एक बुढ़िया के दो बेटे थे। कुछ दिन पहले उसका एक बेटा मर गया और दूसरा बेटा जो किसान था, बुढ़िया को अकेला छोड़ काम-धन्धे की तलाश में प्रदेश चला गया। बेचारी बुढ़िया घर में अकेली रह गई। अभी उसके बेटे को गए पाँच दिन ही हुए थे कि एक सिपाही बढिया के घर आया और दरवाजे पर खड़े होकर प्रार्थना की दादी मैं मुसाफिर आज की रात मुझे अपने घर में ठहरने की जगह दे दो "कौन हो भाई ? अंदर आ जाओ।" बुढ़िया बोली।इजाजत मिलने पर सिपाही अन्दर आ गया। तब बुढ़िया ने उससे पूछा-तुम कहाँ अच्छे से आ रहे हो? "दूसरी दुनिया से, मैं वहीं का रहने वाला हूँ।"तुम "दूसरी दुनिया से, बुढ़िया बुदबुदायी। अचानक उसकी आँखों में चमक उभर आई। वह बोली-मेरे बेटे को मरे अभी कुछ ही दिन हुए हैं। क्या तुमने उसे देखा है?" वह बोला-"हाँ-हाँ क्यों नहीं, हम दोनों एक ही कमरे में रह रहे थे।"बड़ा "सच!" बुढ़िया खुश होते हुए बोली-"वह वहाँ क्या करता है बेटे?"इतना "सारस पालता है।
"ओह, यह तो बहुत मुश्किल काम होगा ? "और क्या ? आप तो जानती ही है दादी कि सरसों की आदत। वे हमेशा घुटने कांटेदार झाड़ियों की तरफ ही भागते हैं इसलिए तुम्हारे बेटे के कपड़े, जूते फट गए हैं। बुरा हाल है उसका। उसे देखोगे तो तुम्हें रोना आ जायेगा।"वह सिपाही की बात सुनकर बुढ़िया को बहुत दुख हुआ। वह दुखी स्वर में बोली- के अ "भाई मेरे पास तो कुछ कपडे और थोडे रुपये पडे हैं। क्या तम यब सब मेरे बेटे के लिए ले जाओगे "ले जाऊँगा दादी।' सिपाही ने मुस्कुराते हुए कहा। सुबह वह बुढ़िया से कपड़े और रुपये लेकर चलता बना।कुछ दिन बाद बुढ़िया का बेटा परदेश से लौट आया। जब वह हाथ-मुँह धो चुका सादा तो बुढ़िया खाना परोसते हुए बोली-"बेटा! तुम्हारा भाई बड़े कष्ट में है।" बेटे ने चौंककर अपनी माँ की ओर देखकर पूछा-"यह तुमसे किसने कहा कर पूछा-“यह तुमसे किसने कहा माँ ?" लाड "बेटा! जब तुम यहाँ नहीं थे तब दूसरी दुनिया से एक आदमी आया था।
मुझे तुम्हारे स्वर्गीय ही रहता था। मैंने इस वर्गीय भाई का पूरा हाल सुनाया। दूसरी दुनिया में वह तुम्हारे भाई के साथ ने उसके साथ तुम्हारे भाई के लिए कुछ कपड़े और रुपये भेज दिए माँ की बात सुनते ही बेटे की कोई लौटकर आया है।बात सनते ही बेटे को गुस्सा आ गया और वह बोला-"मरने के बाद भला पीथा जो तुम्हें लूटकर ले गया है।"आया है। वह दूसरी दुनिया का नहीं, बल्कि इसी दुनिया का चालाक बदमाश के बहकावे में आ गई।" बढिया बुझे स्वर में बोली-"तू ठीक कहता है बेटे! मैं ममतावश उस म बिल्कल मूर्ख हो माँ! तुमने मुझे कंगाल कर दिया।" बेटा खाना छोडकर उठ गया। बोली-"गुस्सा मत कर बेटा, मैं तो जाहिल बुढ़िया हूँ, इस दनिया में तो अच्छे-अच्छे लोग बेवकूफ बन जाते हैं।
"बढिया ने बेटे को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन बेटा गुस्से में बोला"तुम जैसा मूर्ख कोई नहीं है।"दनिया में मूों की कमी नहीं है बेटे! एक ढूंढोगे तो हजार मिलेंगे।"वह अपना सफर का झोला उठाता हुआ बोला-"ठीक है, मैं जाता हूँ, अगर तुमसे बड़ा कोई मूर्ख मुझे मिला तो मैं लौट आऊंगा, वरना कभी लौटकर नहीं आऊँगा।" इतना कहकर बेटा घर से निकल गया। बुढ़िया बेचारी रोती-कलपती रही।चलते-चलते वह एक गांव में पहुँचा और वहाँ के जमींदार के पास जाकर रुक गया। वहाँ एक सुअरी अपने बच्चों के साथ घूम रही थी। किसान सुअरी के सामने घुटने टेककर बैठ गया और कुछ बुढ़बुढ़ाने लगा।जमींदारिनी खिड़की पर खड़ी उसकी हरकत देख रही थी, उसे बहुत हैरानी हुई। वह अपनी नौकरानी से बोली-"जरा इस आदमी से जाकर पूछ कि वह हमारी सुअरी के आगे क्यों बैठा है ?"नौकरानी बाहर आई और उसके पास आकर बोली-“अरे भाई! तुम हमारी सुअरी के सामने क्यों बैठे हो?"बाला-"तुझे दिखता नहीं। यह भी मेरी घरवाली की तरह चितकबरी है। मैं इसे फौरन पहचान गया हूँ। यह मेरी घरवाली की बहन है। मैं इसे अपने लड़के की मालवा ले जाना चाहता हूँ। कल शादी है।"नौकरानी हसकर बोली-"सुअरी और तुम्हारी साली, यह तो मेरी मालकिन की ॥ सुअरी है। तुम इसे अपने साथ नहीं ले जा सकते।"
"जरा अपनी मालकिन से तो पूछ लो बहन।" वह गिड़गिड़ाकर बोला "अगर यह मेरे साथ नहीं गई तो मेरी पत्नी बहुत नाराज हो जाएगी।" इतना ही उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। नौकरानी को उस पर दया आ गई।वह बोली-ठीक है, जरा ठहरो। मैं मालकिन से पूछकर बताती हूँ। नौकरी वापस लौट गई।नौकरानी ने जब अपनी मालकिन को सारा किस्सा सुनाया तो वह जोर-जोर से हंसने लगी। फिर बोली-बड़ा मूर्ख आदमी है। सुअरी को अपनी साली कह रहा है।"यह नहीं मालकिन वह अपने बेटे की शादी में सुअरी को ले जाने की जिद का रहा है।" मुझे तो उसका रोना देखकर दया आ गई।"ठीक है। उस मूर्ख की इच्छा जरूर पूरी होगी।" जमींदारनी ने कहा-"पर सुअरी अकेले कैसे जा सकती है। उससे कहो कि सुअरी के बच्चे भी साथ जायेंगे क्योंकि अगर बच्चों ने दूध न पिया तो वे मर जायेंगे।"जा मालकिन।" इतना कह नौकरानी जाने के लिए मुड़ी ही थी कि जमींदारिनी उसे रोकते हुए बोली-“और सुन ! उससे कहना कि हमारी गाड़ी ले जाए जिससे शादी के बाद सुअरी को उसके बच्चों के साथ पहुँचाने में उसे देर न लगे।" नौकरानी ने जाकर उसे सारी बात बता दी। किसान राजी हो गया।
वह सुअरी और बच्चों को गाड़ी में बिठाकर गाड़ी पर चढ़ बैठा और घर की तरफ चल दिया।कुछ देर बाद जब जमींदार घर लौटा तो पत्नी को जोर-जोर से हँसते देख जिज्ञासा वश बोला-"क्या बात है, कुछ हमें भी सुनाओ।"बड़े मजे की बात है। तुम यह होते तो तुम भी हंसते-हंसते पागल हो जाते।" तब जमींदारनी ने विस्तारपूर्वक सारी बात बताई।पत्नी की बात सुनकर जमींदार गुस्से से बोला-मूर्ख। उस बदमाश किसान ने तुझे उल्लू बनाया है। वह अब कभी लौटकर नहीं आएगा "हाय अब क्या होगा....। जमींदारनी विलाप करने लगी।" "वह किसान कहाँ का रहने वाला था ?" जमींदार ने पछा। "यह तो मैंने नहीं पूछा।"कफी कि जमींदार अपनी पत्नी की बेवकूफी पर बहुत गुस्सा हुआ। फिर उसने सोचा कि अभी तो वह राह में होगा। ऐसा विचार मन में आते ही वह तुरंत घोडे पर सवार हो उसी दिशा में चल दिया, जिधर किसान गया था। जमींदार का घोडा हवा की तेजी से दौड़ रहा था।
उधर, किसान ने पीछे से आती घोड़े के टापों की आवाज सुनी तो वह फौरन नप गया। उसने घोड़ा-गाड़ी, सुअर और बच्चों को जंगल में सरक्षित स्थान पर छिपा दिया और स्वयं जाकर रास्त के निकारे अपनी टोपी को जमीन में रखकर ताकत से पकड़कर बैठ गया। थोड़ी देर बाद जमींदार वहाँ आ पहुँचा और घोड़ा रोककर किसान से पूछातमने किसी आदमी को घोड़ा-गाड़ी पर सुअरी और उसके बच्चों को यहाँ से ले जाते देखा है ?" काफी देर पहले की बात है। किसान तपाक से बोला-"हाँ-हाँ । देखा तो है । वह उधर जंगल की तरफ गया है। "कोई बात नहीं, मैं उसे पकड़ कर ही दम लूंगा। मुझे उसे जरूर पकड़ना है।"उसे पकडना तो बहुत मुश्किल है। अब तो वह बहुत दूर निकल गया होगा और आप इस जंगल के रास्तों को अच्छी तरह नहीं जानते होंगे।" किसान बोला। "सनो. भाई। क्या तुम उस किसान को पकड़ने में मेरी मदद कर सकते हो?"नहीं। यह तो मैं नहीं कर सकता क्योंकि मेरी टोपी के नीचे एक बाज बैठा हुआ है।
अगर मैं यहाँ से हिला तो वह उड़ जाएगा।" वह पाय "तुम घबराओ नहीं। तुम्हारे पीछे मैं तुम्हारे बाज की रखवाली करूँगा।" किसान बोला-माफ करना भाई। इतना कीमती बाज किसी अजनबी के भोरसे छोड़कर नहीं जा सकता। अगर इतना कीमती बाज मुझसे खो गया तो मेरा मालिक मेरा जीना दूभर कर देगा।"क्या कीमत है इस बाज की ?" "पूरे दो सौ रूपये।" "ठीक है अगर मुझसे बाज खो गया तो मैं तुम्हें दो सौ रुपये दे दूंगा।" किसान कुटिलता से बोला-"कोरी बातों से काम नहीं चलेगा, बाद में आप मुकर गये तो क्या होगा?"अरे! तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है।"
इतना कहकर जमींदार ने जेब से दो सौ 2 रुपये निकाले और किसान को दे दिये और फिर बोला-"बाज की कीमत तुम्हें मिल गई। अब तो तुम्हें विश्वास हो गया होगा।" क्या नहीं मालिक ?" किसान बोला-"आप इस टोपी को कसकर पकड और तब तक पकडे रहिए जब तक मैं लौटकर न आऊँ।" जमींदार तुरंत टोपी पकडकर बैठ गया। तब किान उसके घोड़े पर सवार होकर जंगल की ओर चल दिया। जल्द ही वह जमींदार की आँखों से ओझल हो गया।
इधर, जमींदार को टोपी की रखवाली करते-करते घंटों बीत गए। सूरज किन लगा, लेकिन किसान का कहीं कोई पता नहीं था।जमींदार के मन में ख्याल आया कि देखू तो टोपी के नीचे बाज है भी या नहीं। अगर बाज हुआ तो वह जरूर लौटेगा, अगर न हुआ तो इंतजार करना बेकार है।जमींदार ने टोपी उठाकर देखा तो उसके नीचे कुछ भी नहीं था।"बदमाश! यह वहीं किसान था जिसने मेरी बीवी को मूर्ख बनाया और अब मुझे भी मूर्ख बनाकर चल दिया।" जमींदार अपनी मूर्खता पर झुंझलाता हुआ पैदल ही घर की ओर जल दिया।उधर, किसान अपने घर पहुँचकर अपनी माँ से बोला-"माँ तुम ठीक कहती थी। दुनिया में मूों की कमी नहीं है। तुमसे भी बड़े-बड़े मूखी पड़े हैं इस दुनिया में। देखो, घोड़ा-गाड़ी, दो सौ रुपये और सुअरी के साथ उसके बच्चे मुफ्त में ही कमा लाया हूँ। अब हम साथ ही रहेंगे।"माँ बेटे के मुंह से सारा किस्सा सुन दुखी स्वर में बोली-तूने अच्छा नहीं किया बेटे। किसी को ठगना अच्छी बात नहीं है।"वह सिपाही भी तो तुम्हें ठगकर गया था माँ।"अगर सभी गलत आदमी की तरह करने लगेंगे तो यह दुनिया ठगों और पापियों से भर जाएगी। कोई किसी पर विश्वास नहीं करेगा।" बुढ़िया ने बेटे को समझाया"जाओ और जमींदार का सारा सामान वापस कर आओ।"बेटे की आँखें खुल गई। वह घोड़ा-गाड़ी, दो सौ रुपये, सुअरी तथा उसके बच्चों को लेकर जमींदार के घर की ओर चल दिया।इस तरह माँ ने अपने भटके हुए बेटे को सत्य की राह दिखाने में सफल हो गई।