चतुर गीदड़-दादी माँ की कहानी

Apr 08,2021 02:40 AM posted by Admin

सिंह बढा हो चला ता। बुढ़ापे के कारण वह यहाँ-वहाँ घूमने-फिरने और शिकार ने में असमर्थ हो गया था। अब वह भूखों मरने लगा। वह क्या करता, कैसे अपना अब चालाकी से अपना काम निकालूं तो भारता? आखिर उसने सोचा-“बिना खाए-पीए कितने दिन जीवित रहँगा ? यदि इसके बाद सिंह अपनी गुफा में पड़ा रहा। उसने बाहर निकलना बंद कर दिया और सभी वन पशुओं के पास यह समाचार भिजवा दिया-"सिंह बुढ़ापे के कारण रोगी और द:खी है। अब चलने-फिरने के योग्य भी नहीं रहा है। इसलिए वन पशुओं को चाहिए कि वे गुपा में सिंह का समाचार लेने आया करें।"भला वन पशु अपने राजा की आज्ञा कैसे टालते ? वे एक-एक करके सिंह का कशल-समाचार पूछने के लिए उसकी गुफा में पहुँचने लगे और सिंह बडी सरलता से उनको वहाँ मारकर खा डालता। जब सिंह को इस प्रकार बिना परिश्रम किये भोजन मिलने लगा, तब वह कुछ ही दिनों में ही मोटा-तगड़ा और बलवान हो गया।

इस पर एक गीदड़ सन्देह में पड़ गया। वह सोचने लगा-"मालूम होता है कि सिंह किसी चालाकी से काम लेता है। वह तो अपनी गुफा में ही पड़ा रहता है, और जो भी पशु उससे मिलने पहुंचता है वह फिर कभी दिखाई नहीं दोत। यदि सिंह की इस चालाकी का भेद खोलदिया जाए तो कैसा रहेगा ?यह सोच गीदड़ सिंह की गुफा के सामने पहुँचा और बोला-"महाराज! कई दिन से आपको नहीं देखा। अब कैसी तबीयत है आपकी ?"उत्तर में सिंह ने कहा-"कौन, गीदड़ भाई! बहुत दिनों के बाद खबर लेने आए। वहाँ बाहर क्यों खड़े हो ? भीतर आ जाओ और थोड़ी देर मेरे पास बैठो। तुम लोगों को देख लेता हूँ, तो मेरी तबीयत प्रसन्न हो उठती है। अब तो मेरी हालत बहुत बुरी हो गई है। बस, योंही समझ लो कि आज मरे, कल दूसरा दिन।" पर अब तक सारी बात बुद्धिमान गीदड़ की समझ में आ गई थी। उसने खतरा बाप लिया था। वह मुस्कुराकर बोला-"महाराज! भगवान करे आपको जल्दी आराम जाए, परन्तु क्षमाकीजिए, मुझे यहीं बाहर रहने दीजिए। गुफा के द्वार पर बने हुए वन पशुओं के पद चिन्ह साफ-साफ बताते हैं कि जो पशु गुफा के भीतर गए हैं, वे कभी कर गुफा से बाहर नहीं आये। इसलिए वहाँ भीतर जाने को मेरा जी नहीं चाहता। सबस, चलता हूँ, मेरा प्रणाम स्वीकार कीजिए।"