराज