स्वार्थी मित्र से बचो-दादी माँ की कहानी

Apr 07,2021 06:28 AM posted by Admin

एक बार एक चूहे और मेढ़क में दोस्ती हो गई। चूहे का एक दोस्त और था। भी चूहा था। उसने अपने मित्र को समझाया कि भाई दोस्ती अपने स्वभाव वाले साथ ही करनी चाहिए। मगर चूहा नहीं माना। एक दिन मेढ़क अपने मित्र चूहे से बोला-"भाई चूहे । यहाँ रहकर तो मन उकता गया। मैं सोचता हूँ क्यों न हम विदेश की सैर पर चलें।"तुमने तो मेरे मन की बात कह दी मित्र। मैं भी पिछले कुछ दिनों से यही सोच रहा था, मगर मेरा प्रिय मित्र चूहा राजी ही नहीं होता। चलो, अब हम दोनों चले।"इस प्रकार दोनों मित्रों ने विदेश जाने का कार्यक्रम बना लिया। चूहा कहीं से दौड़कर एक रस्सी ले आया और बोला-"मित्र! हम कहीं बिछड़ न जायें, उससे बचने के लिए क्यों न हम दोनों इस रस्सी को अपनी-अपनी पीठ पर बाँध लें, इसस हम बिछड़ने न पाएंगे।" मेंढक को चूहे की बात पसंत बांध लिया। चूहे ने दूसरा सिर विदेश यात्रा पर।को चहे की बात पसंद आई। उसने रस्सी का एक सिरा अपनी पीठ में चिहे ने दूसरा सिरा अपनी कमर में बांध लिया। इसके बाद दोनों चल दिए पड़ी। वे चलने लगे तो चूहे के पुराने ने उसे समझाया-"देखो भाई, तुम्हारा और का यात्रा पर जाना उचित नहीं। वह पानी का जीव है. तम धरती है।

" दे ने अपने मित्र की सलाह पर कोई ध्यान न दिया और चल दिया मेंढ़क के चलते-चलते दोनों कई दिन बाद जंगल से बाहर आ गए। अब रास्ते में एक नदी "भाई मेंढक। यह नदी कैसे पार होगी ? "भाई मेरे लिए तो कोई मुश्किल नहीं है। मैं तो तैर सकता हूँ।" "तैर तो मैं भी सकता हूँ-मगर गौता नहीं लगा सकता।"फिर क्या चिंता, आओ। मैं तो कई दिनों से पानी में तैरने को मरा जा रहा हूँ। बहत दिन हो गए पानी में तैरे हुए।" कहकर मेढ़क ने एक लम्बी छलांग लगाई और नदी में कूद गया-'छपाक।''उसकी रस्सी से बंधा चूहा भी उछलकर पानी में गिरा-'छपाक।' पानी में जाते ही मेंढक को मस्ती सूझी। वह पानी में नीचे की ओर उतरने लगा। "अरे-अरे मित्र! क्या करते हो ? पानी के ऊपर आओ, वरना मैं डूब जाऊँगा।" "बस अभी आता हूँ।" मेंढक कुछ ओर नीचे चला गया। उसे तो पानी में मजा आ रहा था।

चूहा हाथ-पैर मारकर बड़ी मुश्किल से अपनी नाक और मुँह पानी से बाहर निकाले हुए था। मेंढक और नीचे जाने लगा तो चूहा चिल्लाया-"अरे भाई मेंढ़क मान जाओ। तनिक तो ध्यान करो कि मैं तुम्हारा मित्र हूँ।इस तरह मेरे जीवन से मत खेलो।" । “भाई चूहे। पानी में तैरना तो मेरा स्वभाव है। पानी में जितना गहरे जाओ, उतना ही आनन्द आता है।"अब चूहे को अपने मित्र चूहे की शिक्षा याद आई कि वह ठीक कहता था। उसने समझ लिया कि यह मेंढ़क स्वार्थी है।चूहे और मेंढ़क में पानी में ही खींचतान चल रही थी जिससे पानी में हलचल मचा हुई थी। इस हलचल के कारण एक चील की नजर भी पानी पर पड़ गई। उसनेयह भोजन चूहे को देखा तो खुश हो गई और एक झपट्टा मारकर उसे अपने पंजों में दबाकर ले गई चूहे के साथ मेंढक बंधा था, वह भी चूहे के साथ-साथ चील का भोजन बन गया |