झूठ बोलने का धंधा-दादी माँ की कहानी

Apr 07,2021 06:09 AM posted by Admin

किसी समय की बात है कि एक गाँव के दो आदमी काम की खोज में एक में पहुँचे। काम ढूंढते-ढूंढते वह नगर में यहाँ-वहाँ घूम रहे थे। घूमते-घूमते वे दोनों राजा के पास पहुंच गए। राजा ने उनसे पूछा- "तुम क्या चाहते हो?" वे बोले-हम काम की तालाश में आये हैं और काम करना चाहते हैं। राजा ने पूछा-"तुम क्या जानते हो?" पहला आदमी बोला-"महाराज! मैं झूठ बोलने का काम जानता हूँ।" दूसरे ने कहा-"मैं झूठ बातों को सच करना जानता हूँ।" राजा ने अपने-अपने काम दिखाने के लिए दोनों से कहा। पहला आदमी बोला-"एक जंगल के मार्ग से चार सौ ऊँट चले जा रहे थे कि पानी बरसा और आग लग गई। आग में जलकर सारे ऊँट मर गए।"यह सुनते ही सभी दरबारी दंग रह गये कि पानी बरसने से आग कैसे लग सकती है, परन्तु यह झूठ बात थी इसलिए किसी ने कुछ नहीं कहा।। दूसरे ने कहा-"जी महाराज! मेरे साती की बात बिल्कल सच है।" "यह कैसे ?" महाराज ने पूछा। बात यह थी कि इन चार सौ ऊँटों पर कोई व्यापारी अनबझा चना लिये जा रहा था जो कि पानी पड़ते ही गीला होकर गर्म हो गया। ऊँटों की पीठ पर कूबड़ हान मर गए। कारण चूने के थैले उतारे नहीं जा सके परिणाम स्वरूप ऊँट झुलस गए और अन्त में

पहले साथी ने कहाबाहर लगे एक पीपल की चोरी दूसरा साथी बोला-" दीवार पर अन्दर की ओर ने कहा- हुजूर! एक बार ऐसा हुआ कि किसी बकरी ने गाँव के पल की चोटी के पत्तों को जमीन पर खड़ी होकर चर रही थी।" बोला-"हाँ, हाँ महाराज! यह बात सही है, पीपल का पेड़ कुएं की अदर की ओर लगा हुआ ता जिसकी ऊँचाई जमीन तक थी और कुएं पर नहीं गया था अतः उसके किनारे खड़ी होकर बकरी चर रही थी।" नसाथी ने फिर कहा-"एक आदमी हंसिये से चारा काट रहा था। अचानक ये से उसकी नाक कट गई और खून बहने लगा।" सासनते ही दसरे साथी ने कहा-"हाँ-हाँ सच है, एक काली मिट्टी वाले खेत में सात में एक गहरी नाली बन गई थी जिसके अन्दर से वह आदमी नाले के किनारे मोहए चारे को काट रहा था। चारे वाली उस भूमि की ऊँचाई उस व्यक्ति की ऊँचाई से भी कुछ अधिक थी।"

पहले साथी ने कहना आरम्भ किया-"किसी समय की बात है बिल्ली का एक बच्चा म्याऊँ-म्याऊँ करते हुए आकाश मार्ग से कही जा रहा था।" दसरे ने कहा-"सही बात है उस बिल्ली के बच्चे को एक बड़ा बाज लिए जा रहा पहले ने कहा-"मेरे पिता जी की दाढ़ी में एक गौरेया ने अपना घोंसला बनाया, अण्डे दिये, सेये और फोड़े। जब उसके बच्चे बड़े हो गये तो एक दिन वह उन्हें लेकर उड़ गई और मेरे पिता जी को इसकी खबर भी नहीं हुई।"खबर भी कैसे होती, दूसरे ने कहा। बड़ी हुई दाढ़ी की हजामत हुई तो उसे नाई ने कचरे के ढेर में फैंक दी। उस दाढ़ी से कोई घोंसला बनाता है कि तोप चलाता है हजामत बनवाने वाले का इससे क्या मतलब ?यह सब सुनकर दरबारी प्रसन्न हो गये। राजा भी बहुत प्रसन्न हुआ और कहने लगा-"मैं तुम्हें काम देने को तैयार हैं। क्या वेतन लोगे ?" . इस पर पहला साथी बोला-"मैं मुफ्त सेवा करता हूँ, कोई वेतन नहीं लेता, किन्तु म उसी काम को करता हूँ जहाँ मेरा साथी काम करता है।"इतना सुनते ही दूसरे साथी ने कहा-"हाँ-हाँ सचमुच में मेरा साथी कोई वेतन नहीं ता परन्तु काम वही करता है जहाँ मैं करता हूँ। मैं एक हजार रुपये मासिक वेतन परन्तु मैं दो हजार रुपये मासिक वेतन लेता हैं और अपे साथी को सांझेदारी में लेता हूँ परन्तु मैं दो हजार अपने साथ ही रखता हूँ।" यह सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ और उन दोनों साथियों को अपने यहाँ रख लिया।