आ बैल मुझे मार-पंचतंत्र की कहानियां
Apr 06,2021 01:30 AM posted by Admin
दमनक ने जैसे ही बैल को देखा तो वह दिल-ही-दिल में खुश हो उठा। वह हमारी बात समझ गया कि बैल की हुंकार से ही शेर डर गया है। अब उसे शेर को खुश करने और अपनी खोई इज्जत प्राप्त करने का एक सुंदर अवसर मिला था। बैल से मिलकर वह वापस अपने मालिक के पास जाने लगा तो सोच रहा था कि विद्वानों ने ठीक ही कहा है-राजा मंत्रियों के कहने पर उस समय तक दयालु और सच्चाई के मार्ग पर नहीं चलता, जब तक वह स्वयं दुःख न उठा ले। दुःख और मुसीबत में फंसकर ही राजा को वास्तविक जीवन का पता चलता है। इसलिए मंत्री लोग दिल से चाहते हैं कि राजा भी कभी-न-कभी दुख झल।
यह सोचता हआ दमनक वापस चल दिया। शेर भी दूर से उस जात ५० रहा था। उसने पहले से ही अपने को आने वाले खतरे का मुकाबला की लिए तयार कर रखा था। दमनक को अकेले आते देखकर वह समझ डर वाली कोई बात नहीं, उसने दमनक से पूछा “मित्र, तुम उस भयंकर जानवर से मिल कर आए हो?" “जी हां।"क्या यह सच है।'' शेर ने आश्चर्य से पूछा-"क्या वह बहुत शक्तिशाली है। मुझ सब कुछ सच-सच बताओ कि वह कौन है। कहां से आया
यदि आप कहें तो मैं उस भयंकर जानवर को भी सेवा में लगा दमनक हंस कर बोला।पिंगलक ने एक ठंडी सांस भरते हुए कहा-"क्या वह हो सकता है?" "महाराज, बुद्धि से इस संसार में क्या नहीं हो सकता? किसी से सत्य कि बद्धि द्वारा जो काम बन सकता है वह हथियारों से नहीं बनता।“यदि ऐसा तुम कर दिखाओगे दमनक, तो मुझे बहुत खुशी होगी, वैसे में तम्हारी बातों से बहुत प्रभावशाली हुआ हूं। मैं आज से तुम्हें अपना मंत्री बनाता हं। आज से मेरे सारे काम तुम ही देखा करोगे।“धन्यवाद महाराज, मैं आपको वचन देता हूं कि आपकी सेवा सच्चे दिल कसे करूंगा। आप मुझे आर्शीवाद दें कि मैं उस भयंकर जानवर को आपके रास्ते से हटा सकू।“जाओ दमनक जाओ, मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं।"
दमनक अपने पुराने मालिक द्वारा अपने खोए हुए पद को पाकर अत्यंत खश हो गया था। वह वहां से सीधा उस बैल के पास पहुंचा। जाते ही उसने बैल से कहा"ओए दुष्ट बैल! इधर आ, मेरा मालिक पिंगलक तुझे बुला रहा है।' उसकी बात सुनते ही बैल ने आश्चर्य से पूछा, 'बंधु, पिंगलक कौन है?'“अरे, क्या तू पिंगलक को नहीं जानता? कमाल है तुझे इस जंगल में रहकर भी नहीं पता कि पिंगलक नाम का शेर इस जंगल का राजा है। आज तक तू उसे प्रणाम करने भी नहीं गया। यही कारण है कि महाराज ने तुझे अपने दरबार में हाजिर होने का हुक्म दिया है।"बैल उसके मुंह से शेर की बात सुनकर डर-सा गया, किन्तु फिर भी अपने को संभालता हुआ बोला-“देखो मित्र, यदि तुम मुझे अपने मालिक के पास ले जाना चाहते हो, तो मेरी रक्षा की सारी जिम्मेदारी तुम पर ही होगी। “हां...... हां, मित्र तुम ठीक ही कहते हो। मेरी नीति यही है, क्योंकि धरती सागर और पहाड़ का अंत पाया जा सकता है किन्तु राजा के दिल का भद आज तक किसी ने नहीं पाया। इसीलिए तुम उस समय तक यहीं पर ठहरा जब तक मैं अपने मालिक से सारी बात करके वापस न आ जाऊं।"टीक है मित्र, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा।" बैल ने हंसकर उत्तर दिया। पारदमनक शर के पास पहुंचा। शेर भी अपने मंत्री को आते देखकर खश था। उसने पूछा-'कहा मंत्री! क्या खबर लाए हो?"
"महाराज! वह एक बैल है, मगर कोई साधारण बैल नहीं भगवान शंकर का वाहन बैल है, स्वयं शंकर जी ने उसे इस जंगल में के लिए भेजा है।पिंगलक ने हैरानी से कहा- “अब मुझे ठीक-ठाक बात पता चला यह बैल इस जंगल में क्यों आया है। इसके पास देवताओं की शामिल यहां के जीव-जन्तु उसके सामने आजादी से नही घूम सकते.... । म तुमने उससे क्या कहा?“मैंने उसे कहा, यह जंगल चंडी के वाहन, मर राजा पिंगलक ना के अधिकार में है। इसीलिए आप हमारे मेहमान हैं। मेहमान की सेवा हमारा सर्वप्रथम धर्म है। इसलिए मैं अपने राजा की ओर से आपसे प्रार्थना हूं कि आप हमारे साथ रहें।“वह क्या बोला?''
“महाराज! वह मेरे साथ आने को तैयार हो गया। अब तो मैं केवळ आपकी आज्ञा की प्रतीक्षा कर रहा हूं। कहो तो उसे आपके पास ले आऊ “दमनक, तुमने तो हमारे दिल की बात कह दी मैं बहुत खुश हूं। जाओ तुम जल्दी से उसे मेरे पास ले आओ। मुझे तुम पर गर्व है। जैसे शक्तिशाली खम्बों पर भवन खड़ा किया जाता है, वैसे ही बुद्धिमान मंत्री के कंधों पर राज्य का बोझ डाला जाता है।"दमनक, अपने राजा के मुंह से अपनी प्रशंसा सुनकर बहुत खुश हुआ। और फिर वहां से वापस उस बैल की ओर चल दिया।
बैल शेर का निमंत्रण पाकर बहुत खुश हुआ और बोला-जैसे सर्दी में आग अमृत, वैसे अपने मित्र का दर्शन अमृत है। दूध का भोजन खीर अमृत और राज सम्मान भी ऐसे ही अमृत है। हम अपने मित्र सिंह के पास चलेंगे। दमनक ने बैल से कहा-“देखो मित्र! मैं तुम्हें वहां पर ले जा रहा हूँ। मैंने ही शेर से तुम्हारी मित्रता करवाई है, इसीलिए तुम्हें मुझे वह वचन देना होगा कि तुम सदा मेरे मित्र बने रहोगे। जो प्राणी गर्व के कारण उत्तम, मध्यम और अर्धम, इन तीनों प्रकार के मनप्यों का यथा योग्य सत्कार नहीं करता वह राजा से आदर पाकर भी दलित के समान दुप्ट हो जाता है। "यह कैसे भाई?'' बैल ने पूछा। “सुनी