सौ सयाने पर एक अक्ल-अकबर बीरबल की कहानी
Apr 09,2021 05:55 AM posted by Admin
एक एक बार, बीरबल की शहंशाह अकबर पर नज़र पड़ी तो उसने पाया कि वह कुछ असमंजस में बैठे हुए थे। इसलिए उसने पूछ ही लिया, "क्या बात है जहांपनाह? आप कुछ परेशान दिखाई दे रहे हैं?" -
"तम बिल्कुल ठीक कह रहे हो बीरबल।" अकबर ने कहा, "मुझे अभी एक कहावत याद आई है-जितने मुंह उतनी बातें। मैं सोच रहा था कि क्या लोग सचमुच इस कहावत के अनुसार व्यवहार करते हैं।" अकबर ने पूछा।
"जहांपनाह, लोग सदा कहावतों के अनुसार ही व्यवहार नहीं करते क्योंकि कहावतें अक्सर लोगों के औसत व्यवहार के अनुसार बनाई जाती हैं। यही कारण है कि ये हर व्यक्ति पर लागू नहीं होतीं। खैर, अब कहावतों की बात चली ही है तो मैं आपको एक और कहावत के विषय में बताता हं। एक कहावत है सौ सयाने पर अक्ल एक। और यह कहावत आपकी कहावत से पूर्णतः उलटी है।" बीरबल ने उत्तर दिया।
अकबर को इस नई कहावत को सुनकर बड़ी उत्सुकता हुई। उनका बीरबल को इतनी आसानी से छोड़ने का कोई इरादा नहीं था। इसलिए उन्होंने कहा, "केवल कहावत बताना ही काफी नहीं है। तुम्हें इस कहावत की सच्चाई भी सिद्ध करनी होगी।"
बीरबल समझ गया कि अकबर क्या चाहते हैं। लेकिन साथ ही वह यह भी जानता था कि कहावत को सिद्ध करने का अर्थ समय व्यर्थ गंवाना होगा। इसलिए उसने अकबर को मनाने की कोशिश की कि वह अपना विचार त्याग दें। "जहांपनाह, मैं आपको आश्वासन देता हूं कि सभी स्वार्थी व्यक्ति एक समान सोचते हैं। इस बात को सिद्ध करने की कोई आवश्यकता नहीं है। यह बात आपको कोई भी बता सकता है।"किंतु अकबर 'न' सुनने के लिए कतई तैयार नहीं थे। इसलिए बीरबल को कहावत की सच्चाई सिद्ध करने के लिए मानना ही पड़ा। अपना वायदा पूरा करने के लिए उसने सेवकों को आज्ञा दी कि वे शाही बाग में बन तालाब का पूरा पानी निकाल दें। इसके बाद उसने पूरे शहर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि शहंशाह की आज्ञानुसार सब नागरिकों को उसी रात दूध का एक-एक लोटा उस तालाब में डालना होगा। ___ अगली सुबह बीरबल को सेवकों से पता लगा कि शहर के लोग तालाब में दूध डालने सचमुच आए थे। इसलिए वह अकबर को लेकर तालाब पर यह देखने के लिए गया कि क्या तालाब सचमुच दूध से भरा था या नहीं। शहंशाह और बीरबल दोनों ही यह देखकर भौंचक्के रह गए कि तालाब केवल पानी से भरा था। वे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं कर पाए। अकबर क्रोधित होकर चिल्लाए, "मुझे विश्वास नहीं हो रहा है कि लोग मेरी आज्ञा की इस प्रकार अवहेलना भी कर सकते हैं। स्पष्ट है कि वे मेरा आदर नहीं करते और वे यह चाहते हैं कि मैं यह बात समझ भी लं। यह तो अति हो गई। मेरे विचार से इसका एक ही कारण हो सकता है। लोगों को हमारी घोषणा समझ नहीं नहीं आई या फिर घोषणा ठीक प्रकार से नहीं की गई।" - "जहांपनाह, आप जो भी कह रहे हैं वह सच नहीं है। सच्चाई यह है कि लोगों ने जान-बूझकर पानी डाला है। इस बात से 'सौ सयाने पर अक्ल एक' वाली कहावत पूरी तरह से चरितार्थ होती है।" बीरबल ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।"मुझे तुम्हारी बात पर कतई विश्वास नहीं बीरबल, सब लोग पानी डाल कर आखिर अपनी जान खतरे में क्यों डालेंगे? अवश्य कोई न कोई गलती हुई है।" अकबर ने स्पष्ट किया।
"मैं यह बात आपको पूरी तरह से सिद्ध करके दिखा दूंगा जहांपनाह,
आप मेरे साथ चल कर आज रात को कुछ लोगों से मिलने के लिए तैयार रहें। किंतु कृपा करके आप एक व्यापारी का भेष बनाकर ही मेरी प्रतीक्षा में बैठे।" बीरबल ने कहा।अपना योजनानुसार, उस रात बीरबल तथा अकबर कुछ समय तक शहर में यू ही इधर-उधर घूमते रहे। चलते-चलते जब वे एक सुनार की दुकान के सामने से गुज़रे तो वे दोनों उसके भीतर चले गए। वहां उपस्थित सुनार का आभवादन करके वे दोनों उसके सामने बैठ गए। उन्होंने यात्रियों के भेष में उसका विश्वास प्राप्त किया और गहने देखने लगे। गहने दखतदेखते वे दुकानदार से इधर-उधर की बातें भी करने लगे। बात करते-करते कुछ ही देर में बीरबल ने उससे पूछा, "मित्र, हमने आपके शहर में आकर एक अजीब बात सुनी है। क्या यह सच है कि शहंशाह ने हर नागरिक को आज्ञा दी थी कि वह जाकर शाही तालाब में दूध का एक लोटा डाले।""जी हां, आपने जो सुना है वह बिल्कुल सच है।" दुकानदार ने कहा।"यह तो दूध को व्यर्थ में ही गंवाने वाली बात हो गई। किंतु जब शहंशाह आज्ञा दे दें तो फिर मानना ही पड़ता है ठीक है न?" बीरबल ने धीरे से कहा।"शहंशाह के आज्ञा दे देने मात्र से क्या होता है? उनकी प्रजा होने के नाते, हम उनकी आज्ञा का पालन अवश्य करते हैं किंतु इसका यह अर्थ तो नहीं हुआ कि हम अपनी अक्ल का प्रयोग ही नहीं करेंगे।" दुकानदार ने बीरबल की बात काटते हुए कहा। "आप कहना क्या चाह रहे हैं?" बीरबल ने अपने चेहरे पर हैरानी के भाव दर्शाते हुए कहा।"मैं किसी को भी यह बताना तो नहीं चाहता था किंतु सच्चाई यही है कि मैं तालाब में गिराने के लिए दूध की बजाय पानी से भरा लोटा लेकर गया था, क्योंकि मैंने सोचा कि अधिकतर लोग तो उसमें दूध ही डालेंगे। ऐसे में किसी को क्या पता लगेगा कि मैंने उसमें पानी डाला था?" दुकानदार ने धीमी आवाज़ में अपनी बात स्पष्ट की।तब तक शहंशाह तथा बीरबल ने एक गहना खरीद लिया था। इसलिए उन्होंने दुकानदार से विदा ली और बाहर निकल आए। इसके बाद वे कई घरों में गए और हर घर के मालिक से यही सवाल पूछा। सभी व्यक्तियों ने उन्हें यही बताया कि उन्होंने तालाब में पानी डाला था। इसके लिए
उन्होंने वही कारण बताया, जो सुनार ने बताया था।जब वे आखिरी घर से बाहर निकले तो बीरबल ने शहंशाह से पूछा, "जहांपनाह, आप कहें तो हम कुछ और लोगों से मिल सकते हैं।" किंतु अकबर को तब तक बीरबल की बात पर पूरी तरह से विश्वास हो चुका था। इसलिए उन्होंने नकारने की मुद्रा में अपने हाथ उठाते हुए कहा, "नहीं, नहीं, हम अब तक काफी लोगों से मिल चुके हैं। मुझे अब और प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। अब मैं भी तुमसे सहमत हूं कि सभी स्वार्थी व्यक्ति एक समान सोचते हैं।"