घमंड का फल-दादी माँ की कहानी
Apr 08,2021 03:31 AM posted by Admin
एक प्राचीन नगर में अरोचन नाम की एक निर्धन लड़की अपने परिवार के साथ बढे कष्ट में दिन गजार दी थी। बचपन में वह एक साधारण लड़का परन्तु जैसे-जैसे वह बडी होने लगी. उसमें विलक्षण प्रतिभा के लक्षण नजर आने लगे।सिलाई-कढ़ाई तथा कपड़ा बुनने के कार्य में उसकी रुचि इतनी बढ़ गई कि जल्द हा उसने इस कला में दक्षता हासिल कर ली। उसके घर वाले भी उसकी प्रतिभा को खकर अत्यंत प्रसन्न थे। वह रंगीन धागों से कपड़ों पर ऐसे फूल काढ़ती, जो देखने में असली दिखाई पड़ते ते। उस बालिका का काम देखकर बड़े-बड़े कारीगर हैरान हो जाते। फलस्वरूप दूर-दूर तक उसके काम की तारीफ होने लगी। अमीर घरों की महिलाएं उसे मुँह-मांगे दाम देकर काम करवाती दुकान उसके हाथों से बने कपड़े को ऊँचे दाम पर खरीद लेते।धीरे-धीरे उसका काम इतना बढ़ गया कि अरोचन के परिवार के बुरे दिन समाप्त हो गये। अब उसका परिवार भी नगर के सम्पन्न और विशिष्ट परिवारों में गिना जाने लगा।उसके माता-पिता हर समय अपनी बेटी की कला का गुणगान करते जिसकारण उसे कुछघमंड हो गया। वह सबको अपने से नीचा समझने लगी। उसका स्वभाव पहले जैसा न रहा।
वह केवल उसे ही पसन्द करती जो उसकी प्रशंसा करता। अपने सामने किसी ओर की प्रशंसा सुनना उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था।एक दिन वह अपनी सहेलियों के सामने अपनी तारीफ के पल बोली"मैं अभी छोटी भले ही हूँ लेकिन मेरी कला का जवाब नहीं। किसमें इतना दम है जो मेरा मुकाबला करे। अरे, मेरी कला के आगे देवी भी टिक नहीं सकती।"अरोचन की जब यह बात कला और ज्ञान की देवी ने सुनी तो वह चौंक उठी। उसकी अहंकार से भरी बातें सुन देवी को क्रोध आ गया। अतः देवी एक बुढ़िया का रूप धारण कर, लाठी टेकती हुई अरोचन के घर आई। उस समय अरोचन अपनी सहेलियों से घिरी बैठी थी। वह अपनी बनाई तितलियाँ उन्हें दिखाकर गर्वीले स्वर में बोली-"जरा देखो तो, क्या ऐसी सुन्दर उड़ती हुई रंग-बिरंगे पंखों वाली तितलियाँ देवी बना सकेगी ?"तितलियाँ वास्तव में बहुत ही सुन्दर बनी थी। देवी ने अरोचन के सिर पर हाथ
पकड़ कर कहा बडी-बडी बातें करना तुम्हें शोभा नहीं देता। नश्वर प्राणियों को अगर देवी देवताओं के साथ बराबरी नहीं करनी चाहिए। बुढ़िया बनी देवी बोली चलो । अपनी इस भूल के लिए देवी से क्षमा मांगो, वह तुम्हें अवश्य क्षमा कर देंगी । अरोचन घृणापूर्वक क्रोधित स्वर में बोली-"दर हट बदिया। म नहीं। यदि देवी मेंसाहस है तो आकर मुझसे मुकाबला कर ले।"इतना सनती ही अपनी लाठी फेंक देवी क्रोध से गरजी-"तो हो जाओ मकान के लिए तैयार, मैं आ गई हूँ।" इतना कहते ही बुढ़िया अपने वास्तविक रूप में प्रकट हो गई।झिलमिल करती सुनहरी पोशाक पहने और सिर पर किरणों का मुकुट लागए देवी को देख, वहाँ बैठी सभी लड़कियों ने देवी को प्रणाम किया, परन्तु मूर्ख अरोचन बिना अभिवादन किये वैसे ही तनी बैठी रही। बुढ़िया का असली रूप देखकर भी उसके व्यवहार में खोई फर्क न आया। वह अपने घमंड में चूर रही। वह तुरंत बोली"ठीक है।आओ मुकाबला करके देख लो। आज तुम्हें भी पता चल जाएगा कि अरोचन ही सर्वश्रेष्ठ है।" देवी ने वहाँ रखा कपड़ा बुनने का करघा संभाला और पलक झपकते ही सतरंगी किरणों जैसा कपड़ा बुन डाला। उस पर अनेक देवी-देवताओं के चित्र बने हुए थे।
उधर अरोचन भी दूसरे करघे पर कपड़ा बुनने लगी। उसके कपड़े पर एक सन्दर उपवन का दृश्य था। अरोचन की सखियाँ यह अनोखी प्रतियोगिता बड़े अचम्भे से देख रही थी।करघे से कपड़ा उतारकर जब अरोचन ने सामने फैलाया, तो देवी भी उसकी कला का लोहा मान गई। अरोचन देवी का उपहास उड़ाते हुए बोली-"अब बताओ श्रेष्ठ कौन है, मैं या तुम ?"देवी ने अरोचन को सचेत करते हुए कहा-"अपने मुँह से अपनी तारीफ करना मूर्खता के सिवा कुछ नहीं है। इस दुनिया की ऊँच-नीच से बेखबर तुम अभी नादान हो। तुम्हें इस तह का अहंकार नहीं करना चाहिए।"अरोचन अहंकार में चूर थी उसने देवी की एक न सुनी और तुरंत बोली-“यह सब बातें छोड़ो, देवी तुम, मेरी सखियों के सामने अपनी हार स्वीकार करो।" अरोचन की बात सन देवी को क्रोध आ गया। उसने अरोचन को श्राप दे दियामूर्ख लड़की। तूने मेरा अपमान किया है। मैं तुझे श्राप देती हूँ, आज के बाद तू लड़की नहीं रहेगी। लोग तुझसे घृणा करेंगे। तेरी प्रजाति के लोग भी तेरे किये इस अपराध का दंड भुगतेंगे।" इतना कह देवी अन्तर्धान हो गई।
अरोचन की सहेलियाँ को उस समय बड़ा आश्चर्य हुआ जब उन्होंने अचानक अरोचन के बालों को झड़कर गिरते देखा। देखते ही देखते अरोचन बिल्कुल गंजी हो गई और उसके शरीर ने पिचकर मकड़ी का घिनौना रूप धारण कर लिया।लड़कियाँ अरोचन का यह रूप देख डरकर भा गई। अब अरोचन के पास घमंड करने लायक कोई गुण नहीं था। वह कमरे के एक कोने की छत पर पहुँचकर अपने ही धागे से जा लटकी और अपने इर्द-गिर्द जाल बुनने लगी। अब उसे अपने घमंड की सजा मिल चुकी थी।