ईश्वर जो करता है, अच्छा ही करता है-अकबर बीरबल की कहानी

Apr 10,2021 01:19 AM posted by Admin

बादशाह अकबर बीरबल के साथ एक जंगल में शिकार खेलने गा बादशाह की तलवार से उन्हीं की उंगली थोड़ी-सी कट गई। उंगली बहते खून को देखकर बीरबल बोले-"ईश्वर जो भी करता है, अच्छा ही करता है।"बीरबल की इस बात से बादशाह को प्रसन्नता नहीं हुई। दो दिन बाद उन्होंने अपने राज दरबार में यही बात रखी। दरबारी लोग तो पहले से ही बीरबल से ईर्ष्या करते थे। उन्हें बीरबल की निन्दा का अवसर मिल गया। सभी बीरबल की शिकायतें करने लगे। उनकी बातों ने आग में घी का काम किया। बीरबल उस समय दरबार में उपस्थित नहीं थे। बादशाह ने बीरबल के लिए शाही फरमान जारी कर दिया-"दीवान बीरबल! कभी भी दरबार में हाज़िर होने की कोशिश न करें।"बीरबल स्वाभिमानी पुरुष थे। ईश्वर ने उन्हें बुद्धि दी थी। बादशाह के इस आदेश से वह तनिक भी विचलित नहीं हुए। बीरबल ने उसी पत्रवाहक के हाथों, जो फरमान लाया था, अपना खत भी उसे दे दिया। उसमें लिखा था-"यह बादशाही हुक्म सम्भवतः अच्छाई के लिए ही हुआ है।" ईश्वर जो करता है अच्छा ही करता है। यह पत्र पढ़कर बादशाह और भी अधिक क्रोधित हो गए। कई महीने गुजर गए। दरबार में बीरबल के अनुपस्थित होने से बादशाह के कामों में विलम्ब भी होने लगा था। साथ ही सच तो यह था कि उनका मन ही नहीं बहलता था, किन्तु इतने पर भी बादशाह ने बीरबल को बुलाने की कोई आवश्यकता नहीं समझी। उनका विचार था कि बीरबल खुद आ जाएगा।


उधर बीरबल ने अकबर के दरबार की ओर मुंह उठाकर भी नहीं देखा। यदि अकबर बादशाह थे, तो वह भी एक सूबे के राजा और पक्के हठी थे। समय के साथ-साथ बादशाह को बीरबल के आने की आशा भी समाप्त हो गई। बादशाह दिल बहलाने के विचार से कई दरबारियों के साथ एक दिन शिकार खेलने गए। देवयोग से, बादशाह अकबर अपने दरबारियों से बिछुड़ गए। जंगल में रास्ता खोजते-खोजते वह जंगली आदिवासियों के हाथ लग गए। आदिवासी अपने देवता के आगे उनकी बलि देने की तैयारी करने लगे। मौत अकबर बादशाह की आंखों के आगे नाचने लगी। एक आदिवासी गंडासे से उनकी गर्दन काटने ही वाला था कि अचानक उसकी दष्टि बादशाह से कटी उंगली पर पड गई। अपनी भाषा में वह चिल्लाकर बोला- स आदमी की बलि नहीं दी जा सकती। यह तो खण्डित है।" से छूटे। इस प्रकार बादशाह उन निर्दयी आदिवासियों के चंगुल से बड़ी मुश्किल उधर अपने महल में वापस आने पर अचानक ही उन्हें बारबल का कही वह बात याद आ गई।

उन्होंने मन में सोचा कि बीरबल ने सच ही कहा था कि ईश्वर जो करता है, अच्छा ही करता है। यदि उस दिन मेरी उंगली न कटी होती तो आदिवासी अवश्य ही मुझे बलि चढ़ा देते। मैंने बीरबल की बात की अवहेलना की, जिसका परिणाम यह हुआ कि जान जाते-जाते बची। अब बादशाह अकबर को अपनी मूर्खता पर बड़ा पछतावा हो रहा था। वह स्वयं ही बीरबल के घर पहुंचे। बीरबल ने उन्हें पूर्ण सम्मान दिया और आदर सहित उच्चासन पर बैठाया।बीरबल को आया देखकर बादशाह गद्गद हो गए और बीरबल को गले से लगाकर भरी आवाज़ में बोले-"मुझे मेरे अपराध के लिए क्षमा कर दो बीरबल!"आप और ग़लती, राम-राम! कैसी बातें करते हैं, जहांपनाह! यदि आपने दोबारा इन शब्दों का उच्चारण किया तो मैं निश्चय ही जीते-जी नर्क में चला जाऊंगा।" बीरबल ने कहा।बादशाह ने राहत की सांस ली। फिर उन्होंने पिछली रात की सारी बातें बीरबल को बताईं और कहा-"तुमने जो बात कही थी, उसका एक-एक शब्द सत्य प्रमाणित हुआ।"हमारे शाही फरमान के पीछे तुमने लिख भेजा था कि यह बादशाही हुक्म सम्भवतः अच्छाई के लिए ही हुआ है, इसका क्या मतलब हुआ?" अकबर ने बीरबल से पूछा। - "मतलब साफ है। हुजूर! यदि मैं दरबार में होता, तो मैं भी शिकार के समय आपके साथ होता। आप तो खण्डित थे, इसलिए साफ बच जाते, पर मैं बेमौत मारा जाता।" बीरबल ने अकबर से कहा। बीरबल की बात सुनकर बादशाह बड़े खुश हुए। वह बीरबल को जान अपने साथ दरबार में ले आए।इस प्रकार अकबर बादशाह और बीरबल का हृदय फिर पहले की तर जुड़ गया। ऐसा प्रतीत होता था कि जैसे अब ये दोनों कभी अलग नहीं होंगे। हुआ भी इसी प्रकार।