सन्तोष ही धन है-दादी माँ की कहानी

Apr 06,2021 09:07 AM posted by Admin

एक राज्य में दो मित्र रहते थे। एक ब्राह्मण दूसरा बनिया एक बार दोनों को एक साथ विपत्ति ने आ घेरा। ब्राह्मण की तो पत्नी का देहान्त हो गया और बनिये को व्यापार में इतना घाटा हुआ कि उसकी सब सम्पत्ति नष्ट हो गई।ब्राह्मण पत्नी वियोग में दुखी था और बनिया सम्पत्ति विनाश से। दोनों ने खूब प्रयत्न किया कि किसी प्रकार उनके नुकसान की पूर्ति हो सके। किन्तु न तो ब्राह्मण की शादी हो सकी और न बनिया का अर्थ लाभ हो सका।उस राज्य का राजा बड़ा ही दानवीर था। उसके द्वार से कभी भी कोई निराश होकर नहीं लौटता था। इसी कारण उस राजा की कीर्ति दूर-दूर तक फैली हुई थी।

अंत में दोनों ने रजा के पास जाने का निर्णय लिया ताकि वे अपनी-अपनी आवश्यकता की वस्तुएं मांग सकें।मार्ग में उन्हें मस्तमौला फकीर मिल गया। उसने उन दोनों से पूछा-अरे भाई! तम कहाँ जा रहे हो ?"हम लोग राजा से अपनी-अपनी आवश्यकता की वस्तुएं मांगने जा रहे हैं। राजा बड़े दानी हैं। तुम भी चलो, कुछ माँग लेना।" ब्राह्मण ने फकीर से कहा वह फ़कीर बड़ा ही संतोषी किस्म का व्यक्ति था। उसे कुछ भी नहीं चाहिश फिर भी वे उन दोनों के साथ हो लिया। तीनों राजा के पास पहँचे। राजा ने उनकार आने का कारम पूछा। तब बनिये ने कहा "महाराज! मेरा व्यापार बंद हो गया है। यह आप मुझे एक हज़ार स्वर्ण मुद्राएं दें दें तो मैं पुनः अपना व्यापार जमा लँ।" राजा ने ब्राह्मण से पूछा ब्राह्मण देव! आपको क्या कष्ट है ? वह बोला राजन ! मेरी सुन्दर पत्नी का देहांत हो गाय है। मुझे एक सुन्दरी देने की कृपा करें। ब्राह्मण ने कहा"ताकि सुख-दुःख में वह साथ दे सके।" फ़कर चुप रहा। राजा ने उससे पूछा-"तुम्हें क्या चाहिए ?"महाराज! इच्छाएं कभी पूरी नहीं हो सकती, अपने इस जीवन में यह मैंने अच्छी तरह देख लिया है। अंत में मैंने इच्छाएं पालनी ही छोड़ दी। इसलिए मुझे कुछ नहीं चाहिए।" फकीर ने कहा।राजा को फकीर का यह उत्तर उद्दण्डतापूर्ण लगा। उसे लगा मानो उस फकीर ने कुछ न माँगकर जैसे उसका अपमान किया हो। किन्तु उससे कुछ भी न कहा और बनिये को व्यापार के लिए एक हजार मुद्राएं और ब्राह्मण को एक सुन्दरी देकर विदा कर दिया।

तीनों के जाने के कुछ देर बाद राजा ने एख सैनिक को बुलाया और कहा "देखो अभी-अभी यहाँ से तीन आदमी गए हैं, एक के पास स्वर्ण मुद्राओं की थैली है। दूसरे के पास एक सुन्दरी, तीसरे आदमी के पास कुछनहीं है। पकड़ कर लाओ और उसका सिर काटकर हमारे पास ले आओ।"उधर वे लोग राजधानी से बाहर निकले ही थे कि बनिया थैली के बोझ से थक गया। उसने थैली फकीर को देदी और कुछ दूर तक ले चलने की प्रार्थना की। बनिये से उसे वह थैली दी ही थी कि तभी पीछे से वह सैनिक आ गया। उसने खाली हाथ देखकर बनिये को पकड़ लिया और उसका सिर, काटकर राजा के पास ले आया। बानए का कटा हुआ सिर देखकर राजा को बहुत दुख हुआ। उसने सैनिक से कहा "तुमने पहचानने में गलती की है, जाओ जिस आदमी के पास सुन्दरी है, उसे छोड़ कर दूसरे का सिर काटकर ले आओ।"लेनिक होनी होकर ही रहती है। फ़कीर, ब्राह्मण और सुन्दरी चले जा रहे थे कि अचानक ब्राह्मण को लघुशंका की हाजत हुई। वह झाड़ियों के किनारे लघुशंका के लिए रुक गया। वह सुन्दरी उस फकीर के साथ चलती रही।

इतने में वहाँ सैनिक आ गया। उसने ब्राह्मण को अकेला देख और उसका सिर काटकर राजा के पास ले गया। राजा ब्राह्मण का सिर देककर आश्चर्य में पड़ गया कि जो लोग माँगने आए थे, वह मारे गए। मगर जिसे कुछ नहीं चाहिए था, उसे स्वर्ण-मुद्राएं और सुन्दरी दोनों ही मिल गई। किसी ने सच ही कहा है-संतोषी व्यक्ति को बिना मांगे ही सबकुछ मिल जाता है।