अपना भेद किसी को मत दो-पंचतंत्र की कहानियां

Apr 05,2021 04:06 AM posted by Admin

एक बार देवकरण नाम के राजा के पुत्र को सांप ने डस लिया तो वह उस सांप के जहर से बुरी तरह दुःखी रहने लगा। इसी दुःख के कारण उसने अपना घर छोड़ दिया और वह किसी और देश में जाकर एक मन्दिर में रहने लगा। यहां पर वह भिक्षा मांगकर अपना पेट भरता था। उस देश के राजा का नाम भली था। उसकी दो लड़कियां थीं जो सुबह होते ही सूर्य को नमस्कार करती थीं। उनमें से एक कहती थी कि “महाराज की जय हो ! जिसकी कृपा से सब सुख मिलते हैं।" दूसरी कहती“जो आपके भाग्य में लिखा है, वही मिलेगा, वहीं खाओ।"दूसरी लड़की की बात सुनकर राजा को बड़ा क्रोध आया उसने अपने मंत्री से कहा कि यह लड़की दुष्ट है । यह हमारा दिया खाती है और उसे भाग्य के पल्ले बांधती है, इसलिए इसे किसी विदेशी के हवाले कर दो जिससे इसे पता चले कि हम बड़े हैं अथवा भाग्य । “ठीक है महाराज ! ऐसा ही होगा।" यह कहकर मंत्री ने उस लड़की को मन्दिर में रहने वाले बीमार राजकुमार के हवाले कर दिया ।

उस राजकुमारी ने उस बीमार राजकुमार को ही अपना देवता माना और उसे वहां से ले जाकर किसी और देश में चली गई। वहां पर जाकर उन्होंने एक तालाब के किनारे पर अपना डेरा लगाया। राजकुमार को वहीं छोड़कर राजकुमारी दो नौकरों को साथ ले बाज़ार से खाने-पीने का सामान खरीदने चली गई। "जब वह वापस लौटी तो उसने आकर देखा कि राजकुमार एक बांबी पर सिर रखकर सो रहा है और एक सांप अपना फन फैलाए उसके मुंह से निकलने वाली हवा को पी रहा है। साथ वाली बिल से निकलकर दूसरा सांप भी ऐसा ही कर रहा था। उन सांपों ने जब एक-दूसरे को देखा तो बाद में आने वाले सांप ने पहले वाले सांप से कहा “अरे ओ दुष्ट ! तू इस राजकुमार को क्यों तंग कर रहा है ?“अबे तू मुझे क्या कह सकता है ? तूने भी तो अपनी बिल में रखे सोने के ढेर को गंदा कर रखा है।” _ इस प्रकार दोनों ने एक-दूसरे का भेद खोल दिया और एक सांप ने कहा कि क्या तुझे नहीं पता कि तेरी मौत केवल पुरानी कांजी पीने से हो जाती है।दसरा बोला, “तो क्या तेरी भी दवा कोई नहीं जानता कि त गर्म पानी से मर जाएगा।"

वृक्ष के पीछे खड़ी राजकुमारी ने दोनों सांपों से भेद जान लिए और उसने वैसा ही करके सांप से डसे अपने पति का इलाज करके उसे ठीक कर लिया. दूसरे सांप के बिल को खोदने से उसे सोने का पूरा भंडार मिल गया था । इस बड़े खजाने को पाकर उसने अपने पति को ठीक करके वह अपने देश को वापस आई और यहां पर खुशी-खुशी अपना जीवन व्यतीत करने लगी। राजा हार गया था, बेटी जीत गई थी। इसीलिए मैं कहता हूं कि आपसी भेद नहीं खोलने चाहिए। उस मंत्री की बात सुनकर उल्लू राजा ने यह फैसला किया कि इस कौवे को मारना नहीं चाहिए ।

इसे अपने साथ ले चलना उचित होगा। उनकी बात सुन कौवा मन ही मन खुश होकर बोला “वाह रे मन्त्रियो ! आपने तो अपने फैसले से राजा को मरवा डाला।" इसलिए कहा है जहां पूजा न करने योग्य लोगों की पूजा हो और पूजा योग्य लोगों की बेइज्जती, वहां अकाल, मरण, भय, तीनों बातें होती हैं। विद्वानों ने उन्हें मित्र रूपी शत्रु बताया है, जो लाभ की बात न कह कर इसके विपरीत राय देते हैं। देश, मुर्ख मंत्रियों को पाकर राजा ऐसे नष्ट होता है जैसे सूर्य निकलने पर अन्धेरा। इस तरह उस कौवे को उठाकर वे अपने किले पर ले गए। तब उस कौवे ने कहा “महाराज ! मुझे बचाकर आप क्या करेंगे, मुझे तो उन पापियों ने मार ही डाला है । अब तो मुझे जलती आग में डाल कर समाप्त कर दीजिए।"


“अरे भाई, तुम आग में क्यों जलना चाहते हो ? “महाराज ! मुझे उस पापी राजा ने मारा है । अब मैं मरकर उल्लू वंश में जन्म लेकर उससे बदला लेना चाहता हूं।" उल्ल राजा बोला, “अरे तुम बड़े चालाक हो, तुम उल्लू वंश में पैदा होकर भी कोवों से प्यार करोगे, उनका ही भला सोचोगे। क्योंकि यह बात सनी जाती है कि सूर्य, बादल, हवा, पहाड़ों को छोड़कर चुहिया ने अपने जाति वालों से ही प्यार किया–वास्तव में जाति प्रेम छोड़ना कठिन है।मन्त्रियों ने कहा कि यह कैसे ? “लो सुनो कहानी चुहिया की