बीरबल ने मेहमान पहचाना-अकबर बीरबल की कहानी

Apr 09,2021 05:34 AM posted by Admin

एक बार एक रईस ने बीरबल को भोजन के लिए आमंत्रित किया। बीरबल ने काफी इंकार किया पर रईस न माना। हार कर बीरबल ने उसका निमंत्रण स्वीकार कर लिया।बीरबल जब वहां पहुंचे तो उनके मेजबान ने बड़ी गर्मजोशी से उनका स्वागत किया। बीरबल को बड़े-बड़े भोजों और जमावड़ों से चिढ़ थी। वह बोल उठे, "मुझे अंदाज़ा नहीं था कि यहां इतने सारे मेहमान होंगे"अजी मेहमान नहीं, ये सब मेरे मातहत हैं।" मेजबान ने उत्तर दिया, "मेहमान तो आपके अतिरिक्त केवल एक और साहब हैं। देखें, आप उन्हें पहचान सकते हैं या नहीं।" वहा तीस-चालीस मेहमान जमा थे और मेजबान के स्वर से घमंड छलक रहा था। बीरबल मन ही मन कढ गए। लेकिन अपने मन के भाव छिपाना और शांत-संयम रहना उन्हें खूब आता था। उन्होंने जवाब दिया, "शायद पहचान लूं।

आप कुछ देर सबसे बातचीत कीजिए तब तक मैं उन्हें परखता हूं। हो सके तो एकाध लतीफा सुनाइए उन्हें।"उसके बाद जो चुटकुला उस व्यक्ति ने सुनाया उससे रद्दी लतीफा बीरबल ने अपनी ज़िन्दगी में नहीं सुना था। लेकिन वहां मौजूद तमाम लोग पेट पकड़-पकड़ कर ठहाके लगा रहे थे। "देखिए साहब! मैंने अपना काम कर दिया। अब आपको बूझना है कि मेहमान कौन है।" रईस ने कहा। बीरबल ने एक व्यक्ति की ओर इशारा कर दिया।"अरे, वाह! आपने उन्हें कैसे पहचाना?" मेजबान एकदम भौंचक्के रह गए व पूछ बैठे।"मालिक के हर लतीफे पर हंसना उसके मातहतों की आदत बन जाती है। इसलिए मैंने आपसे लतीफा सुनाने के लिए कहा था। आपका लतीफा सुन कर मुझे तो हंसी नहीं आई। तब मैंने चारों ओर देखा। सब लोग हंस-हंस कर दोहरे हो रहे थे-सिर्फ उन साहब को छोड़ कर! बस, मैं फौरन ताड़ गया कि ज़रूर वे ही मेहमान होंगे। आपके चुटकुले पर हंसना तो दूर, वे काफी रुआंसे नज़र आए।" बीरबल ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया।