बहुमत की शक्ति-पंचतंत्र की कहानियां

Apr 05,2021 02:07 AM posted by Admin

एक कुम्हार के घर में एक बहुत मोटा सांप रहता था। एक बार वह अपने बिल से निकलकर जब साथ वाले छोटे-से बिल में घुसा तो उसका शरीर ज़ख्मी हो गया। जख्मी सांप को देखकर चींटियां उस पर टूट पड़ी। सांप ने बहुत सारी चीटियों को मारा अनेकों को कुचला, लेकिन फिर भी वह चीटियों को समाप्त न कर सका और न ही उन्हें डरा सका। चींटियां घायल सांप के शरीर को नोच-नोचकर खा गईं । इस प्रकार से सांप मारा गया। इसलिए मैं आपसे कहता है कि हमेशा बहमत की शक्ति को ध्यान में रखो और मैं आपसे जो भी कहता हूं उसे ध्यान से सुनो “मैं सुन रहा हूं मन्त्री जी, आप कहो तो सही।” "देखो महाराज ! मैंने यही उपाय सोचा है जिसे पांचवां उपाय कहते हैं ।

आप लोग मुझे अपना झूठा शत्रु घोषित करो और मुझे मार-पीटकर रास्ते में फैंक दो और स्वयं सब साथियों को लेकर सामने पहाड़ पर चले जाओ मुझसे बहुत दूर । इस बीच शत्रु मुझे आपका शत्रु समझ कर अपना मित्र समझ अपने पास रखेगा और मैं उन्हें झूठी मित्रता का विश्वास दिलाकर उनके सारे भेद लेता रहूंगा, मैं उनको धोखे से मारता रहूंगा, बस यही एक चाल है जिससे हम शत्रु तक पहुंचकर उसे समाप्त कर सकते हैं।” राजा ने अपने मन्त्री की बात मान ली और उसने झूठ-मूठ में उससे झगड़ा आरंभ कर दिया। यहां तक कि नौबत मार-पीट तक पहुंच गई। बस फिर क्या था उस मंत्री कौवे को मार-पीट कर सामने चौराहे पर कैंक - दिया गया। घायल मंत्री को देखकर उल्लुओं के जासूसों ने कौवों का भेद लेने का सबसे बढ़िया रास्ता समझ और शत्रु का शत्रु, मित्र वाली बात उनकी समझ में आई । उधर कौवों का राजा अपनी प्रजा समेत अपने राज्य छोड़कर पहाड़ों की ओर निकल भागा था।

उल्लू राजा ने जब अपने गुप्तचरों से यह सारी कहानी सुनी तो वह बहुत खुश हुआ । यह अवसर तो बहुत अच्छा था, एक तो शत्रु का निवास स्थान मिलेगा, दूसरा उनका मित्र शत्रु-जो अब हमारा मित्र होगा, उनके सारे भेद देगा। यह कह कर वह कौवा राजा की ओर निकल पड़ा, किन्तु उन्होंने जाकर देखा तो वहां कुछ भी नहीं था, सभी कौवे भाग चुके थे। उल्लू राजा ने अपने सैनिकों से कहा“देखो. हमें यथाशीघ्र उन कौवों का रास्ता पता लगाकर किले में घुसने से पहले मार देना चाहिए ?"

जब उनके मंह से यह शब्द सुनें तो उसे इस बात इस बात पर बड़ा दुःख हुआ कि वे लोग उसे तो उठाने की बात सोच ही नही नहीं रहे फिर उसने एक योजना सोची.... और लगा धीरे-धीरे बोलने उसकी आवाज़ सुन सभी उल्लू उसकी ओर मारने को भागेर ओर आते देख वह बोला_ "भाइयो ! मैं कौवा राजा का मंत्री हूं। उस पापी राजा ने मारपटो अपने राज्य से निकाल यहां पर फेंक दिया है। अतः आपस राजा के पास ले चलो मुझे उससे बहुत कुछ कहना है।"

तब वे उल्ल उसे अपने राजा के पास ले गए। उल्ल राजाने हालत में देखकर पूछा, “अरे, यह तुम्हारी हालत, सारे शरीर में से स्वर सब क्यों हुआ ?”“उल्लू महाराज, मैं क्या बताऊं उस पापी कौवा राजा ने यह किया है. वह आप पर हमला करना चाहता था। मैंने उन्हें ऐसा करने क्योंकि मैंने उन्हें कहा था कि यह लोग हमसे बहुत बलवान हैं इसलिए कछ भेंट देकर संधि कर लेनी चाहिए। यह सुनते ही उसने महो आप गप्तचर समझ कर यह सज़ा दी। अब मैं आपके चरणों में पडा हं। अब आप ही मेरे मालिक हैं, उस धोखेबाज और अत्याचारी ने मुझे मार कर फैल ही दिया है।

अब तो मुझे उससे बदला चुकाना ही है और मैं आपको उनके निवास-स्थान तक ले जाकर उन सबको मरवा दूंगा।"उल्लू राजा ने कौवे की बात सुनकर अपने पांचों मन्त्रियों को बलाकर उनसे यह पूछा कि अब मुझे क्या करना चाहिए ? - पहले मंत्री ने कहा, यह हमारा शत्रु है इसे मार देना चाहिए, दुर्बल शत्र को बल पाने से पहले ही मार देना चाहिए, क्योंकि बल पाकर वह बहादुर हो जाता है । ऐसा सुना जाता है, जलती हुई चिता, कटा हुआ फण, देखो जो प्रेम टूट गया वह फिर नहीं बढ़ता। उल्लू राजा ने पूछा। “यह कैसे ?" मंत्री बोला, लो सुनो लालची बेटे की कहानी