मूर्ख राजा-दादी माँ की कहानी
Apr 07,2021 06:56 AM posted by Admin
बहुत पुरानी बात है। एक राजा के घर बड़ी मनौतियों के बाद एक बेटी जन्मी। बेटी बहुत सुन्दर और प्यारी थी। धीरे-धीरे लड़की बड़ी होने लगी और लड़की पाँच साल की हो गई। पर राजा बेचैन हो और सोचने लगा-"यों एक-एक काल गजरेंगे मेरी बेटी कब बड़ी होगी, सारी कलायें कब सीखेगी, कब उसका विवाह करूंगा और कब गंगा नहाऊँगा। यह सब जितना जल्दी हो जाये उतना ही अच्छा रहेगा।"राजा इन्हीं बातों के कारण चिंतित रहने लगा। अतः एक दिन उसने अपने सभी बडे नामी वैद्य-हकीमों को बुलाया और अपनी चिन्ता के विषय में बताया-"आप सभी नामी वैद्य हकीम है। मेरी बेटी पाँच साल की हो गयीहै। आप लोग इसके लिए कोई ऐसी दवा बनाएं जिससे वह कम से कम पन्द्रह साल की हो जाए।"राजा का हुक्म सुनकर सारे वैद्य-हकीम चौंक गये कि राजा की कैसी माँग है ? उम्र तो साल गुजरने पर ही बढ़ेगी। राजा की बेटी को तुरंत ही पन्द्रह साल की कैसे बनाया जा सकता है ? वे सब जानते थे कि राजा को समझाना बेकार है। राजा ने जो हुक्म दे दिया तो उसे पूरा ही करना होगा। इसलिए सभी चुप रहें। उन सभी वैद्यों में एक मुखिया था। वह बहुत ही चतुर था। वह कुछ देर सोचकर बोला-"महाराज एक दवा है जो पुराने ग्रन्थों में बताई गई है, किन्तु महाराज उस दवाई को बनाने के लिए हिमालय से जड़ी बूटियाँ लानी होंगी जो कि बड़ी खोजबीन करने पर ही प्राप्त होती यह सुनकर राजा खुश हो गया और बोला-"जल्दी जाइए। वैद्यराज, तुरंत ही निकल जाइये। जितना धन चाहिए, राजकोष से ले लीजिए।" वैद्यराज कुछ देर गम्भीर रहने के बाद बोला-"महाराज! इस खास दवा को देने का एक नियम है जिसे दवा दी जाए उसे बिल्कुल अकेले रखा जाता है। जब तक मैं दवा लेकर न लौटं तब तक आप अपनी बेटी को नहीं देख पायेंगे। अगर आपने अधीर हाकर मेरे आने से पहले बेटी को देख लिया तो सारी मेहनत बेकार हो जायेगी। आप सच-समझकर ही हुक्म दीजिए।" राजा ने तुरंत शर्त मान ली। राजा की बेटी को एक सन्दर अकेले महल में रख दिया गया। जहाँ उसे कोई न देख सके उसकी देख-रेख के लिए दो वैद्य नियुक्त किये गये। वैद्य मुखिया अपने साथ एक -दूसरे वैद्य को लेकर राज्य तोड हिमालय यात्रा को कहकर चला गया।
इसी तरह एक के बाद एक साल बीतने लगा। राजा बीच-बीच में उतावला होता। कई बार रानी को लेकर भवन तक पहुँच जाता पर पहरे पर तैनात वैद्य उसे सात बुझाकर उसे वापस भेज देता। इसी प्रकार दस साल बीत गये। राजा की बेटी पन्द्रह पार कर सोलहवें साल लग गई थी। अब वैद्यराज अपने साथी के साथ कुछ जड़ी-बूटियाँ लेकर लौटे। राजा के सामने सब जडी-बूटियाँ रखीं। फिर दिखावा करते हुए बोला-"महाराज, आपके धीरज की परीक्षा आज पूरी हुई। ईश्वर के आशीर्वाद से सिद्ध वैद्यों की बतायी दवा ला पाये। हम कल ब्रह्म-मुर्हत में आपकी बेटी को देंगे। फिर उसे आपके सामने लायेंगे।"राजा की बेटी इस बीच एक नन्हीं चुलबुली बच्ची से जवान हो चुकी थी। दूसरे दिन सुबह उसे कुछ पत्तियाँ पीसकर पिलाई और सारे वैद्य उसे लेकर दरबार में उपस्थित हो गये। दस साल बाद राजा ने जब अपनी बेटी को देखा तो वह हैरान रह गया। क्योंकि उसकी बेटी अब जवान हो गई थी। उसने वैद्य का धन्यवाद किया और ढेर सारा ईनाम देकर उन्हें विदा किया।