वन कन्या-दादी माँ की कहानी

Apr 06,2021 09:38 AM posted by Admin

हिमालय पर्वत में एक घना वन था। उस वन में एक सुन्दर ताल या एक सुन्दर वन कन्या रहती थी जिसका नाम था-फ्यूंली। में एक सुन्दर ताल था। उस ताल में वन इतना घना था कि कोसों तक मनुष्य का नाम नहीं था। फ्यूला वहा न रही थी। केवल वन के पक्षी और जीव-जन्त उसके पास रहते थे। वे ही उसकनार बहन थे जो उसे बहुत प्यार करते थे। फ्यूली उन सबकी अपनी जैसी थी। जब फ्यंली गीत गाती. तो हरिना अ आपको भूल जाती थी। फूल फ्यूली को घेरकर खिल-खिलाते हँसते थे। हरी-हरा उसके पैरों के नीचे बिछ जाती थी। जब भोर होती तो पंछी चहचहा कर फ्यूल जगा देते थे। सबी उसे बहुत प्यार करते थे। फ्यूली हर समय प्रसन्न रहती थी। वह बहत सन्दर थी। उसका मुख चहा कर फ्यूंलो कोउसका मुख चाँद के

सामान था |उसके गाल गुलाब की तरह खिले थे। उसके बाल इतने काले और घने थे मानो काली घटा हो। उसके रूप को किसी मनुष्य ने नहीं देखा था। . वह स्थान इतना पवित्र था कि वहाँ कभी कोई पाप न हुआ था। न किसी में लोभथा शोक था, न क्रोध। सब ओर शान्ति ही शान्ति थी। की निडर होकर वनों में घूमती, वृक्षों के नये पत्तों को बिछाकर कुंजों में लियों की चहचहाट में अपना सुर मिलाती। वह फूलों की माला गले में और फलों के गजरे बालों में लगाती तथा बाहों में सजाती।

फिर नदियों की ध्वनि के साथ नाचा करती। वह वहाँ अकेली होते हुए भी अकेली नहीं थी वन के पश-पक्षी, पेड़-पौधे, कलियाँ और भंवरे उसके सगे-साथी थे। एक दिन फ्यूली पहाड़ी से गिरते झरने के किनारे एक बड़े पत्थर का सहारा लिए बनी थी। वह पानी में पैर डालकर एक हिरन के बच्चे को दुलार कर रही थी। उसकी आँखें जल की उठती तरंगों पर टिकी हुई थी कि तभी किसी के आने की आहट हुई। उसने पीछे मुड़कर देखा तो एक राजकुमार खड़ा था जो बहुत ही सुन्दर था। फ्यूली ने आज से पहले कभी किसी मनुष्य को नहीं देखा था। राजकुमार को देखकर वह शरमा गई। राजकुमार प्यासा था। उसका मन पानी पीने का था, परन्तु फ्यूली को देखकर वह पानी पीना ही भूल गया। फ्यूली उस स्थान से हट गई तब राजकुमार ने अंजलि बनाकर पानी पिया फ्यूली ने राजकुमार से पूछा- "शिकार करने आये हो।" राजकुमार ने कहा-"हाँ।"

फ्यूली ने कहा-"आप यहाँ से चले जाइये। यह मेरा आश्रम है। यहाँ सब पशुपक्षी मेरे भाई-बहन हैं। यहाँ कोई किसी को नहीं मारता। सभी एक-दूसरे को प्यार से गले लगाते हैं।" । राजकुमार मुस्कुराते हुए बोला-"मैं भी किसी को नी मारूँगा। मैं तो यहाँ खेलखेल में चला आया था। मेरे मन में शिकार करने की कोई इच्छा नहीं है। मैं घूमतेघूमते इतनी दूर भटक गया हूँ कि" राजकुमार चुप हो गया। फ्यूली ने एक बार फिर राजकुमार की आँखों की कोरों से पवा। वह सोच नहीं पा रही थी कि अब आगे क्या कहे ? वैसे राजकुमार उसे अछा लगा। वह राजकुमार से कहने लगी-"आप थके हए मालूम होते हैं, आराम कर लीजिए।"

राजकुमार एक पत्थर की शिला पर बैठ गया। हाने लगी। सूरज छिपने लगा. घोंसलों को लौटते हुए पक्षियों के कल कल सब्द गूंज उठा। पशु भी अपनी-अपनी खोह-कंदरा और झरमट में लौटने लगे।
कुछ ही देर में फ्यूली के सामने कंद-मल और जंगली फलों का ढेर लग गया।

रोज ही ऐसा होता था। वन के पशु-पक्षी फ्यूली के भाई-बहन उसके लिए फल-फूल लेकर आते थे। वह उन सबकी रानी जो थी।राजकुमार को यह सब देखकर बहुत अच्छा लगा-“वनदेवी तुम धन्य हो सुख है यहाँ। कितना अपनापन है। काश, मैं यहाँ रह पाता।"फ्यूली ने कहा-"आप राजकुमार हैं, आपको वनों से क्या वास्ता ? आपस तो महल हैं, बड़े-बड़े शहर हैं।"राजकुमार ने कहा-"जंगल में ही मंगल है। तुम भी यहां की रानी हो।" फ्यूली मुस्कुराने लगी।अंधेरा हो चुका था। उसने राजकुमार को बहुत से फल-फूल भेंट किये फिर वह अपनी गुफा में चली गई। राजकुमार वहीं पेड़ के नीचे लेट गया।सुबह हुई। चिड़िया चहचहाने लगी। राजकुमार जाग गया। उसे घर का ध्यान आया तो वह उदास हो गया क्योंकियहाँ से चाने का उसका जी नहीं कर रहा था।फ्यूंली राजकुमार के लिए कलेवा लेकर आई। तब राजकुमार ने फ्यूली से कहा"एक बात कहनी है। सुनोगी।"फ्यूली ने पूछा-"क्या ?"राजकुमार कुछ झिझका। फिर साहस करके बोला-"मेरे साथ चलोगी। मैं महल में तुम्हें राजरानी बनाकर पूजूंगा।"फ्यूली ने कहा-"नहीं, मैं रानी बनकर क्या करूँगी ?" राजकुमार बोला-"मैं तुम्हें प्यार करता हूँ और तुम्हारे बिना नहीं जी सकता।" फ्यूली ने कहा-"पर वहाँ यह वन, ये पेड़, ये फूल, ये नदियाँ और ये पक्षी नहीं होंगे।"राजकुमार ने कहा-"वहाँ सिसे भी अच्छी-अच्छी वस्तुएं हैं।

मेरे महल में तुम हर प्रकार से सुकी रहोगी। यहाँ वन में क्या रखा है ?"फ्यूंली ने कहा-"मनुष्य ने अपनी लिए एक बनावटी जीवन बना रखा है। उसे म सुख नहीं मानती।"राजकुमार कोई उत्तर न दे सका।पयंली ने सोचा- "इतनी सुन्दरता, इतना प्यार मुझे शहर में कहाँ मिलेगा। 48 अकेली हूँ, न मेरे मन में ईर्ष्या और द्वेष है। पर वहाँ, इतनी शांति कहाँ होगी ? फिर भी फ्यूली के मन में बैठा कोई कह रहा था कि फ्यूंली 'हाँ' कर फ्यूली ने 'हाँ' कर दी। उसने फूलों के कहने पहने, पश-पक्षियों और पेड़से विदा ली। चलते समय उसकी आँखों में आँस थे. जो मोतियों की तरह गिरपयंली को लेकर राजकुमार अपने राज्य में पहुँचा। राज्य में सब देखकर बहुत प्रसन्न हुए। फ्यूली अब रानी बन गई थी।

राजकुमार उसे बहुत प्यार करता था। वह उसका हर प्रकार से ध्यान रखता था। की तरह गिर रहे थे। उसे बहुत अधिक महल में किसी भी तरह की कमी न थी। उत्तम तथा भांति-भांति के डिया से बढिया वस्त्र, गहने, सेवा करने के लिए दासियाँ और दिल बहलाने नर्तकियाँ। सभी फ्यूली का बहुत सम्मान करते थे।तरह दिन बीतने लगे। सुबह का सूरज शाम को ढलता रहा। इधर कुछ दिन -पक्षी, पेड़-पौधे फ्यूली की याद में व्याकुल होते रहे, फिर अपने-आप कामो में लग गये। अचानक एक दिन फ्यूली को लगा, जैसे उसके जीवन की उमंग खो गई है। राजमहल के हीरे-मोतियों में पूलों जैसा भोलापन न था। अब राजमहल की दीवारों में फ्यूली की साँस घुटने लगी थी।फ्यली को लगता जैसे वन उसे पुकार रहा है। वन के पशु-पक्षी, फूल सभी उसे पकार रहे हैं, वन का निर्मल प्यार उसे पुकार रहा है। राजमहलों के ठाठ, लोभ, ईर्ष्या, देष से वह ऊब गई थी। उसके लिए इस जीवन में कोई रस न रह गया था।

अब फ्यूली उदास रहने लगी। वह एकान्त में अकेली बैठी कुछ न कुछ सोचा करती थी। राजकुमार ने उसे प्रसन्न रखने के हर संभव प्रयास किये। परन्तु फ्यूली का कम्हलाया मन हरा न हो सका। कुछ ही दिनों में वह बीमार हो गई और उसने बिस्तर पकड़ लिया।दिन-पर-दिन उसका चेहरा पीला पड़ने लगा। वह मुरझा गई। उसकी जीने की आशा कम रह गई।एक दिन फ्यूली ने राजकुमार से कहा-"मैं अब नहीं बचूंगी। मेरी एक अंतिम इच्छा है, पूरी करोगे।"राजकुमार ने कहा-"अवश्य।"फ्यूली ने कहा-"कभी अगर शिकार को जाओ तो मेरे वनवासी उन वनवासी भाई-बहन को मत मारना और जब मैं मर जाऊँ, तो मुझे पहाड़ की उस चोटी पर दफना देना जहाँ वे रहते हैं।"इतना कहते-कहते ही उसने अंतिम श्वास छोडी।

राजकुमार ने उसी पहाड़ की चोटी पर उसे दफना कर उसकी अंतिम इच्छा पूरी की।वन के पशु-पक्षियों ने फ्यूली के भाई-बहनों ने यह देखा तो वे बहुत दुखी हुए। हवा की सिसकी के साथ ही फल गिर पडे, कलियाँ मुरझा गई, बेलें कुम्हला गई। पंछी रो-रोकर आकाश को गंजाने लगे।ना बाद पहाड़ की चोटी पर, जहाँ फ्यूली को दफनाया था। वहाँ एक पौधा एक सुन्दर सा फूल खिला। लोग उसे फ्यूली कहने लगे। पहाड़ की साढ़ानुमा खेत होते हैं। उन खेतों की मेंड पर एक पीला सा फूल होता है उग गया। वही है फ्यूली।