आत्म संतोष-दादी माँ की कहानी
Apr 07,2021 03:19 AM posted by Admin
गाँव में एक रूई धुनने वाला रहता ता। वह बड़ा मेहनती और ईमानदार था। वह सदा खुश रहता था। वह आत्म-संतोषी था। वह अपना काम बड़ी लग्न और मेहनत से करता था। वह अपनी कमाई से संतुष्ट था। वह लालची भी नहीं था जो कछ अपनी मेहनत से कमाता उसी में मस्त रहता। उसको खुश देखकर लोग उससे जलते थे तथा उसे सफेद भूत कहकर चिढ़ाते थे क्याक काम करते समय उसे खूब पसीना आता था और रूई घुनते समय रुई के छाट-छोटे फाहे उसके बदन से चिपक जाते थे। इसलिए उसका नाम 'सफेद भूत' पड़ गया। बच्चे उसे सफेद भूत कहकर चिढ़ाते थे। जब भी कोई उसे चिढ़ाता तो धुन का बनावटी क्रोध दिखाकर चिढ़ाने वाले के पीछे भागता, मगर कुछ दूर भागकर हंसता हुआ वापस आ जाता। उसे लोगों के चिढाने काफी मजा आता था। वह गुस्सा तो सिर्फ दिखावे के लिए करता था। जिस दिन नहीं उसे कोई नहीं चिढ़ाता था तो उसे अच्छा नहीं लगता था।
अक्सर लोग उससे पूछते कि भाई तुम इतने सुखी और मस्त कैसे रहना वह हंसकर कहता-"मैं किसी चीज़ की इच्छा ही नहीं करता। तभी तो और मस्त रहता हूँ।"एक दिन उसके पास एक आदमी आया और उससे पूछने लगा-"भाई धनके मस्ती का क्या रहस्य है ? इस जमाने में भी तुम इतने खुश और मस्त कैसे रह पाते हो "धुनके ने पहले तो उसे बहुत टालने की कोशिश की मगर जब वह नहीं माना तो धुनके ने रहस्य बताया-"एक दिन रुई धुनते-धुनते मेरा धनुष टूट गया। मेरा काम बंद हो गया, इसलिए मैं तुरंत लकड़ी लेने जंगल पहुँच गया। वहाँ मुझे एक पेड़ दिखाई दिया जिसकी लकड़ी धनुष के लिए ठीक थी। मैंने पेड़ के पास जाकर उसके तने पर कुल्हाड़ी मारी।" जैसे ही मैंने कुल्हाड़ी पेड़ पर मारी तो पेड़ से आवाज आई-धुनके भाई! धुनके भाई ! “मुझे मत काटो।" - पहले तो मुझे लगा कि शायद यह मेरा भ्रम है, मैं सोचने लगा कि भला पेड़ भी कभी बोलते हैं। इसलिए मैंने फिर पेड़ काटना सुरू कर दिया। पर जैसे ही कुल्हाड़ी पेड़ पर लगती तभी आवाज आती-"धुनके भाई, धुनके भाई। रहम करो, मुझे मत काटो।"धीरे-धीरे, यह आवाज तेजहोती गई किन्तु मैंने भी उसे काटना बंद नहीं किया तो फिर आवाज ने मुझसे प्रार्थना की-धुनके भाई। तुम चाहो, सो मांग लो, पर मुझे छोड़ दो, मुझे मत काटो। तुम चाहो तो सोना, चाँदी, हीरे-मोती ले लो।
मैंने वृक्ष देवता से कहा-'हे देव मुझे, हीरे-मोती नहीं चाहिए। मैं मेहनत से काम पीछे की ओर दे दो।" करना और ईमानदारी से जीना चाहता हूँ। इसलिए आप मुझे दो हाथ और दो आँखे वृक्ष देव ने मुझे मुँह मांगा वरदान दे दिया। जब मैं चार हाथ और चार आँखें लिए गाँव में लौटा तो लोगों ने मुझे प्रेत समझा और मुझे पत्थरों से मारा। जो भी देखता वही मुछे पत्थर मारता। लोग मुझे देखकर डरनेलगे।
जब मैं घर पहुँचा तो मेरी पत्नी भी मुझे देखकर डर गई और मुझे छोड़कर वह अपने मायके चली गई।मैं पत्थरों की चोटों से लहू-लुहान हो गया था। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूँ ? फिर मैं वापस जंगल में गया और मैंने वक्ष देव से प्रार्थना की-“हे देव! मेरे दो हाथ और दो आँखे वापस ले लो। उस देव को मेरी हालत पर तरस आ गया और उसने मुझे पहले जैसा कर दिया। तब से मैंने सबक सीख लिया कि आदमी का ज्यादा इच्छा नहीं करनी चाहिए। आदमी की इच्छाएं जितनी कम होंगी, वह उतना है। सुखी रहेगा। बस! मेरी मस्ती का यही रहस्य है। मैं रूई धनते-धनते जीवन भर 'सफेद भूत' ही बनकर रहना चाहता हूँ।"