लालची सुनार-अकबर बीरबल की कहानी

Apr 10,2021 04:10 AM posted by Admin

अकबर बादशाह के समय दिल्ली में एक बड़ा ही कंजूस व्यक्ति रहता काफी परिश्रम करने के बाद भी वह बहुत कम भोजन करता था तथा जन को जमा करता रहता था। इस प्रकार उसके पास बहुत से जवाहरात
हो गए थे। उसका रहन-सहन ऐसा था कि लोगों को सहसा विश्वास नहीं होता था कि उसके पास फूटी कौड़ी भी होगी। उसका घर फूस योपडी मात्र था, जिसमें एक टूटी-फूटी संदूकची बाबा आदम के जमाने यी। उसी में वह अपने जवाहरातों को छिपाकर रखता था। एक दिन अचानक उस फूस की झोंपड़ी में आग लग गई। यह देखकर कंजस दहाड़ें मार-मारकर रोने लगा। उसका शोर सुनकर उसके पड़ोस के लोग जमा हो गए और आग बुझाने में मदद करने लगे, लेकिन आग बुझने की अपेक्षा और अधिक उग्र रूप धारण करती गई। आग की लपटों को देखकर कंजस ने और अधिक ज़ोर से चिल्ला-चिल्ला कर रोना शुरू कर दिया। तभी पास खड़ा एक सुनार उसको डांट कर बोला-"एक फूस की झोंपड़ी जलने पर इतना क्यों चिल्ला रहा है?"भाई! तुम तो झोंपड़ी जलता देख रहे हो, लेकिन मैं तो अपने जवाहरातों को जलता देख रहा हूं।" कंजूस अपनी छाती पीटते हुए बोला।यह सुनकर सुनार बोला-"जवाहरात कहां हैं?" कंजूस ने उंगली के इशारे से उस जगह को बता दिया, जहां वह सन्दूकची रखी हुई थी। सुनार के मन में लालच आ गया, वह कंजूस से बोला"यदि मैं जवाहरातों को बाहर निकाल लाऊं तो थोड़ा-बहुत तुम्हें देकर बाकी मैं स्वयं रख लूंगा।" लाचार होकर कंजूस ने सुनार को इजाजत दे दी।


इस प्रकार सुनार अपनी जान जोखिम में डालकर लालचवश दहकती आग में कूद पड़ा और संदूकची निकालकर बाहर ले आया। जब आग बुझ गई तो सुनार ने कंजूस को खाली संदूकची देकर सारे जवाहरात खुद ले लिए। इस प्रकार के व्यवहार का कंजूस ने विरोध किया तो सुनार बोला"तुमने पहले ही मंजर कर लिया था कि मैं जो कुछ चाहूंगा, वही तुम्हें दूंगा।""भाई! आपने अपनी जान पर खेलकर मुझ पर ऐसा उपकार किया है,इसलिए आप आधा माल ले लें, बाकी आधा मुझे मंजर और हाथ जोड़कर कहा।सुनार क्रोधित होकर बोला-"मेरे-तेरे बीच तो पहले ही यह शर्त होचुकी थी कि जो मैं चाहूंगा, तुझे दूंगा। अब जालसाजी करने से का चलेगा।"सुनार और कंजूस में बहस बढ़ती ही चली गई। कंजूस ने आधे जवाहर पाने की बहुत कोशिश की, किन्तु असफल रहा। अन्त में उसने बादशाह के यहां शिकायत की। बादशाह ने मामला पेचीदा समझकर बीरबल को सौंप दिया।बीरबल ने सुनार से पूछा-"तुम दोनों के बीच क्या शर्त तय हुई थी?"गरीब परवर! हम दोनों के बीच यह शर्त तय हुई थी कि यदि उस धधकती आग में घुसकर मैं जवाहरातों वाली संदूकची को निकालकर लाऊं तो अपनी पसंद का इसको दूंगा, बाकी खुद ले लूंगा।" सुनार ने कहा।


बीरबल ने कंजूस से पूछा-"जो बात सुनार कहता है, क्या सच है?" कंजूस ने स्वीकार किया। तब बीरबल उससे बोले-"फिर तुम क्यों नहीं सुनार का फैसला मान लेते। जब शर्त तय हो चुकी थी तो जो कुछ वह देता है, ले लो।"आलीजहां! वह तो मुझे केवल संदूकची देकर सब जवाहरात खुद ले रहा है।"बीरबल ने सुनार से पूछा-"तुम्हें कौन-सी वस्तु पसन्द है?" सुनार बोला-"जवाहरात।"यह सुनकर बीरबल बोले-"फिर तुमने इतनी बात क्यों बढ़ाई? जवाहरात उसे वापस दे दो और संदूकची तुम ले लो।" सुनार सुन्न-सा रह गया।
बीरबल बोले-"तुम्हीं ने अपनी शर्त में बताया है कि तुम जो पसन्द करोगे, वह उसे दे दोगे तथा बाकी खुद रख लोगे, तो जवाहरात इसे दे दो। सन्दूकची तुम ले लो।" . सुनार कुछ नहीं बोल सका। वह जानता था कि यदि बीरबल के न्याय को नहीं स्वीकार करेगा तो उसे जेल की हवा खानी पड़ेगी। ज्यादा लालच का यही नतीजा होता है। यह सोचकर खाली संदूकची को सुनार ने स्वीकार कर लिया।
इस तरह कंजूस को उसके जवाहरात मिल गए।