शेखचिल्ली की कहानी | शेखचिल्ली नाम कमाया

Nov 17,2021 07:56 AM posted by Admin

एक गाँव में एक लड़का था। जिसका नाम शेखचिल्ली था। वह परम मूर्ख था। जिस डाल पर बैठता उसी डाल को काटता था। उस की माँ शेख जी की मूर्खता पर दुःखी रहती थी। हमेशा सोचती थी कि न जाने मेरे मरने के बाद इसका क्या हाल होगा। पत्नी भी दुःखी रहती थी। एक दिन उसकी माँ बोली-'बेटा' तुम अपनी नाक से सीधं में उत्तर दिशा की ओर चलते रहना और जो भी सहायता माँगे उसकी सहायता करना। शेखचिल्ली बोला-ठीक है माँ। उसकी पत्नी ने उसे पेड़ा बनाकर दिया और कुछ रुपये दे दिये। शेखचिल्ली उत्तर दिशा की ओर चलने लगे। रास्ते में सहायता करते
जाते थे

और लोग उसे विद्वान पहँचे । जहाँ डाक र तो उसने समझा कि खोला, उसमें नरम उसे विद्वान समझते थे। चलते-चलते शेख जी एक जंगल में बडाँडाक रहा करते थे। डाकू ने जब शेख जी के हाथों में थैला देखा पाया कि सोना-चाँदी होगा। उसने शेख से थैला छीन लिया और समें नरम-नरम और गरम-गरम पेड़ा था। उसने उसे आपस में बाँट 'कि वे उसे खाए की सब सो गए। शेख जी आगे बढ़े तब देखे कि सखा रहे हैं। शेख जी उनसे 10 रु. मांगा, उस आदमी को दया आ और उसने 10 रु.शेख जी को दे दिया। शेख जी सामने के होटल में पेट मारवाए और रुपये देकर होटल से निकले । जब निकले तो वह भल कुछ लोग किकिधर जाना है। मगर माँ के बताये नियमानुसार अपनी नाक के सीध जलने लगे। घंटों बाद वे जंगल पार हो गए। वह एक ऐसी जगह पर पहुँचे जडा मोने के भवन थे। लेकिन वहाँ कोई आदमी नहीं थे। शेख जी भवन के अन्दर जाने लगे कि कोई द्वार पे रोक लिया और बोला तुम अन्दर नहीं जा सकते हो।

मैं तुम्हें खाऊँगा। शेख जी बोले-अबे तूं कितना मूर्ख है मैं कोई बकरा थोड़े ही हूँ जो तुम मुझे खाओगे। । वह अदृश्य बोला-मैं पहरेदार हूँ इस भवन का अगर तुम मेरे हाथों से भोजन बनना नहीं चाहते तो तुम्हें मेरे साथ लड़ना होगा वो भी तलवार के साथ। शेख जी-अरे भई वैसे तो तुम दिखाई नहीं देते और मैं न तलवार चलाना जानता हूँ। अगर मैं भी तुम्हारी तरह अदृश्य रहता और तलवार बाजी होता तो अवश्य तुमसे लड़ता कि तभी चमत्कार हुआ शेख जी अदृश्य हो गए आर उस अदृश्य से लड़ने लगे। कुछ घंटों के बाद वह उसे अदृश्य को मार गिराया और अन्दर प्रवेश किए। शेख जी देखे कि कुर्सी पर एक दैत्य बैठा भार मस्ती से खा रहा है। शेख जी सोचे अगर में इसे तुरंत ही मार दूंगा तो जा रहगा। क्योंकि ये अपना अभी सुधबुध खोया हुआ है। शेख जी बिना उस राक्षस के दो टकडे कर दिये। कछ मिनट के बाद फिर चमत्कार "ख जा अन्दर की ओर धसने लगे। शेख जी जब देखा कि वह पाताल जा रहा है तब शेख जी बेहोश होकर गिर पडे।

जब शेख को होश बाकि वह एक जेल में बन्द है। शेख जी पहले जितना मर्ख थे। " । बुद्धिमान हो गए थे। शेख जी अपने आप से बोले-हे मुझ चूहा बना दो। तुरंत ही शेख जी चहा बन गए और जेल से नाहर आए और अपने वास्तविक रूप में आ गए। शेख जो जब लोक में जा रहा है तब शख आया तो देखा कि वह एक अब वे उतना ही बुद्धिमान परमात्मा तुम मुझे चूह निकल कर बाहर घर के अन्दर गए पाताल लोक के पहरेदार मिलकर शेख जी की काफी धलाई की और शेख जी बेहोश होकर वहीं पर गिर पड़े। जब उन्हें होश आया तो देखे कि एक बहुत विशाल आदमी उन्हें अपने हाथ पर उठाया है और जोरजोर से हँस रहे है। शेख जी से वह आदमी बोला-अगर तुम जिंदगी चाहते हो तो मैं तुम्हें सिर्फ तीन मिनट का समय दे रहा हूँ। उस तीन मिनट में सफल हए तो जिंदगी वर्ना मौतः। शेख जी अपने आप से बोले-हे विधाता, ये कैसी घड़ी आ गई है। मुझे इतना शक्ति दो कि मैं इस राक्षस को मार दूं और इसके मार का कोई असर मुझपे न हो। तभी चमत्कार हुआ शेख जी एक घूसा उस राक्षस के छाती पर मारे कि वह राक्षस तभी मर गया। शेख जी जब उस राक्षस को मारे तभी वे अपने को घर पे देखा। शेख जी कुछ समझ न पाए। शेख जी अब पहले की तरह नहीं थे। वे अब बुद्धिमान, धनवान, तलवारबाजी, निशानेबाजी और बलवान हो गए थे।