आकड़ खां ऊंट-पंचतंत्र की कहानियां

Apr 05,2021 05:50 AM posted by Admin

किसी गांव में राका नाम का एक बढ़ई रहता था। वह अपनी सुस्ती के कारण बहुत गरीब था । उसके सारे साथी अमीर हो गए थे जिन्हें देख-देखकर वह जलता रहा । दुःखी होकर एक दिन वह अपना गांव छोड़ने पर मजबूर हो गया और दूसरे किसी शहर की ओर चल दिया। रास्ते में उसने एक ऊंटनी देखी जो अपने साथियों से बिछुड़ गई थी। सन जैसे ही इस बच्चे वाली सुन्दर ऊंटनी को देखा तो बहुत खुश हुआ।

उसे पाकर वह फिर अपने घर लौट आया और घर आकर उसने ऊंटनी को बांध दिया और स्वयं उसके लिए खाने का चारा लेने के लिए चल पड़ा। बस इस प्रकार से वह बढ़ई काम पर लग गया। ऊंटनी की सेवा करता. उसके दूध से सारा परिवार आनन्द लेता। धीरे-धीरे ऊंटनी भी मोटी होती गई, उसका बच्चा भी बड़ा होकर ऊंट बनने लगा था। बढ़ई ने खुशी से उस ऊंट के गले में एक घंटा बांध दिया था। जब से इस घर में ऊंटनी आई थी तब से इस बढ़ई के दिन फिर गए थे। कुछ ही दिनों में जब ऊंट का बच्चा ऊंट बन गया था तो बढ़ई बहुत खुश हो गया। अब तो उसे बहुत लाभ होगा।

उसने अपनी पत्नी से कहा कि क्यों न मैं वन में जाकर ऊंट के बच्चे ले आऊं फिर उन्हें बड़े करके हम बेचेंगे। इससे हम बहुत धन कमा लेंगे। उसकी पत्नी भी खुश हो गई थी। उसे पता था अब वे भी अमीर बनने वाले हैं। अब बढ़ई अपनी पत्नी से कुछ धन ले और थोड़ा कर्जा बनिये से लेकर ऊंटनी के बच्चे खरीद लाया । इस तरह उसके पास बहुत से ऊंट, ऊंटनियां हो गए। उनकी सेवा के लिए उसने एक नौकर भी रख लिया था। इस तरह बढ़ई उनके व्यापार से अमीर होने लगा था। ऊंट परिवार रोज़ाना ही वन में जाकर हरे-हरे पत्ते खाकर अपना पेट भरता था । जो सबसे पहले ऊंट का बच्चा था वह अपने आपको सबसे बड़ा समझते हुए अकड़ में रहता और सबसे अलगजंगल में घूमता रहता ।

उन सब साथियों ने कहा कि भाई तम्हारे गले में घंटा बंधा है तम हमारे साथ ही रहा करो कहीं ऐसा न हो कि तम्हें कोई जंगली जानवर खा जाए ? लेकिन वह अपनी ही अकड़ में था। उसने किसी की बात न मानी। एक दिन जैसे ही यह ऊंटों का झुंड जंगली तालाब में से पानी पीकर निकला तो एक शेर ने अपना दांव मारा । जैसे ही सब ऊंट आगे निकल गए तो घंटे वाला ऊंट बड़े मज़े से अकड़ा हुआ उनके पीछे-पीछे चल रहा था। बस फिर क्या था, शेर ने उस अकेले ऊंट को देखते ही उसे झपट लिया। वह अकड में आया ऊंट मारा गया। तभी तो कहा गया है कि जो लोग बड़ों का बात नहीं मानते वे सदा धोखा खाते हैं।

यह सनकर मगरमच्छ बोला “भाई बन्दर, वास्तव में ही तुम बहुत ज्ञानी गर्व हो मैं मुर्ख हूँ । अब तो मैं तुमसे यही प्रार्थना करूंगा कि मुझे भी कोई ज्ञान दो जिससे मुझ अभागे को भी कोई रास्ता मिल सके।” यदि यह बात है तो जाओ, जाकर उस मगर से युद्ध करो । यदि तुम उस बार में मारे भी गए तो शहीद कहलाओगे, अगर जीत गए तो विजेता कहलाओगे। विद्वान कहते हैं “शत्रु को झुककर, बलवान को भेद नीति से, नीचे को कुछ देकर और बराबरी वाले को बल से काबू करो।"“यह कैसे ?" । “मैं तुम्हें बताता हूं मित्र, ऐसी ही एक कहानी।"