भले को ही शिक्षा दो-पंचतंत्र की कहानियां
Apr 03,2021 08:29 AM posted by Admin
किसी जंगल में किसी घने वृक्ष पर घौंसला बनाए हुए गौरैया का जोड़ा रहता था । वर्षा के दिनों में एक बार थोड़ा-थोड़ा पानी बरसने लगा, उसी समय एक बन्दर वर्षा में भीगा हुआ, ठण्ड के मारे कांपता हुआ उस वृक्ष के नीचे आकर बैठ गया। उसकी यह हालत देखकर गौरैये की पत्नी ने कहा
“अरे भाई, तुम तो मनुष्य जैसे ही लगते हो फिर इस ठण्ड में क्यों मर रहे हो, कहीं छप्पर छाया का प्रबन्ध करो।" उसकी बात सुनकर बन्दर को क्रोध आ गया । वह आंखें लाल करता हआ बोला, “अरी ओ, तू मेरी हंसी उड़ा रही है !" इसीलिए कहा गया है. कोई खशी से बात पूछे तो बतानी चाहिए, मूर्ख से कहना तो व्यर्थ होता है।
अभी गौरैयनी कुछ और कहने ही जा रही थी कि बन्दर झट से उस पेड़ पर चढ गया और उसके पास जाते ही घौंसले के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। इसीलिए तो मैं कहता हूं भाई किसी को व्यर्थ में अकल मत सिखाओ. सदा बद्धिमान और भले व्यक्ति को ही अच्छी बात सिखाओ । नहीं तो सबद्धि नामक पुत्र के व्यर्थ कार्य से जैसे उसका पिता धुएं में मर गया वही हालत होती है। "कैसी हालत ?” दमनक ने पूछा। लो सुनो उनकी भी राम कहानी