सच्ची जीत-दादी माँ की कहानी
Apr 09,2021 01:44 AM posted by Admin
एक गाँव में एक किसान रहता था, उसका नाम था शेर सिंह । वह शेर जैसा कर और अभिमानी था। वह छोटी-सी बात पर बिगड़कर लड़ाई कर लेता था। जन में किसानों से सीधी मुँह बात नहीं करता था। न तो वह किसी के जाता था और न ही रास्ते में किसी को प्रणाम करता था। गाँव के लोग भी उसे अहंकारी समझकर उससे नहीं बोलते थे। । उसी गाँव में एक दयाराम नामक किसान आकर बस गया। वह बहुत ही सीधा व भला आदमी था। सबसे नम्रता से बोलता था और सबकी कुछ-न-कुछ सहायता किया करता था। सभी किसान उसका आदर करते थे और उससे अपने कामों में सलाह लिया करते थे।गाँव के किसानों ने दयाराम से कहा – “तुम कभी शेर सिंह के घर मत जाना। वह बड़ा झगड़ालू है।
दयाराम ने हँसकर कहा - "शेर सिंह अगर मुझसे झगड़ा करेगा तो मैं उसे मार दूंगा।"दूसरे किसान भी हँस पड़े। वह जानते थे कि दयाराम बहुत दयालु है। वह किसी को मारना तो दूर किसी को गाली तक नहीं दे सकता।लेकिन यह बात किसी ने शेर सिंह से कर दी। शेर सिंह क्रोध से लाल हो गया। वह उसी दिन से पाराम से झगड़ा करने की चेष्टा करने लगा। उसने दयाराम के खेत पर अपने छाड़ दिए। बैल बहुत सा चारा चर गए। किन्तु दयाराम ने कुछ न कहा। उसने का चुपचाप पानी की नाली खोल दी। पर दयाराम ने आकर पानी की बाध दी। इसी प्रकार शेर सिंह दयाराम की बराबर हानी करता रहा, किन्तु एक बार भी उसे झगडने का अवसर नहीं दिया। दयाराम के यहाँ उसके संबंधी ने मीठे खरबजे भेजे। दयाराम ने सभी घर एक-एक खरबुजा भेज दिया। लेकिन शेर सिंह ने यह कहकर नाली बांध दी। इसी प्रकार श दयाराम ने एक बार भा एक दिन दयाराम के यहा कहकर
खरबूजा लोटा दिया कि मैं भिखारी नहीं हूँ। मैं दूसरों का दान नहीं लेता। बरसात आयी। शेर सिंह एक गाड़ी अनाज भरकर दूसरे गाँव से आ रहा था। रास्ते में नाले के कीचड में उसकी गाडी फँस गई। शेर सिंह के बैल दुबले थे। वे गाड़ी को खींचकर कीचड से निकाल न सके। जब गाँव में इस बात का पता चला ता लोग बोले - "शेर सिंह बडा दष्ट है उसे रात भर नाले में पड़ रहना । लाकन दयाराम ने अपने बलवान बैल पकडे और नाले की और चल दिया। लागा न उस रोका और कहा - "दयाराम शेर सिंह ने तुम्हारी बहुत हानि की है। तुम तो कहते चाक मुझस लड़ेगा तो मार ही डालँगा। फिर तम उसकी मदद करने क्यों जाते हो?" दयाराम बोला – “मैं सचमुच आज उसे मार ही डालूँगा। तुम लोग सवेरे उसे देखना।"
जब शेर सिंह ने दयाराम को आते देखा तो गर्व से बोला - "तुम अपने बैल लेकर लौट जाओ, मुझे किसी की सहायता नहीं चाहिए।" दयाराम ने कहा - "तुम्हारे मन में आए तो गाली दो, मन में आये तो मुझे मारो इस समय तुम संकट में हो। तुम्हारी गाडी फँसी है और रात होने वाली है। मैं तुम्हारी बात इस समय नहीं सुनूँगा।" दयाराम ने शेरसिंह के बैलों को खोलकर अपने बैल गाड़ी में जोत दिए। उसके बलवान बैलों ने गाड़ी को खींचकर नाले से बाहर कर दिया। शेर सिंह गाडी लेकर घर आ गया। उसका दृष्ट स्वभाव उसी दिन से बदल गया। वह कहता था - "दयाराम ने अपने उपकार के द्वारा मुझे मार ही दिया। अब मैं वह अहंकारी शेर सिंह कहां रहा।" अब वह सबसे नम्रतापूर्वक बोलता और प्रेम का व्यवहार करने लगा बुराई को भलाई से जीतना ही सच्ची जीत है। दयाराम ने सच्ची जीत हासिल की।