सच्ची मित्रता-दादी माँ की कहानी
Apr 06,2021 03:31 AM posted by Admin
पुराने समय में आजकल की तरह विद्यालय नहीं होते थे। बालक वनों में, पर्वतों पर स्थित आश्रमों में जाकर गुरु से शिक्षा ग्रहण करते थे। श्री कृष्ण और सुदामा भी संदीपन गुरु के आश्रम में साथ-साथ पढ़ते थे।दोनों में गहरी मित्रता थी। जब उनकी शिक्षा समाप्त हुई तो वे दोनों अपने-अपने घर लौट गए।बड़े होने पर श्री कृष्ण द्वारिका के राजा बने और सुदामा भिक्षा मांगकर जीवन बिताते थे।
एक दिन सुदामा अपनी पत्नी से बाते कर रहे थे बातों ही बातों में उनके मुँह से निकल गया की वे श्री कृष्ण के साथ पढ़े व खेले है बस, इतना सुनने पर पत्नी ने हट पकड़ ली की आप श्री कृष्ण से मिलने
द्वारिका जाइये वह अपनी पड़ोसिन से चावल मांग कर लाई चावल गांठ में बांध कर उसने सुदामा को श्रीकृष्ण के पास द्वारिका भेज दिया |
द्वारिका में श्री कृष्ण के पता पूछते-पूछते सुदामा जी राजमहल के पहँचे। द्वारपाल ने उन्हें द्वार पर ही रोक दिया और उनका नाम गाँव पछा क्योंकि सुदामा जी फटे हाल थे, न सिर पर पगड़ी थी और न ही पैर द्वारपाल दरबार में गया और महाराज को प्रणाम करके बोला "मदार निर्धन ब्राह्मण आपसे मिलने की इच्छा कर रहा है। वह अपना नाम सदामा बताकर सुदामा का नाम सुनते ही श्री कृष्ण नंगे पांव दौड़ कर द्वार पर आए और बड़े आदर के साथ उन्हें महल में लिवा लाए।जब सभी कर्मचारियों, रानियों व अन्य सभी ने यह देखा तो वे आश्चर्य में पट गए। वे सोचने लगे कि यह ब्राह्मण कौन है जिसकी सेवा स्वयं श्री कृष्ण कर रहे हैं। श्री कृष्ण ने उन्हें सिंहासन पर बिठाया और स्वयं अपने हाथों से सुदामा के पैर धोए और कांटे निकाले। श्री कृष्ण जी की आँखों से आँसू बह रहे थे। कुछ दिन सुदामा जी ने द्वारिका में बहुत ठाट-बाट से बिताए। एक दिन श्री कृष्ण ने वह पोटली देखी जिसमें उनकी पत्नी ने चावल बांधे थे।
श्री कृष्ण ने वह पोटली खोलकर दो मुट्ठी चावल खा लिये। रानियों ने जब देखा तो उन्होंने श्री कृष्ण से पोटली छीन ली और उसके चावल आपस में बांटकर खा लिये। श्री कृष्ण सुदामा को विदा करने द्वार तक आए। दोनों मित्रों की आँखों में आँसू थे। सुदामा अपने घर वापस लौट आए। उनके गाँव में सब कछ बदला हुआ था। उनको झोपड़ी की जगह एक सुन्दर महल था और गाँव की झोंपड़ियां अब आलाशान मकान में बदल गये थे। सुदामा अब एक राज्य के स्वामी बन गए थे। नौकर-चाकर उनकी सेवा करत यह सब श्री कृष्ण की मित्रता का ही परिणाम था।