बेटा चाहे एक हो, नेक हो-दादी माँ की कहानी
Apr 06,2021 03:02 AM posted by Admin
श्रवण कुमार एक छोटा-सा बालक था। उसके माता-पिता दोनों अंधे थे। वह अपने माता-पिता दोनों अन्धे थे। वह अपने माता-पिता की इकलौती संतान थई । वह उनकी दिन-रात सेवा में लगा रहता था। जब श्रवरण कुमार बड़ा हो गया तो उसके माता-पिता ने उससे तीथओं यात्रा करने की इच्छा प्रकट की। उसने अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन किया। उसने उन्हें काँवर में बिठाकर और काँवर अपने कन्धे पर उठाकर तीर्थयात्रा को चल पड़ा। जब श्रवण कुमार अयोध्या के पास वन में घूम रहा था तब उसके माता पिता को प्यास लगी। श्रवण काँवर को एक स्थान पर रखकर, सरयू के किनारे, लोटा लेकर जल भरने गया। जब वह जल भर रहा था तो एक तीर आकर उसके सीने में लगा। वह 'हाय' कहकर भूमि पर गिर पड़ा।
उसी समय अयोध्या के राजा दशरथ वन में शिकार कर रहे थे। उन्होंने लोटे की गड़गड़ाहट सुनकर सोचा कि कोई जंगली हाथी पानी पी रहा है। उन्होंने बिना सोचे समझे शब्द वेणी बाण चला दिया। मनुष्य की आवाज सुनकर वे वहाँ आये। वहाँ उन्होंने घायल पड़े बालक श्रवण को देखा वह पीड़ा से छटपटा रहा था। उसने राजा से इतना ही कहा-"आप मेरे अंधे, माता-पिता को पानी पिला दें।" कहकर वह चल बसा। राजा दशरथ पानी लेकर उसके माता पिता के पास गए। पैरों की आवाज सुनकर उन्होंने कहा-"तुम कौन हो ? हमारे बेटा कहां है ? राजा दशरथ ने सारी बातें उन्हें सच बता दीं और अपने अपराध के लिए क्षमा मांगी। अंधे माता-पिता ने राजा श्राप दिया"-"तुम भी हमारी तरह पुत्र वियोग में ही मरोगे।" 'श्रवण-हा-श्रवण' कहते-कहते उन दोनों ने अपने प्राण त्याग दिए।