दो मित्रों में खींची मतभेद की दीवार-अकबर बीरबल की कहानी

Apr 10,2021 04:01 AM posted by Admin

एक समय अकबर बादशाह के शहजादे की दिल्ली शहर के एक प्रतिष्ठित साहूकार के लड़के से घनिष्ठ मित्रता थी। वह सारा दिन अपने मित्र के साथ सैर-सपाटा किया करता था। अकबर बादशाह तथा साहूकार को यह मित्रता पसंद नहीं थी। इसलिए दोनों ही चाहते थे कि इनकी मित्रता टूट जाए। साहूकार का लड़का सारा कारोबार छोड़कर रात-दिन शहजादे के साथ घूमता रहता था, किन्तु भयवश साहूकार कुछ कह नहीं सकता था, क्योंकि यदि शहजादे को मालूम हो जाता तो अकारण ही जान जोखिम में पड़ती और अकबर बादशाह शहजादे की बात को टाल नहीं सकते थे। इन दोनों की मित्रता कैसे भंग हो, इस विषय पर एक दिन बादशाह विचार कर रहे थे, तभी बीरबल वहां पहुंच गए। उन्हें देखकर अकबर बहुत खुश हुए और पास बैठाकर बोले-"साहूकार के पुत्र तथा शहजादे की दोस्ती किसी-न-किसी तरह से छुड़ानी चाहिए। मेरे विचार से तुम ही इस काम को कर सकते हो।"अकबर बादशाह की बात सुनकर बीरबल बोले-"जहांपनाह ! हुक्म जारी कीजिए कि आज शहजादा तथा साहूकार-पुत्र दोनों एक साथ दरबार में उपस्थित हों।"अकबर बादशाह ने ऐसा हुक्म जारी कर दिया कि दोनों मित्र नियत समय पर दरबार में उपस्थित हुए। कुछ देर तक तो इधर-उधर मन बहलाव की बातें होती रहीं। परन्तु जब बीरबल ने देखा कि अब शहजादे का मन यहां नहीं लग रहा है, तो उन्होंने उसके साहूकार मित्र के पास आकर उसके कान में फुस-फुसाकर कुछ कहा। बात स्पष्ट नहीं थी, अतः साहूकार का लड़का कुछ नहीं समझ पाया।

इसके पश्चात् बीरबल ने शहजादे के मित्र को संबोधित करके चेतावनी दी-"ध्यान रहे, यह बात बिल्कुल गुप्त रखी। अपने इष्ट-मित्र से भी तुम इसकी चर्चा मत करना।बीरबल की इस चेतावनी को सभी उपस्थित लोगों ने सना दरबार दूसरे दिन के लिए उठ गया। दरबार से निकलने के पश्चात् शहजादे ने मित्र से पूछा-"बीरबल ने तुम्हारे कान में क्या कहा था?साहूकार-पुत्र शहजादे को कुछ नहीं बता सका। आखिर, कोई ना बीरबल कहते या वह समझता तो वह बताता भी। इससे शहजादे को कर शंका उत्पन्न हुई। वह बोला-"मित्रवर! आज आपने यह नया तरीका खब अपनाया है।""नहीं दोस्त! बिल्कुल नहीं। बीरबल ने तो मुझसे कुछ कहा ही नहीं था। केवल कान के पास मुंह ले जाकर कुछ अस्पष्ट-सा फुसफुसाया और खुलेआम यह कहा कि जो बात मैंने तुमसे कही है, इस बात को गुप्त रखना।" साहूकार मित्र ने शहजादे को समझाने वाले अन्दाज़ में कहा।परन्तु शहजादे को उसकी बात पर विश्वास नहीं हुआ। उसने सोचा उसका मित्र सब कुछ जानते हुए भी बता नहीं रहा है। शहजादे के दिल में संशय पैदा हो गया। धीरे-धीरे दोनों मित्रों के दिलों में एक-दूसरे के प्रति अविश्वास का गहरा पर्दा खिंच गया। दोनों की घनिष्ठ मित्रता आखिर भंग हो गई। फिर हमेशा के लिए दोनों मित्रों का मन एक-दूसरे से हट गया। वे अपने-अपने कामकाज देखने लगे। साहूकार को भी मित्रता भंग हो जाने से बड़ी खुशी हुई। अकबर बादशाह बीरबल की चतुराई से अत्यधिक प्रसन्न हुए।