भाग्य का खेल-दादी माँ की कहानी

Apr 08,2021 06:09 AM posted by Admin

एक गाँव में पारो नामक एक गरीब विधवा रहती थी। उसके एक पुत्र था। वह इतनी गरीब थी कि घर में चार बर्तन भी ढंग के नहीं थे। लड़का अभी छोटा था। ने बड़े प्यार से उसका नाम नसीब सिंह रखा था, मगर वह इतना बदनसीब कि उसके पैदा होने के कुछ समय बाद ही एक बीमारी से उसके पिता की मत्य हो गई। पारो घरों में चौका-बर्तन आदि करके उसे पाल रही थी। उसे पक्का विश्वास था कि नसीब सिंह बड़ा होकर उसके सारे संकट दूर कर देगा और उसका बुढापा चैन से गुजरेगा। इसी आस में रात-दिन मेहनत करके वह अपने बेटे को पाल रही थी।नसीब सिंह था तो छोटा, किन्तु समझदार बहुत था। संयम और धीरज की रहती थी। उसमें कमी न थी। किसी भी बात को गहराई तक जानने की उसमें प्रबल उत्सुकता एक दिन उसने अपनी माँ से पूछा- "माँ! हम इतने गरीब क्यों है ?"यह सब तो ईश्वर की मर्जी है बेटे।" दुखी स्वर में पारो ने कहा-सब नसीब की बात है। मगर नसीब सिंह यह उत्तर पाकर संतुष्ट नहीं हुआ। वह बोला-"ईश्वर की ऐसी मर्जी क्यों हैं ?"बेटा! यह तो ईश्वर ही जाने।"अगर ईश्वर ही जाने तो ठीक है, मैं ईश्वर से ही पूछंगा कि हम इतने गरीब क्यों है, बताओ माँ। बताओ कि ईश्वर कहाँ मिलेगा?पारो तो वैसे ही परेशान रहती थी। अत: उसकी बातों से उकताकर उसने कह दिया-"वह जंगलों में रहता है, लेकिन तुम वहां न जाना।"लेकिन नसीब सिंह दिल-ही-दिल में उसी क्षण, इरादा बना लिया कि वह ईश्वर को ढूंढेगा और उससे पूछेगा कि आखिर हम इतने गरीब क्यों है ?एक दिन वह जंगल की ओर चल दिया। जंगल धना और भयानक था। चलते-चलते नसीब सिंह बरी तरह थक गया था. मगर भगवान की परछाई भी दिखाई नहीं दी थी। अत: थक हारकर वह पत्थर की एक शिला पर बैठ गया भार सोचने लगा कि भगवान तो यहाँ कहीं नहीं है। आखिर गरीबी दूर कैसे हो? सयागवश मृत्यूलोक का भ्रमण करते-करते शिव पार्वती उधर ही आ निकले । उन्होंने बच्चे को वहाँ बैठे देखा तो उन्हें बड़ा अचरज हुआ कि यह अबोध बालक इस बीहड़ जंगल में बैठा क्या कर रहा है ?

भगवान शिव ने बालक से पछा-"तम कौन हो बालक और इस जंगल में बैठे क्या कर रहे हो?"मैं ईश्वर को ढूंढ रहा हूँ।" ."ईश्वर को।" पार्वती चौंकी और पछा-"मगर क्यों ? ईश्वर से तुम्हें क्या काम है?"मैं उनसे पूछना चाहता हूँ कि हम इतने गरीब क्यों है। दूसरों की तरह हम पर भी भाग्य की कृपा क्यों नहीं है ?" नसीब सिंह ने निर्भीकता से उत्तर दिया।माँ पार्वती और भगवान शिव उस बच्चे का साहस देखकर बहुत प्रसन्न हुए। मा पावतो तो करुणा का सागर है। उन्हें उस बच्चे पर बड़ी दया आई और भगवान शिव से मुखातिब होकर बोली-प्रभ! इस बालक का कुछ कीजिए।"हम कुछ नहीं कर सकते पार्वती, क्योंकि इसके भाग्य में यही सब लिखा है। भाग्य देवता के लेख के अनुसार इसे ऐसा ही जीवन भोगना है।"नहीं-नहीं स्वामी आपको कुछ करना ही होगा।" माँ पार्वती हठ करने लगीं।"जिद न करो पार्वती। यदि हम उसे कुछ दे भी देंगे, तो वह इसके पास नहीं रूकेगा। इसे वैसा ही जीवन जीने दो जैसा भाग्य देव चाहते हैं।""नहीं प्रभु इस की गरीबी दूर करने के लिए आपको इस पर कृपा करनी होगी।" जब माँ पार्वती जिद करने लगी तो भगवान भोले शंकर ने बच्चे को एक हार दे दिया।

हार पाकर नसीब सिंह बहुत प्रसन्न हुआ और खुशी-खुशी अपने घर को चल दिया। माँ पार्वती संतुष्ट थी कि उन्होंने एक अबोध बालक की मदद की और अब उसके दिन सुख से कटेंगे, लेकिन त्रिकालदर्शी भोले बाबा जानते थे कि यह हार उसके पास रहेगा नहीं।चलते-चलते नसीब सिंह के पेट में अचानक दर्द उठा और वह शौच के लिए इधर-उधर देखने लगा। उसने भगवान शिव का दिया वह हार पत्थर की एक शिला पर रख दिया और झाड़ियों के पीछे चला गया। " किन्तु तभी एक चील कहीं से उड़ती हुई आई और उस हार को उठाकर उड़ गई।"अरे मेरा हार।" सब कुछ भलकर लडका चील के पीछे भागा।मगर कब तक वह उस चील का पीछा करता। कैसे पकडता उसे । एकाधबार पत्थर उठाकर उसने चील को मारने की कोशिश की किन्तु चील अधिक ऊँचा पर थी। कुछ ही पलों में चील उसकी नजरों से ओझल हो गई तो वह बड़ा दुख हुआ और रोते-रोते वह अपने घर की ओर चल दिया।पहुंचकर उसने माँ को सारी बात बताई, मगर पारो को उसकी बात पर बिल्कल भी विश्वास नहीं हुआ। हाँ, इसकी बात सुनकर वह कुछ उदास अवश्य हो गई। - लेकिन नसीब सिंह माँ की उदासीनता देखकर हतोत्साहित नहीं हुआ। उसने मन-ही-मन में निर्णय लिया कि वह कल फिर वहीं जाएगा और भगवान शिव चील को अवश्य ही दंड देंगे। पार्वती को अपनी विपदा सुनाएगा।

उसका विश्वास था कि भगवान शिव उस धर्त दूसरे दिन वह फिर वहाँ जा पहुंचा। भगवान शिव ने पार्वती से कहा-"देखो, उसके पास कल वाला हार नहीं रहा, उसे एक चील ले उड़ी है और दूसरा हार पाने व उस चील को दण्ड दिलवाने की इच्छा लिए यह लड़का आज फिर आया है।"पार्वती देवी ने फिर भगवान से प्रार्थना की भगवान ! आप चाहे चील को दंड दे या न दें, किन्तु इस लड़के की सहायता करके इसी निर्धनता अवश्य दूर करें।"हम अब कुछ नहीं कर सकते देवी। यदि तुम जिद करती हो तो हम ब्रह्मा से कहते है, वही इस बालक की कुछ सहायता करेंगे।"कहकर भगवान शिव ने ब्रह्मा जी को बुलाया और सारी बात बताकर आग्रह किया कि आप ही इसकी कुछ मदद करें। तब ब्रह्मा जी ने लड़के को हीरे की एक अंगूठी दे दी। लड़के ने अंगूठी जेब में रखी और खुशी-खुशी अपने घर चल दिया। उसने सोच लिया था कि अब एक पल के लिए भी अंगूठी को अपने से अलग नहीं करेगा। - चलते-चलते अचानक उसे प्यास लगी। वह सरोवर के किनारे पहुँचा और जैसे ही वह चुल्लू भरकर पानी पीने के लिए झुका, वैसे ही उसकी जेब से अंगूठी निकलकर पानी में जा गिरी और इससे पहले की वह उसे उठाता, एक मछली उसे निगल गई।भाग्य बहादुर फिर रोते-रोते घर आया और माँ को सारी बात बताई "बेटा ! जब तक भाग्य में नहीं है, तब तक कोई भी चीज़ नहीं रुकेगी।" माँ ने उसे दिलासा देते हुए कहा-"अब भाग्य देवता खश होंगे तो मिट्टी भी सोना बन जाएगी मगर इस प्रकार किसी के देने से हमारी गरीबी दूर नहीं होगी।" उसे समझाकर माँ अपने काम में लग गई । मगर भाग्य बहादर भी हार मानने वाला नहीं था। उसने मन-ही-मन सोच लिया था कि वह कल फिर वहाँ जाएगा। तीसरे दिन वह फिर वहाँ जा पहुँचा।

शिव और पार्वती उसका यह साहस देखकर बहुत खुश हुए। शिव जी ने इस बार ब्रह्मा जी के पास जाकर बात की कि यह लड़का तो बड़ा साहसी है। इसका कुछ उद्धार किया जाना चाहिए। तब ब्रह्मा जी ने सलाह दी कि हमें भगवान श्री हरि के पास जाना चाहिए। यही इसका कोई हल बताएंगे। अतः वे श्री हरि के पास जा पहुँचे। पूरी बात सुनकर भगवान विष्णु ने भाग्य बहादुर को कुछ हीरे ये। हीरे पाकर वह बहुत खुश हुआ और इस बार बिना कहीं रूके उसने सीधे अपने घर जाने का निश्चय किया. क्योंकि दो बार उसकी चीजें खो चुकी थी। जब वह घर पहुँचा, माँ घर पर नहीं थी। अतः भाग्य बहादुर वे हीरे एक लोटे म रखकर कोने में छिपा दिये और माँ को ढूंढने निकल पड़ा। वह मन-ही-मन सोचने लगा कि अब माँ को किसी के घर काम करने की क्या आवश्यकता है। अब तो वह भी अमीर हो गए हैं। उधर, पीछे से चोर उसके घर में घुसे और जो भी सामान हाथ लगा, लेकर भाग निकले। उस सामान में वह लोटा भी था, जिसमें हीरे रखे थे। जब वह अपनी माँ के साथ वापस आया तो देखा हीरे गायब है। इतना ही नहीं, घर का दूसरा सामान भी गायब है। अब तो उसकी माँ को बहुत गुस्सा आया, वह बोली-क्यों मुझे नई-नई कहानियाँ सुनाकर पागल बनाता रहता है। सारा दिन अवारा की तरह इधर-उधर भटकता रहता है और शाम को पिटाई के डर से कोई नई कहानी सुना देता है।

माँ की डांट सुनकर लड़का रोने लगा। वह तो केवल वही जानता था कि जो कुछ भी उसने बताया था, वह सत्य था। डांट खाकर लड़के की हिम्मत और बढ़ गई और अगले दिन वह फिर उसी स्थान पर जा पहँचा। भगवान भोले शंकर सोचने लगे कि इस पर इतनी मुसीबतें पड़ी लेकिन इसने हिम्मत नहीं हारी। इससे वह बहुत प्रसन्न हुए और भाग्य की देवी के पास जाकर बोले-“यह लड़का बहुत हिम्मती, साहसी और धीरज वाला है, ऐसा व्यक्ति अभागा नहीं हो सकता। ई कुछ दे दो।" आज्ञा पाकर भाग्य की देवी ने भाग्य बहादुर को सोने का एक सिक्का दिया। सिक्का लेकर भाग्य बहादुर खुशी-खुशी अपने घर को चल दिया। जब उसने घर जाकर वह सिक्का अपनी माँ को दिया तो उसकी माँ बहत खश हुई। अब क्योंकि उन पर भाग्य की देवी की कृपा हो गई थी, अत: सारे काम ही अपने आप ही शुभ-शुभ होने लगे। दसरे दिन ही एक मछली वाला उनके गाँव में मछली बेचने आया तो लड़क मे वही सिक्का देकर मछली खरीद ली। उसकी माँ ने मछली का पेट चीरा तो वह अंगूठी निकली, जो ब्रह्मदेव ने उसे दी थी और जो उसकी जेब से तालाब में गिर गई थी। माँ ने अंगूठी संभाल कर रख ली भाग्य बहादुर से बोली-"जा बेटा जंगल से थोड़ी लकड़ियाँ ले आ आज घर में ईंधन बिल्कुल नहीं है।

लड़का कुल्हाड़ी लेकर की ओर चल दिया वहाँ जाकर जिस पेड़ पर लकड़ी काटने के लिए चढ़ा वहां उसी चिल का घोसला था उसका हार उठाकर ले गई थी।लडके ने देखा की चील आसपास कहीं नहीं थी। भाग्य बहादुर ने अपना हार उठा लिया और जो जो भी थोड़ी बहुत लकड़ियाँ पेड़ के नीचे पड़ी थी. दी उठाकर घर की ओर चल दिया। माँ हार पाकर बहुत खुश हई।अब तो देखते ही देखते उनके दिन बदल गए। घर में किसी चीजं का अभाव नहीं रहा।फिर ईश्वर की कछ ऐसी करनी हुई कि जो चोर उसके घर से हीरे चराकर गए थे. उन्हें सपने में महादेव ने चेतावनी दी कि जो हीरे उस लड़के के घर से चराकर लाए थे, वे तुरंत वापस कर दो, वरना तुम्हारा सर्वनाश कर दूंगा।चोर उसी दिन हीरे उसके घर पर दे गए और अपनी गलती के लिए माफी भी मांगी।इस प्रकार उस अभागे का भाग्य-चमक उठा; अब उसके घर में किसी चीज की कमी न थी और उनकी गरीबी सदा के लिए समाप्त हो गई।