कौन मूर्ख, चतुर कौन-अकबर बीरबल की कहानी
Apr 10,2021 01:36 AM posted by Admin
एक बार बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा-"दुनियादारी की बातों में किस जाति एवं धर्म के लोग चतुर होते हैं और किस जाति के लोग मूर्ख?" बीरबल ने उत्तर दिया-"हुजूर ! दुनियादारी की बातों में सबसे चतर होते हैं व्यापारी और मूर्ख होते हैं, मुल्लां।"अकबर बादशाह को बात अजीब लगी। मन-ही-मन सोचा कि पढेलिखे मुल्लां कदापि मूर्ख नहीं हो सकते। अपने इस आंतरिक भाव को उन्होंने बीरबल से कह भी दिया।"जहांपनाह! यदि कुछ रकम खर्च करें तो मैं यह साबित कर दूंगा कि मुल्लां वास्तव में मूर्ख होते हैं।" बीरबल ने कहा। अकबर बादशाह ने मान लिया और बीरबल के हुक्म से प्रधान मुल्लां को दरबार में हाजिर किया गया। उसके आ जाने पर बीरबल ने अकबर बादशाह से अर्ज किया"हुजूर! कृपया हमारी बातों में हस्तक्षेप न कीजिएगा, जो कुछ हम कहें, चुपचाप शांत होकर सुनियेगा।"
अकबर बादशाह ने बीरबल की बात मान ली। मुल्लां दरबार में आ गया। बीरबल ने उसे अपने पास बुलाकर बैठाया और बड़ी नम्रतापूर्वक कहा-"मुल्लां जी! बादशाह सलामत को आपकी दाढ़ी की आवश्यकता है। आप इसके बदले में जो इनाम मांगेंगे, सरकारी खजाने से दिया जाएगा।" * अचानक दरबार में अपना बुलावा सुनकर मुल्लां के होशोहवास पहले ही उड़ रहे थे। अब यह सुनकर उनका रहा-सहा होश भी काफूर हो गया।"दीवान जी! यह कैसे संभव हो सकता है? दाढी तो खुदा की सबस प्यारी वस्तु है, उसे कैसे दिया जा सकता है?" कंपकंपाती जबान में मुल्लाजा ने कहा।
बीरबल तत्काल बोले-"मुल्लां जी! इतने दिनों तक आपने बादशाह सलामत का नमक खाया है और आज इन्हें केवल आपकी दाढी की जरूरत है, जिसे देने में आप आना-कानी कर रहे हैं? आपसे किसी अधिक महत्त्व की वस्तु पाने की बादशाह क्या आशा कर सकते हैं? जल में रहकर मगरमच्छ से वर ठाक नहीं, यदि गरीबपरवर चाहें तो आपका सब कछ छीन सकत हैं। आप ही क्या, इस देश में किसी की भी क्या हस्ती है कि जो कुछ भी देने से इन्कार कर सके? यह तो उनकी मेहरबानी है जो आपकी दाढ़ी की कीमत दे रहे हैं। मुफ्त में न लेकर, मुंहमांगी रकम दे रहे हैं।"मुल्लां बीरबल की बातों को सुनकर कांप उठा। उसे अकबर बादशाह के नाराज होने का बड़ा ख्याल था। इसलिए नम्रतापूर्वक कहा-“दस रुपए दिलवा दो।"फिर क्या था? वहां तो आज्ञा की देर थी, तुरन्त ही मुल्लां को दस रुपए दिलवा दिए गए और नाई को बुलाकर उसकी दाढ़ी साफ करा दी गई। मुल्लां ने दस रुपए लिए और अकबर बादशाह को दाढ़ी थमाकर"जान बची तो लाखों पाए" समझकर घर का रास्ता पकड़ा।
मुल्लां के चले जाने पर बीरबल ने शहर के एक बड़े मशहूर व्यापारी को बुलाया, जिसकी दाढ़ी काफी लम्बी थी। व्यापारी आज्ञा पाते ही दरबार में हाज़िर हुआ। बीरबल ने अपने पास बुलाकर उससे कहा-"अकबर बादशाह को आपकी दाढ़ी की आवश्यकता है। इसके बदले में जो चाहेंगे, वह कीमत दे दी जाएगी।"हुजूर मालिक हैं, जो चाहें वह करें, मगर हुजूर बात यह है कि हम गरीब आदमी हैं।" व्यापारी ने गिड़गिड़ाते हुए कहा।बीरबल ने डांटते हुए कहा, "इसमें गरीब या मालदार का कोई प्रश्न नहीं। अकबर बादशाह को तुम्हारी दाढ़ी की आवश्यकता है। तुम जो कीमत कहो, दिलवा दी जाएगी।" - व्यापारी डरता हुआ बोला-"अन्नदाता माई-बाप हैं, जो चाहें करें लेकिन...?बीरबल ने फिर कहा-"साफ-साफ बात क्यों नहीं कहते, लेकिन-वेकिन क्या कर रहे हो?"बात यह है हुजूर! जब मेरी मां मरी थी तो इन्हीं बालों की खातिर पांच हज़ार रुपए खर्च किए थे। फिर जब पिताजी मरे तो उतने ही फिरखर्च किए और इन्हीं बालों की खातिर हमने मां-बाप की किरया की और ब्राह्मणों को भोजन करवाया। दस हज़ार उसमें खर्च किए और आप तो जानते ही हैं कि इन बालों की बदौलत हमारी धाक है।" व्यापारी ने व्यापारिक अन्दाज़ में कहा।
बीरबल बोले-"फिजूल बातें मत करो। इस तरह तुम्हारी दाढ़ी पर कल बीस हजार खर्च हुए। यह लो बीस हज़ार और अपनी दाढ़ी दे दो।" व्यापारी बीस हज़ार लेकर दाढ़ी मुंडवाने बैठ गया।
तब साबुन आदि का प्रयोग नहीं होता था। जैसे ही नाई कार हाथ दाढ़ी पर पड़ा, व्यापारी को गुस्सा आ गया। झट से नाई के मंडप तमाचा जड़ दिया और बिगड़कर बोला-"अबे! यह क्या तने ऐसी बरी दाढी समझ रखी है? अब यह बादशाह सलामत की दाढ़ी हो गई है।" व्यापारी की इस बात से अकबर बादशाह को बड़ा गुस्सा आया। उन्होंने नौकरों को हुक्म दिया कि इस व्यापारी को धक्के मारकर निकाल दो। हो गया।
व्यापारी को और क्या चाहिए था। बीस हजार रुपए लेकर वहां से चम्पत इस बीच जब अकबर बादशाह का गुस्सा शांत हुआ तो बीरबल बोले"देखी आपने व्यापारी की चालाकी? बीस हजार रुपए भी ले गया और अपनी दाढ़ी भी सही सलामत लेकर चला गया। मुल्लां जी ने तो केवल दस रुपए में ही दाढ़ी मुंडवा दी।" अकबर ने हां मैं सिर हिला दिया।