बलवान शत्रु से बचो-पंचतंत्र की कहानियां

Apr 03,2021 07:59 AM posted by Admin

एक बार किसी तालाब में तीन मच्छ रहते थे। एक बार कुछ धोबी उस तलाब के पास राह चलते रुक गये, उन्होंने तालाब में झांक कर देखा तो उनके मुंह में पानी भर आया।
“वाह इस तालाब में तो बहुत मछलियां हैं, हमने तो आज तक तालाब में से मछलियां पकड़ी ही नहीं थीं।”

उस समय शाम हो चुकी थी उन्होंने कहा, “चलो कल सुबह आकर इस तालाब में से मछलियां पकड़ेंगे।" उनकी बातों को एक मच्छ ने सुन लिया था। इसने झट से सारी मछलियों का इकट्ठा किया और उन सबको उन मछली पकड़ने वालों की कहानी सुनाई। मुसीबत..... मौत..... को सिर मड़राते देखकर सबके सब चिंतित हो गये थे, सभी बैठे सोच रहे थे कि इस मौत से कैसे बचा जाए ?

बहुत सोच-समझ के पश्चात् यह निर्णय किया गया कि इस तालाब को छोड़कर साथ के किसी दूसरे तालाब में चले जाना चाहिए। ऐसे अवसर पर कहा गया है शत्रु बलवान हो तो भाग जाना चाहिए या फिर किसी किले का सहारा लेना चाहिए, इसके सिवा और कोई रास्ता नहीं। जिनका अन्य स्थान पर भी सुख से समय बीत सके वे विद्वान् लोग जाने के कष्ट और स्थान से बिछुड़ने के दुःख को नहीं सोचते।
दूसरे मच्छ ने अपने साथी की बात सुनकर कहा "भाई, आप ठीक कहते हैं, मेरा भी यह विचार है कि हमें यथाशीघ्र इस स्थान से निकल जाना चाहिए। किसी विद्वान ने कहा है अत्यन्त मोही, नपंसुक लोग ही परदेस के नाम से डरते हैं । वे कौवे की भांति बुजदिल और हिरण की भांति अपने देश में ही भूखे मरते हैं । जो स्वदेश में भूखा मरे वह मनुष्य क्या ? जो खारे कुएं का पानी इसलिए पीता है कि यह मेरे बाप दादा का बना हुआ है, उसे पागल कहा जाएगा।"

अत: सब लोगों ने मिलकर इस तालाब को छोड़ने का निर्णय कर लिया और साथ वाले किसी तालाब में चले गए। सुबह उठते ही जब मच्छवारे बड़े आनन्द से झूमते हुए जाल लेकर उस तालाब में इन मछलियों को पकड़ने आए तो उनके हाथ केवल निराशा ही लगी। टिट्टिभ बोला, “अरी भाग्यवान, क्या तुम मुझे इतना ही बुजदिल समझती हो ? मैं इस पापी समुद्र को अपनी चोंच से सुखा दूंगा। मैं बुजदिल मच्छ नहीं जो डरकर भाग जाऊंगा।" "वाह ! भला तुम्हारी समुद्र से क्या लड़ाई ! इससे क्रोध करना ठीक नहीं। कहा भी गया है-. असमर्थों का क्रोध उनको ही नुकसान पहुंचाता है। जैसे अत्यन्त गर्म बर्तन पास वाले को ही जलाता है।
अपने शत्र की शक्ति को न समझकर, जो उत्साह के साथ युद्ध करने जाते हैं। आग में जलते पतंगे की भांति स्वयं नष्ट हो जाते हैं।"


टिट्टिभ बोला, “नहीं....नहीं प्रिय ! ऐसा मत कहो जिनमें उत्साह होता कबडे-बड़े कठिन कार्य भी कर जाते हैं। कहा गया है कि क्रोधी पुरुष सदा डरकर शत्र के सामने जाता है जैसे राहू चन्द्रमा को देखकर भी उसके पास जाता है । भारी शरीर वाले हाथी पर भी शेर पांव रख देता है । निकलते सूर्य की किरणें भी ऊंचे पहाड़ों पर पड़ती हैं, घने अंधेरे छोटे से दीपे के सामने भाग जाते हैं। छोटे से बम से भारी पहाड़ भी गिरा दिए जाते हैं। जिसमें तेज हो वह बलवान है । मोटे भारी का क्या विश्वास ? तो मैं इस चोंच से इसके सारे पानी को सुखा दूंगा।"

टिट्टिभी बोली-“हे स्वामी ! जिसमें हर रोज़ गंगा और सैंकड़ों नदियों जल को लेकर पहुंचती हैं । उस हज़ारों नदियों से भरे समुद्र को भला तुम एक चोंच से कैसे सुखा दोगे?" :
"मेरी भोली पत्नी, यह बात याद रखो कि परिश्रम करने से ही कार्य सिद्ध होता है, मेरी चोंच छोटी है रात-दिन बहुत बड़े हैं। फिर भी क्या समुद्र नहीं सूखेगा ? बिना हिम्मत के कुछ नहीं मिलता।"
“स्वामी ! यदि तुमने यह निर्णय कर लिया है तो अपने साथ दूसरे लोगों को भी मिला लो। संगठन में ही शक्ति है । बहुत से तिनकों को इकट्ठा करके रस्सी बनाई जाती है जिसमें हाथी बांधा जा सकता है । इस प्रकार मक्ख और मेंढकों के विरोध करने से हाथी भी मारा गया था।"
“वह कैसे ?" टिटिभी ने पूछा। सुनो उसकी कहानी-