सब पूंछ कटे हों-दादी माँ की कहानी

Apr 07,2021 06:18 AM posted by Admin

एक सियार जंगल में भोजन की तलाश में भटक रहा था कि एक शिकारी द्वारा लगाए गए फंदे में फंस गया। सियार ने बड़ी कोशिश की कि किसी प्रकार फंदे से छूट जाए, मगर छूट न सका। सुबह से शाम हो गई। शाम होने पर शिकारी वहां आया और किसी उपयोगी जानवर को फंदे में न फंसे देखर वह निराश हो गया। उधर सियार का दम सूख गया। उसने समझ लिया कि अब उसके पाणी बचेंगे, मगर वह भी बड़ा धूर्त। अपने धूर्त स्वभाव के कारण वह कई बार मत्य कर दोखा दे चुका था। अतः इस बार भी उसने अपनी बुद्धि दौड़ाई और रोते-रोते शिकारी से बोला-"शिकारी जी। मैं ठहरा एक तुच्छ जीव, मैं आपके भला किस काम आऊंगा। मुझे मारकर भी आपको कुछ न मिलेगा बल्कि एक हत्या का पाप और आपके सिर लग जाएगा। हां, अगर आपने मुझे क्षमा कर दिया तो आपको पुन्य प्राप्त होगा। शिकारी ने सोचा, बात तो यह ठीक ही कह रहा है, मगर इसे यूं ही छोड़ना भी ठीक न होगा। इसे कुछ तो दण्ड देना ही होगा। ऐसा सोचकर शिकारी ने निशानी के तौर पर उसकी पूंछ काटकर अपने पास रख ली और सियार को छोड़ दिया। पूंछ कटते ही सियार वहां से नौ दो ग्यारह हो गया।कुछ दूर जाकर उसने सोचा कि 'पूंछ कटने के कारण मेरी सारी सुन्दरता नष्ट हो गई। अब मैं अपने बिरादरी भाइयों को क्या मँह दिखाऊँगा ? अब तो दल की सियारनियां भी मुझे देखकर मेरा मजाक उड़ाएंगी। इससे तो अच्छा था कि वह शिकारी मेरे प्राण ही ले लेता।'

यह सोच-सोचकर सियार बहत दु:खी हआ। मगर जैसा कि पहले कहा गया है कि वह महाधूर्त था, अत: उसकी धर्त बद्धि विचार करने लगी कि ऐसी क्या चाल चली जाए जिससे ये कटी पूँछ ही मेरी इज्जत का कारण बन जाए। सारी बिरादरा मार अगर अपनी-अपबनी कटवालें तो मैं पंछ कटा कहलाने से बच जाऊँगा। जब बिरादरी भाई मेरे जैसे हो जाएंगे तो फिर कैसी बेइज्जती और कैसी शर्म? बस, यह सोचकर पूंछकटा सियार अपनी बस्ती के निकट जाकर जोर'हुआ-हुआ' करने लगा। उसको 'हुआ-हुआ' सुनकर सभी सियार वहाँ आकर एकत्रित हो गए। सियार ने पूछा-"क्या बात है, बे समय क्यों चिल्ला रहे हो?"

चचा बात ही ऐसी है।" सियार चिल्ला कर बोला-"जरा मेरी पूछ तो देखो और बताओ कि कहाँ गई मेरी पूछ ?" सभी चुप। क्या जवाब देते ? सियार पुनः बोला-"अरे मैंने उसे कटवाकर फेंक दिया।" "मगर क्यों ?" क्योंकि आज ही मैंने एक शहरी सियार को देखा। उसने बताया कि शहरों में यही नया फैशन चल रहा है। उसने यह भी बताया कि यह व्यर्थ का बोझ होते हैं सियार । इससे हमारी सुन्दरता भी प्रभावित होती है। मनुष्यों को देखिए, क्या उनके ॐ होती है ? अरे आजकल के मर्द तो मूंछ का भार ढोना नहीं चाहते, फिर हम सियार पंछ का भार क्यों ढोएं। हमें भी फैशन के साथ चलना चाहिए। भाईयो। मेरी मानो और इस बेवजह के भार को अपनी शरीर से अलग करके मेरी तरह सुन्दर बनो।" पूँछ कटे सियार का यह उपदेश सुनकर एक बूढ़ा सियार जोर से हंसा और बोला-"भाइयो! इस पूंछ कटे की बातों में न आना। यह बड़ा मक्कार है और इसका आख्यान भी झूठा है। मुझे लगता है कि किसी ने इसे अपमानित करने के लिए इसकी पूंछ काट दी होगी, इसी कारण इसे शर्म महसूस हो रहगी होगी और साथ ही डर भी सता रहा होगा। कि अब सब उसे पूंछ कटा कहकर चिढ़ाएंगे, इसलिए यह चाहता है कि हम सब भी अपनी-अपनी पूंछ कटा कर इसके जैसे बन जाएं। भला काना कब चाहेगा कि किसी की दो आँखें हों, वह तो यही चाहेगा कि सभी काने हो जाएं ताकि दूसरे इसे काना-काना कहकर न चिढ़ाएं।"ये हमें बरगालने आया है, मारो इसे।"किसी सियार ने यह कहा ही था कि पूंछ कटे सियार ने वहां से भागने में अपनी मलाई समझी। पिटाई होने के डर से वह वहां से नौ दो ग्यारह हो गया।