आलसी का भाग्य-दादी माँ की कहानी

Apr 07,2021 02:05 AM posted by Admin

एक जंगली अंजीर के पेड़ के नीचे एक आदमी रहताथा। वह कुछ काम धंधा नहीं करता था। वह सारा दिन पेड़ के नीचे लेटा रहता था और उस पल का इंतजार पता जब अंजीर स्वयं पेड़ से गिरकर उसके मुँह में आ जाएं। लोग उसे 'आलसी का महाश्य' कहकर पुकारते थे। उसे धिक्कारते थे, पर वह किसी की परवाह नहीं करता था। कभी-कभी तो लोग गुस्से में आकर उसे पत्थर मारते, लेकिन वह इतना आलसी था कि अपनी रक्षा तक भी नहीं करता था। एक दिन बहुत तेज आधा गिर गई। राजा की भतीजी राजमहल बहुत तेज आँधी आई और बहत से अंजीर टूटकर साथ वाली नदी में राजमहल के पास नदी के किनारे खेल रही थी। उसने एक ही समय कसम खाई कि वह बाजा को इस बात का पता अंजीर उठाकर खाई तो उसे बहुत अच्छी लगी। उसने उसी समय कसम उस विशेष अंजीर के पेड़ के स्वामी से ही विवाह करेगी।

राजा को इस बात चला तो उसने घोषा की कि सब अंजीर के पेड़ों के स्वामी राजमहल में उपस्थित और अपनी-अपनी अंजीर लेकर आएं।राजकुमारी ने सब अंजीरों को चखा, पर उन सबमें उस विशेष अंजीर का स्वाद था।जब राजकुमारी को अंजीर पसंद न आए तो राजा ने पूछा कि क्या कोई ऐसा व्यक्ति रह गया, जो उफस्थित न हुआ हो?तब लोगों ने बताया कि एक व्यक्ति है जो पूरे राज्य में आलसी महाश्य के नाम से मशहूर है, उसका आना बाकी है महाराज। वह इतना आलसी है कि राजमहल तक आने को तैयार नहीं।जब राजकुमारी को इस बात का पता चला तो उसने निश्चय किया कि वह स्वयं उस व्यक्ति के पास जाएगी। जब राजकुमारी ने उस पेड़ के पल चखे, तो वह जान गई कि यह वही व्यक्ति है जिसकी उसे तलाश थी।

गुप्तचरों ने सारी बात राजा को बताई कि राजकुमारी कैसे युवक से शादी करने की कसम खा चुकी है। राजा को सुनकर बहुत ही दुःख हुआ कि राजकुमारी एक बेकार और निकम्मे इंसान के साथ शादी करना चाहती है। राजा मजबूर था क्योंकि उसने वचन दिया था इसलिए वह उसे शादी से तो न रोक सका, पर उसने राजकुमारी को राजमहल से निकाल दिया और जायदाद से बेदखल कर दिया।विवाह के बाद वे दोनों हंसी-खुशई उस अंजीर के पेड़ के नीचे रहने लगे। वे पेट भरने के लिए उसी वृक्ष के स्वादिष्ट फल खाते और मस्त रहते।कछ समय के बाद पेड़ ने फल देने बंद कर दिया और राजकुमारी बीमार पड़ गई।आलसी महाश्य को यह सब बहुत बुरा लगा, लेकिन उसे महसूस होने लगा कि वह अपनी पत्नी से प्यार करने लगा था। अत: अब उसने सोचा कि कुछ करना ही होगा। वह अपनी पत्नी से बहुत अधिक स्नेह करता था। उसकी पत्नी उसके सुखदाख की साथी थी। इसलिए उसने निश्चयकिया कि अपनी पत्नी के स्वास्थ्य और प्रसन्नता के लिए परिश्रम करेगा।उसने कड़ी गे लो और अंजीर के पेड़ बोने शुरू कर दिये। कुछ ही समय में

उसका परिश्रम रंग लाया। उसने वह फल अच्छे दामों पर बाजार में बेचे जिससे उसके पास बहुत-सा धन हो गया। उसने अपनी पत्नी का इलाज करवाया व उसीक सेवा की जिससे राजकुमारी कुछ ही समय में स्वस्थ हो गई।जब राजा को इस बात का समाचार मिला, तो वह आलसी महाश्य से बहत सावित हआ। उसने अपनी भतीजी को जायदाद भी दी और दोनों को सम्मानपूर्वक राजमहल में भी बुला दिया।आलसी महाशय राजकुमारी के साथ एक बार फिर सुख और शांति का जीवन बिताने लगा।

उसने फिर काम करना छोड़ दिया, लेकिन अब वह राजकुमार था, उसे अब किसी काम को स्वयं करने की आवश्यकता थी। अब केवल उसके इशारे पर ही नौकर-चाकर दौड़ पड़ते।पहले वह पृक्ष के नीचे कंकड़-पत्थरों पर पड़ा रहता था, अब उसके सोने-लेटने के लिए मखमली गद्दे थे। - कभी-कभी वह सोचात कि जब मैं गरीब था तो मुझे आलसी महाश्य कहते थे। अब जबकि मैं धनी और कातिल हूँ, तो भी राजकुमार कहकर सम्मान से पुकारते है आखिर अब भी तो मैं कोई काम नहीं करता। किसी ने सच ही कहा है कि धन में बड़ी ताकत होती है।